तेंदुआ एक ऐसा जीव है जिसका नाम सुनते ही कितने ही लोग सहम जाते हैं; और क्यूँ ना सहमे? इनके कितनें ही कारनामें आये दिन अखबारों में छपते रहते हैं। रामपुर और आसपास का क्षेत्र वास्तविकता में एक समय जंगल था, जिसका मुग़लों से लेकर अंग्रेज तक शिकार के लिये प्रयोग करते थे। यहाँ पर शिकार इतने बड़े पैमाने पर किया गया कि कई महत्वपूर्ण जीव विलुप्तता के कगार पर आ गये और कितने ही विलुप्त हो गये।
समय के साथ-साथ मानव जनसंख्या में तीव्र इजाफा हुआ जिसका प्रभाव यह हुआ की लोग जंगलों को काट कर अपने रहने के लिये स्थान व खेतों का निर्माण करने लगें। रही सही कसर आधुनिकता की चाह ने पूरी कर दी और कितने ही स्थानों पर शहरों और बेतरतीब इमारतों का निर्माण होने लगा। उद्योग, व्यवसाय, खेती आदि ने जंगलों को मरणासन्न अवस्था में पहुँचा दिया।
जंगलों में रहने वाले जानवर जो की प्रकृति पर पूर्ण रूप से आश्रित थे आबादी वाले क्षेत्रों में जाने लगे जिस कारण उनका सामना मानव से होने लगा। जगह की लालच ने जंगलों को एक छोटे से स्थान पर सीमित कर दिया, जिससे जानवरों में भी अपने स्थान को लेकर लड़ने की भावना और भी तीव्र हो गयी। जानवरों का शिकार उनके चमड़े, दाँत आदि के लिये भी किया जाने लगा जिसके कारण कई जानवर अपने आप को शारीरिक रूप से बदल कर रखने लगे।
इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं, हाँथी, जिनकी दाँत की लम्बाई में अपरम्पार गति से कमी आयी है। रामपुर के इसी क्षेत्र में तेंदुयें बड़ी संख्या में निवास करते थे जो आज आस-पास के जंगलों में निवास करते हैं।तेंदुये पृथ्वी पर प्लायोसीन या प्रारंभिक प्लिस्टोसीन काल में ही आ गये थे। ये अफ़्रीका महाद्वीप व एशिया महाद्वीप में बड़ी संख्या में पाये जाते हैं।
यह जन्तु जगत से ताल्लुक रखते हैं तथा इनका संघ-कॉर्डेटा, वर्ग-स्तनपायी, गण-मांसाहार, कुल-बिल्ली व वंश-पैंथेरा है। भारत में पाया जाने वाला तेंदुआ पैंथेरा पार्डस प्रजाति का है। तेंदुओं की कुल 9 उपप्रजातियाँ हैं जिनमें से 8 एशिया महाद्वीप में पायी जाती हैं- अफ्रिकी तेंदुआ, फ़ारसी तेंदुआ, हिन्दचीनी तेंदुआ, अमूर तेंदुआ, अरबी तेंदुआ, भारतीय तेंदुआ, जावाई तेंदुआ, उत्तर चीनी तेंदुआ, श्रीलंकाई तेंदुआ। तेंदुओं की संकर नस्ल भी भारत में पायी जाती है जिसका उदाहरण श्रीमान पोकॉक ने अपने लेख में दिया है। पोकॉक के अनुसार उन्होंने कोल्हापुर के चिड़ियाघर में शेरनी व तेंदुये के मिलन से उत्पन्न बच्चे को देखा थे जिसका शारीरिक गुण शेर व तेंदुयें दोनो से मेल खाता था। भारत में अन्य कई जगह पर संकर किस्म के तेंदुये पाये जाते हैं पर ये अत्यन्त ही विरले हैं।
तेंदुये 3 साल के उम्र के होने के बाद ही यौन सम्बन्ध बनाने में सक्षम हो पाते हैं तथा ये एक बार में दो बच्चे पैदा कर सकते हैं। तेंदुआ अत्यन्त ही सजग और चपल प्राणी होता है तथा यह छिपने की कला में महारथ हासिल किये हुये है। इसका आकार 7 फीट 9 इंच से लेकर 9 फीट तक हो सकता है तथा वजन 5-0 से 75 किलो तक का। इनका बदन छरहरा होता है तथा टाँगें लम्बी जो इनको दौड़नें में व पेड़ पर चढनें में मदद करती हैं। तेंदुओं का जबड़ा अत्यन्त मजबूत होता है, इनका ऊपरी जबड़ा बाघ की तरह तथा निचला जबड़ा शेर की तरह होता है।तेंदुये छोटे जानवरों का शिकार अधिकता से करते हैं इसी कारण वे मानव आबादी के पास आ जाते हैं जहाँ पर मुर्गी, बकरी आदि आसानी से मिल जाती है। तेंदुये कभी मानव के उपर प्रहार नही करते परन्तु यदि ये डर जाएं तो ये मानव के ऊपर भी आक्रमण कर देते हैं।
रामपुर में भी अक्सर तेंदुये मानव आबादी में आ जाते हैं जिसका मुख्य कारण है भोजन की तलाश तथा जंगलों में खाने योग्य जानवरों की कमी। तेंदुये प्रकृति द्वारा बनाये गये दुर्लभ जीवों में से एक हैं, परंतु इनका अवैध रूप से शिकार बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। एक समय सम्पूर्ण भारत तेंदुओं की उपस्थिति से ग़ुलज़ार था परन्तु आज पूरे भारत में मात्र 12000 से 14000 तेंदुये ही बचे हैं, जो कि सोच का विषय है।
1. द लेपर्ड इन इंडिया ए नेचुरल हिस्ट्री, जे.सी.डैनियल, नटराज पब्लिशर देहरादून, 1996
2. द वाइल्ड लाईफ इन इंडिया, ई.पी.गी, फारवर्ड, जवाहरलाल नेहरू, कॉलिंस लंदन, 1964 पृ.सं. 66-69
3. नेशनल सेंसस ऑफ लेपर्ड्स, 2014