कांच हमारे दैनिक जीवन में सर्वाधिक उपयोग होने वाले पदार्थों में से एक है। यह हाथों कि चूड़ियों, पानी के ग्लास से
लेकर, गगनचुंबी इमारतों की खिड़कियों तक, लगभग हर क्षेत्र में अपना प्रभुत्व जमाए हुए है। इमारतों में कांच के
उपयोग से न केवल इनकी सुंदरता में वृद्धि होती है, बल्कि लकड़ी की पर्याप्त बचत भी होती है, जिससे वन संसाधनों
का संरक्षण होता है, साथ ही कांच से जुड़े उद्योग आज देश में बड़े पैमाने पर रोजगार भी प्रदान कर रहे हैं।
भारत में मुख्य रूप से कांच उद्योग दो श्रेणियों में विभाजित है। पहला कुटीर उद्योग और दूसरा कारखाना उद्योग।
कुटीर उद्योग के अंतर्गत प्रायः छोटी भट्टियों में कारखानों में उत्पादित और नदियों की अशुद्ध रेत तथा उत्सर्जक
क्षार से निर्मित कांच की चूड़ियाँ बनाई जाती हैं। साथ ही कुटीर उद्योग के भीतर फूलदान, सजावटी कांच के बने
पदार्थ, टेबलवेयर, लैंप और लैंप-वेयर भी उत्पादित किए जाते हैं। भारत में कुटीर उद्योग मुख्य रूप से फिरोजाबाद
(उत्तर प्रदेश) और बेलगाम (कर्नाटक) में केंद्रित है, परंतु छोटी इकाइयों में यह पूरे देश में फैला हुआ है। दूसरी ओर
कारखाना उद्योग अधिकांशतः उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड और पंजाब तक ही सीमित है।
इस उद्योग श्रेणी में मुख्य रूप से शीट ग्लास, खोखले और दबाए गए माल (बल्ब, चिमनी, रिफ्लेक्टर और मोटर
हेडलाइट्स) का उत्पादन किया जाता है।
कांच के निर्माण के लिए बड़ी संख्या में कच्चे माल जैसे- रसायनों, कोयला और सिलिका रेत का उपयोग किया जाता
है।
रेत में लगभग 88 से 99% सिलिका होता है, जिसमें कुछ प्रतिशत लोहा, टाइटेनियम, कोबाल्ट और अन्य सामग्री
होती है। कांच की रेत एक विशेष प्रकार की रेत है, जो उच्च सिलिका सामग्री और लौह ऑक्साइड, क्रोमियम, कोबाल्ट
के साथ अन्य रंगों की कमी के कारण कांच बनाने के लिए उपयुक्त साबित होती है। कांच की बालू, बांग्लादेश-भारत
(मेघालय) सीमा के निकट सुनामगंज जिले के ताहिरपुर में लालघाट-लमाकाटा की सतह से 23.78 मीटर से लेकर
72.95 मीटर गहराई पर पाई जाती हैं।
उत्तर प्रदेश में स्थित फिरोजाबाद की चूड़ियां इस स्तर पर पसिद्ध हैं, कि इसे सुहाग नगरी के नाम से भी जाना जाता
है, और यह कांच की हस्तकला और माउथ ब्लो ग्लास वर्क के लिए अति प्रसिद्ध है। शहर में कम से कम 200
संगठित विनिर्माण इकाइयां हैं, जिनमें से 130 इकाइयां चूड़ियों का निर्माण कर रही हैं। लगभग 40 माउथ ब्लो
(mouth blown) तकनीक का अभ्यास कर रही हैं, और बाकी स्वचालित हैं, अथवा बोतल या कांच के गिलास का
निर्माण कर रहे हैं। हमारे रामपुर के ज़रदोज़ी कड़ाई कारीगर भरपूर मात्रा में फ़िरोज़ाबाद की बनी कांच की मनका का
उपयोग करते है।
यहाँ के कांच उद्द्योग का इतिहास लगभग 200 वर्ष पुराना माना जाता है। फ़िरोज़ाबाद न केवल भारत में बल्कि
विश्व स्तर पर सभी प्रकार के कांच के काम के लिए प्रसिद्ध है। कांच की वस्तुओं की मांग भारत और विदेशों में तेजी
