मिट्टी के बर्तन बनाने की कला पर पहिये के आविष्कार की महत्वपूर्ण भूमिका

मिट्टी के बर्तन से काँच व आभूषण तक
25-06-2021 09:19 AM
मिट्टी के बर्तन बनाने की कला पर पहिये के आविष्कार की महत्वपूर्ण भूमिका

भारत में मिट्टी के बर्तन बनाने की परंपरा बहुत पुरानी है। किसी देश के प्राचीन मृदभांड उसकी सभ्यता के बारे में बहुत कुछ बयां करते हैं। मिट्टी के बर्तन उन महत्वपूर्ण माध्यमों में से एक है जिसके माध्यम से पुरुषों ने अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है। हजारों वर्षों से मिट्टी के बर्तनों की कला अभिव्यक्ति के सबसे सुंदर रूपों में से एक रही है। मिट्टी के बर्तनों के एक टुकड़े के आकार और रंग में एक दृश्य संदेश होता है।भारत में मिट्टी के बर्तन बनाने की यह अद्भुत परंपरा की वास्तविक शुरुआत पानी और अनाज के भंडारण के लिए बर्तनों की मांग से हुई थी। तपायी गयी मिट्टी से बर्तन तथा अन्य बहुत सी वस्तुएं बनाना एक प्राचीन कला है, इस कला को कुंभकारी के नाम से जाना जाता है। विश्व के प्रत्येक हिस्सों में खुदाई के दौरान पुरातत्वविदों द्वारा मिट्टी से बने बर्तन या वस्तुएं प्राप्त की गयी हैं, और मिट्टी के बर्तनों का सबसे पुराना प्रमाण जापान (Japan) में 10,000 ईसा पूर्व का है। पहिए के आविष्कार से पहले, मिट्टी को कोइलिंग (Coiling) करके और फिर इसे हाथ से बार-बार घुमाकर बर्तनों को आकार दिया जाता था। हालांकि इस विधि का नुकसान यह था कि इस विधि से एक ही बर्तन को बनाने में काफी समय लग जाता था। और जैसे-जैसे समाज बढ़ता गया और व्यापार और वाणिज्य फलता-फूलता गया, मिट्टी से बने बर्तनों की मांग में भी वृद्धि को देखा जाने लगा। इसलिए मांग को पूरा करने के लिए बर्तन बनाने की पुरानी विधि धीरे-धीरे अपर्याप्त हो गई। जैसे-जैसे बर्तनों की मांग बढ़ी, कोइलिंग प्रक्रिया को बढ़ाने के लिए कई तरीके विकसित किए गए। कुछ कुम्हारों ने एक थाली (धीमा पहिया) का इस्तेमाल किया जिसे आसानी से बर्तनों के लिए सतह के रूप में बदल दिया जा सकता था। इसने कुम्हार का एक प्रकार से कुछ हद तक समय की बचत की।
पहिये का आविष्कार प्राचीन मेसोपोटामिया (Mesopotamia - वर्तमान इराक (Iraq)) में लगभग 3,000 ईसा पूर्व में हुआ था। और इसके कुछ ही समय के भीतर सुमेरियनों ने मिट्टी के बर्तनों को मोड़ने और आकार देने के लिए पहिये की अवधारणा को अपनाया गया। हालांकि ये प्रक्रिया पहले काफी धीमी हुआ करती थी, लेकिन वे बर्तनों को आकार देने के पिछले तरीकों की तुलना में काफी आरामदायक थी।बर्तनों के बड़े पैमाने पर उत्पादन के साथ मिट्टी के बर्तन बनाना जल्द ही एक उद्योग में बदल गया।एक मकबरे की दीवार पर एक प्राचीन मिस्र (Egyptian) की चित्रलिपि कुम्हार के पहिये के उपयोग से बड़े पैमाने पर उत्पादन को आलेख करती है।जल्द ही पहिये को तेज़ और सुचारू बनाने के लिए विभिन्न तकनीकों को अपनाया गया। 19वीं शताब्दी में, चक्के के द्वारा मिट्टी के बर्तनों को आकार देने की क्रिया पहिये की उच्च गति के कारण ही सम्भव हो पायी।यह आंशिक रूप से गति पहिये (एक पहिया जिसने गति प्राप्त करने के लिए कम घर्षण और उच्च वजन का लाभ उठाया) के फ्रांसीसी (French) विकास के कारण था। आज कुम्हार का पहिया बिजली से चलाया जाता है लेकिन इसका मूल सिद्धांत वही है।भारत में अधिकांश कुंहार का व्यापार आज भी पूरी तरह कार्यात्मक है, शिल्पशाला कुंभकारी उन लोगों की रचनात्मकता के लिए एक केंद्र बन गया है।यद्यपि मिट्टी के बर्तनों को मोटे तौर पर मिट्टी के बर्तन, पत्थर के पात्र और चीनी मिट्टी के बर्तन में विभाजित किया जा सकता है, आपकी पहली चुनौती केवल यह सीखने की होगी कि छोटी आकृतियाँ कैसे बनाई जाती हैं। भारत में भी विभिन्न प्रकार की कुंभकारी जैसे ब्लूपॉटरी (Blue Pottery), टेराकोटा (Terracotta), चिनहट कुंभकारी (Chinhat Pottery) आदि प्रचलित हैं। इसके प्रचलन के कारण ही अधिकतर लोग कुंभकारी के लिए व्यावसायिक मार्गदर्शन भी प्राप्त कर रहे हैं। मुंबई, दिल्ली, कलकत्ता आदि राज्यों में ऐसे संस्थान मौजूद हैं जहां कुंभकारी से सम्बंधित पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
भारत में मिट्टी के बर्तनों के निर्माण से सम्बंधित उद्योगों तथा कुम्हार समुदाय के सशक्तिकरण के लिए कुम्हार सशक्तिकरण कार्यक्रम, खादी और ग्रामोद्योग आयोग की एक पहल है जोकि देश के दूरस्थ स्थानों में रहने वाले कुम्हारों को लाभ पहुंचा रही है। इसके अंतर्गत उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, जम्मू और कश्मीर, हरियाणा, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, असम, गुजरात, तमिलनाडु, ओडिशा, तेलंगाना और बिहार के दूरस्थ स्थानों को आवरित किया गया है। यह कार्यक्रम कुम्हारों को उन्नत मिट्टी से बर्तन और अन्य उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण प्रदान करता है तथा नई तकनीक वाले कुंभकारी उपकरण जैसे इलेक्ट्रिक चाक (Electric chaaks) भी प्रदान करता है। इसके अलावा इस कार्यक्रम ने खादी और ग्रामोद्योग आयोग के प्रदर्शनियों के माध्यम से बाज़ार सम्बन्ध और दृश्यता भी प्रदान की है। इसके प्रभाव से इलेक्ट्रिक चाकों की आपूर्ति के कारण, कुम्हारों ने कम समय में अधिक उत्पादन किया है। वे अधिक शोर और अस्वस्थता से मुक्त हुए हैं जिसके साथ-साथ बिजली की खपत भी कम हुई है।

संदर्भ :-
https://bit.ly/3wR8a25
https://bit.ly/2T2XAWR
https://bit.ly/3wRb1YB
https://bit.ly/2UnLvfe
https://bit.ly/2SmHDKR

 चित्र संदर्भ
 1. कुम्हार के पहिये का एक चित्रण (flickr)
 2. मिट्टी के बर्तन बनाते कुम्हार का एक चित्रण (flickr)
 3. पहिया घुमाने के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली हाथ की स्थिति का एक चित्रण (wikimedia)