विश्व भर में कमल का महत्व और अनेक उपयोग

रामपुर

 04-08-2021 09:58 AM
बागवानी के पौधे (बागान)

एक अनुमान के अनुसार भारत में लगभग 15,000 से 20,000 फूलों की विभिन्न प्रजातियाँ पाई जाती है। परंतु केवल कमल (Lotus) को ही भारत में राष्ट्रीय पुष्प होने के साथ-साथ ही देवताओं का प्रिय पुष्प भी माना जाता है। यह महान स्थान इसे किसी संयोगवश नहीं, वरन इसके कई आलौकिक गुणों के परिणाम स्वरूप प्राप्त हुआ है।
भारत का राष्ट्रिय पुष्प कमल एक वनस्पति जगत से संबंधित पौंधा है, जिसे वानस्पतिक नाम: नीलंबियन न्यूसिफ़ेरा (Nelumbian nucifera) से जाना जाता है। संस्कृत में इसे कमल, पद्म, पंकज, पंकरुह, सरसिज, इंदीवर, कुवलय, वनज जैसे कई नामों से जाना जाता है। हिँदू धर्म में भगवान विष्णु के एक रूप को कमल नयन के नाम से भी जाना जाता है। इस सुंदर पुष्प (कमलिनी, पद्मिनी) कमल का पौधा केवल पानी में ही उगता है, और भारत के सभी उष्ण भागों सहित दुनिया के विभिन्न देशों जैसे ईरान से लेकर आस्ट्रेलिया तक पाया जाता है। कीचड़ में खिलने वाला यह सुंदर कमल का फूल सफेद या गुलाबी अथवा कई स्थानों पर नीले तथा पीले रंग में भी देखा जा सकता है। कमल के पत्ते जिन्हें 'पुरइन' भी कहा जाता है, वह लगभग गोल, ढाल के सामान प्रतीत होते हैं। इन पत्तों से प्राप्त होने वाले रेशों से मंदिरों में दीपों की बत्तियां निर्मित की जाती हैं। इन रेशों में निर्मित कपडे कई मायनों में रोगनाशक का काम भी करते हैं।
कमल के लंबे, सीधे और खोखले होते हैं, तने पानी के नीचे कीचड़ में चारों ओर फैलते हैं, जिनकी गाँठों से जड़ें निकलती हैं। कमल का तना भारत के लगभग सभी भागों में खाया जाता है, और इनका अचार भी बनाया जाता है। कमल भौरों और मधुमक्खियों का भी प्रिय होता है, मधुमक्खियाँ कमल के रस से शहद बनाती हैं, जो आँख के रोग के लिये उपकारी होता है।कमल का पुष्प झीलों, तालाबों और गड्ढों तक में पाया जाता है और पेड़ बीज से जमता है। रंगों और आकार के संदर्भ में इसकी ढेरों प्रजातियां पाई जाती हैं। इसकी पत्तियाँ गोल गोल बड़ी थाली के आकार की होती हैं और बीच के पतले खोखल से जड़ी रहती हैं, जिस कारण यह जल में तैरने में सक्षम हो पाता है। इनके नीचे का जल के भीतर का हिस्सा, बहुत नरम और हलके रंग का होता है।
कमल का फूल चैत बैसाख माह से सावन भादों तक फूलता है। निश्चित तौर पर कमल एक बहुपयोगी पुष्प है, जिसका उपयोग चिकित्सा जगत में प्राचीन काल से किया जाता रहा है। अनेक आयुर्वेदिक, एलोपैथिक और यूनानी औषधियों के निर्माण में कमल के विभन्न भागों का प्रयोग किया जाता रहा है। इनका उपयोग पूजा और शृंगार के लिए भी प्रचुरता से किया जाता है। इसके पत्तों को पत्तल (भोजन ग्रहण करने हेतु प्राकृतिक थाल) के रूप में प्रयोग किया जाता है। बीजों का उपयोग औषधियां बनाने में किया जाता है, साथ ही बीजों को भूनकर मखाने भी बनाए जाते हैं। तनों (मृणाल, बिस, मिस, मसींडा) से अत्यंत स्वादिष्ट साग बनता है।