से बढ़ी है, पूरे भारत के खुदरा विक्रेता कैटलॉग से डिज़ाइन का चयन करते हुए अपने ऑर्डर देते हैं। यहाँ कांच के बने
पदार्थ के निर्माण में चूना, रेत और सोडा अन्य राज्यों से लाना पड़ता है - चूना और रेत राजस्थान से आता है, जबकि
सोडा ऐश गुजरात से आता है। रंग ज्यादातर आयात किए जाते हैं, जिससे बनाई गई वस्तुओं की कीमत अधिक होती
है।
6 घंटे की पाली में काम करने वाले पुरुषों के समूह आसानी से एक दर्जन गिलास या एक पाली में 150 दर्जन भी बना
सकते हैं। भुगतान श्रमिकों के प्रदर्शन के आधार पर होता है, और 8 श्रमिकों का औसत समूह प्रति दिन 3,000 रुपये
से अधिक कमा सकता है। हालाँकि कांच की चूड़ी उद्योग में इन दिनों धातु, प्लास्टिक, लकड़ी जैसी अन्य सामग्रियों
से कड़ी प्रतिस्पर्धा है। ईंधन की उपलब्धता और उसकी अधिक कीमत भी कांच उद्पादकों के लिए दूसरी बड़ी चुनौती
है। वर्तमान में लगभग 199 ग्लास इकाइयां प्राकृतिक गैस से काम कर रही हैं, जबकि कम से कम 30 से 40 इकाइयां
गैस आपूर्ति जारी होने का इंतजार कर रही हैं। ग्लासब्लोइंग (गरम कांच को आकार देने के लिए निर्धारित आकृति के
भीतर कांच डालकर फूंक अथवा हवा भरी जाती है ) एक सदियों पुरानी कला है, जिसमें पिघले हुए कांच की बूँदों को
बोतलों और अन्य आकृतियों में आकार देना और ढालना शामिल है। विभिन्न कारकों के आधार पर, एक
ग्लासब्लोइंग को करियर के तौर पर देखने में थोड़ा संकोच हो सकता है, क्यों कि इस क्षेत्र में भविष्य बनाने के लिए
बहुत विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता होती है, और केवल कुछ मुट्ठी भर विश्वविद्यालय और ट्रेड स्कूल ग्लासब्लोइंग
में प्रमाण पत्र प्रदान करा सकते हैं। इस प्रकार का अनुभव प्राप्त करने के लिए ग्लासब्लोइंग प्रशिक्षण अक्सर
महत्वपूर्ण होता है। ग्लासब्लोइंग में करियर शुरू करने के लिए, उम्मीदवारों का स्नातक पूरा करना आवश्यक है।
प्रवेश की प्रक्रिया विश्वविद्यालय और पाठ्यक्रम के प्रकार पर निर्भर करती है, तथा स्नातकों को कला दीर्घाओं,
वास्तुकला फर्मों, संग्रहालयों या सरकारी क्षेत्र में रोजगार प्राप्त होता है, जिसके अंतर्गत आकांक्षी को ₹10,000 से
₹20,000 प्रति माह का प्रारंभिक भुगतान मिल सकता है। भारत में कुछ विश्वविद्यालय गिलासब्लोइंग वाले
पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं। कार्यक्रम की फीस विश्वविद्यालय से विश्वविद्यालय में अलग-अलग होती है।
संदर्भ
https://bit.ly/3jSwLzJ
https://bit.ly/2Uq9PNM
https://bit.ly/36esLBt
https://bit.ly/2Ty05B3
https://bit.ly/3qPgBIQ
https://bit.ly/3AIcsLB
चित्र संदर्भ
1. कांच से निर्मित चूड़ियों का एक चित्रण (youtube)
2. क्वार्ट्ज रेत (सिलिका) वाणिज्यिक कांच के उत्पादन में मुख्य कच्चा माल है जिसका एक चित्रण (wikimedia)
3.कांच से विभिन्न वस्तुओं का निर्माण करते श्रमिकों का एक चित्रण (flickr)
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