प्रायः कमल के फूल अपनी सुंदरता के लिए जगविख्यात हैं परंतु यह पुष्प सांस्कृतिक महत्व के परिपेक्ष्य में अति महत्वपूर्ण है। इस पवित्र पुष्प का वर्णन भारत के विभन्न पुराणों में मिलता है। हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्मों में इसकी विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता है। भारत की पौराणिक गाथाओं में कमल का विशेष स्थान है। अनेक भारतीय मंदिरों में कई स्थानों पर कमल के चित्र अथवा संकेत देखे जा सकते हैं। भगवान बुद्ध की अधिकांश मूर्तियों में भी उन्हें कमल के पुष्प पर विराजमान दर्शाया जाता है। मिस्र देश की धार्मिक पुस्तकों और मंदिरों की चित्रकारी में भी कमल के पुष्प का वर्णन अथवा चित्रण किया गया है। कई विद्वान तो यह भी मानते हैं कि, कमल मिस्र से ही भारत में आया। कमल के प्रति भारतीय कवियों की भी विशेष रुची देखी जाती है, वे यह मानते हैं कि कमल का पुष्प सूर्योदय के साथ खिलता है, और सूर्यास्त के साथ ही बंद हो जाता है।
कमल के सौंदर्य को अद्वितीय माना गया है, इसकी पुष्टि आप विष्णु पुराण में इन्द्र द्वारा माता लक्ष्मी की की गई स्तुति से कर सकते हैं, जिसमे वे कहते हैं कि, हे कमल के आसन वाली, कमल जैसे हाथों वाली, कमल के पत्तों जैसी आँखों वाली, हे पद्म (कमल) मुखी, पद्मनाभ (भगवान विष्णु) की प्रिय देवी, मैं आपकी वन्दना करता हूँ। महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित सभी अठारह पुराणों की गणना में ‘पदम पुराण’ (पदम - कमल) को द्वितीय स्थान प्राप्त है। यह हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म में जीवन की आध्यात्मिक वास्तविकता के प्रति जागृति का प्रतीक है।
अधिकांश हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियों और चित्रों में उन्हें हाथ में कमल के पुष्पों को धारण करे हुए दिखाया जाता है। भारत की राजधानी दिल्ली में बने बहाई उपासना मंदिर से भला कौन अपरचित होगा, जिसे लोटस टेंपल (Lotus Temple) के नाम से भी जाना जाता है। कमल का पौधा एक जलीय बारहमासी (perennial) है, जो मूल रूप से दक्षिणी में पाया जाता है, और भारत से लेकर चीन तक की जलवायु की एक विस्तृत श्रृंखला में फलता-फूलता है। कमल के पुष्पों को उगाने के लिए आप निम्नलिखित प्रक्रिया को दोहरा सकते हैं।
1. सबसे पहले कमल के बीजों को गैर-क्लोरीनयुक्त (Non-chlorinated) गुनगुने पानी में रखें। (तैरते हुए बीजों को फेंक दें , शायद वह अधिक उपजाऊ न हों)
2. पानी को नियमित तौर पर बदलते रहें।
3. एक बार जब आप कमल की जड़ों को निकलते हुए देखें, तो उन्हें अच्छे बगीचे के दोमट मिट्टी से भरे लगभग 4 इंच के बर्तनों में रखें, प्रत्येक गमले में एक बीज डालना चाहिए। जड़ को धीरे से मिट्टी या बजरी से ढक दें। यदि कमल के पत्ते उगने लगे, तो जड़ को ढकते समय मिट्टी हटा दें।
4. बीज को अधिकतम 2 इंच तक गहरे गर्म पानी में रखा जाना चाहिए।
5. कमल को जितना संभव हो उतना प्रकाश दें, जब तक कि आपके बगीचे में पानी कम से कम 60 डिग्री फ़ारेनहाइट तक गर्म न हो जाए।
6. अपने कमल को जल निकासी छेद के बिना बड़े कंटेनरों में रोपित करें।
बीज से शुरू हुआ कमल शायद पहले वर्ष में नहीं खिलेगा। कमल के पौधे की देखभाल के अनुरूप कमल के पौधे को पहले वर्ष के लिए संयम से निषेचित किया जाना चाहिए। उसकी जड़ों को ठंड से बचाना भी बेहद जरूरी है।

संदर्भ
https://bit.ly/3xku5hB
https://en.wikipedia.org/wiki/Nelumbo_nucifera
https://bit.ly/3ypA8Te
https://bit.ly/3rQIhNT

चित्र संदर्भ
1. जल में खिले सुंदर कमल के पुष्प का एक चित्रण (flickr)
2. विभिन्न एशियाई व्यंजनों में उपयोग की जाने वाली उबली, कटी हुई कमल की जड़ों का एक चित्रण (wikimedia)
3. खाने के लिए तैयार ताजे कमल के बीजों का एक चित्रण (wikimedia)
4. कमल के पुष्प पर विराजे और उसे धारण किए हुए हिन्दू देवताओं का एक चित्रण (flickr)



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