उत्तर प्रदेश के हरे-भरे मैदानों में कभी विशाल झुण्डों के रूप में पाया जाने वाला अद्वितीय मृग ‘बारहसिंघा’
(swamp deer) प्रदेश का राजकीय पशु होने के बावजूद अपने ही गृहराज्य में स्वयं के अस्तित्व को बचाने के
लिए बुरी तरह संघर्ष कर रहा है। ऐसे में इसका दिखाई देना एक सुखद आश्चर्य है। पिछले वर्षउत्तर प्रदेश के
मुजफ्फरनगर में साल के बीच में लुप्तप्राय प्रजाति के बारहसिंगा हिरणों के एक बड़े झुंड को देखा गया। दरसल
निरीक्षण करते समय जानसठ, (मुजफ्फरनगर में एक तहसील) के समीप लुप्तप्राय बारहसिंगा के एक बड़े झुंड
को देखा गया था। अतीत में असंख्य शिकारियों ने, कुछ दशक पहले इस दुर्लभ प्रजाति का शिकार किया था
और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलदली आर्द्रभूमि और तराई क्षेत्र की सीमा से लगे हिमालय की तलहटी से लगभग
इसका सफाया कर दिया था। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत, बारहसिंगा के शिकार पर रोक होने के
बावजूद भी शिकारियों द्वारा अवैध रूप से बड़ी संख्या में बारहसिंगा का शिकार किया गया। चार दशक पहले,
जब मध्य प्रदेश ने इस दुर्लभ प्रजाति के संरक्षण के लिए कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में संरक्षण कार्य शुरू किया था,
तब इन दलदली हिरणों की आबादी घटकर 66 हो गई थी, जबकि 1938 में हुई एक जनगणना के अनुसार उस
समय इस हिरण की आबादी 3,023 थी। परंतु संरक्षण से इनकी संख्या में सुधार आया है। वन्यजीव विशेषज्ञों,
ने इन्हें आर्द्रभूमि के आसपास इनके झुंडों को देखने के लिए ड्रोन फिट कैमरे (drone fitted cameras) लगाये
हैं। कई बार 150 दलदली हिरणों को हरिद्वार में राजाजी नेशनल पार्क (Rajaji National Park) के पास एक
दलदली घास के मैदान झिलमिल झील के पास देखा गया है और संभावना है कि इसकी कुल संख्या अब 250
से अधिक है।
इसी तरह के प्रयास उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भी किए गए है, इसकी वजह से दलदली आर्द्रभूमि में पाई जाने
वाली इस बड़ी हिरण प्रजाति को एक नया जीवन मिला है। सरकार, सहारनपुर संभाग के 33,000 एकड़ के
शिवालिक वन अभ्यारण्य (Shivalik Forests Reserve) को टाइगर रिजर्व (Tiger Reserve) घोषित करने
पर भी विचार कर रही है। वर्तनाम में इन्हें असम में काजीरंगा और मानस राष्ट्रीय उद्यान (Kaziranga and
Manas National Parks) में, मध्य प्रदेश में कान्हा और इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान (Kanha and Indravati
National Parks) में, उत्तर प्रदेश में दुधवा राष्ट्रीय उद्यान (Dudhwa National Park) में देखा जा सकता है।
बारासिंघा एक संवेदनशील प्रजाति है। वनों की कटाई के कारण उनके आवास का विनाश, खेती के लिए दलदलों
का विनाश, इसके सींगों के लिए शिकार और घरेलू मवेशियों द्वारा प्रेषित बीमारियों ने भारत में बारासिंघा के
पतन का कारण बना दिया है। 1951 तक, बारासिंघा के आवास कृषि और बस्तियों के कारण गंभीर रूप से दम
तोड़ देने लगे थे। बारासिंघा की आबादी 1938 में दर्ज की गई 3,023 से 1958 में 577, 1968 में 98 और
1970 में 66 हो गई।
स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि मध्य प्रदेश सरकार ने 1954 में बारहसिंगा के शिकार पर प्रतिबंध लगा
दिया।हालांकि इनके संरक्षण के लिए अभ्यारण्यों में कई बर्यक्रम चलाए जा रहे हैं।इसके आवासों की रक्षा के
लिए कई अल्पकालिक संरक्षण पहल की गई है। 1973 में कान्हा ने प्रोजेक्ट टाइगर को शामिल करने के साथ-
साथ बरसिंघा संरक्षण प्रथा की भी योजना बनाई थी। यह वर्षों से, विभिन्न रणनीतियों के तहत हिरण और
उसके आवासों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है। यहां के गांवों के स्थानांतरण ने लगभग 78 वर्ग
किलोमीटर भूमि के सुधार में मदद की है, जिसमें से अधिकांश को उत्कृष्ट घास के मैदान के रूप में विकसित
किया गया है। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व (Satpura Tiger Reserve) ने कई साल पहले इस हिरण प्रजाति की
एक छोटी आबादी का समर्थन किया था और वर्तमान में यह एक बहुत अच्छा बरसिंघा निवास स्थान है। कान्हा
में बरसिंघा एकल-प्रजाति संरक्षण का एक बेहतरीन उदाहरण है, जिसका मुख्य उद्देश्य लक्षित आबादी के
विलुप्त होने के जोखिम को कम करना है।
भारत में बरसिंघा की तीन उप-प्रजातियां पाई जाती हैं।जिन्हें संकटग्रस्त जीव की श्रेणी में रखा गया है। इन
प्रजातियों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची-1 के तहत शामिल किया गया है। मध्य प्रदेश
स्थित कान्हा नेशनल पार्क जो कि 940 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है, में भी इस जीव के संरक्षण के
प्रयास किए जा रहे हैं। वहीं उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश के दुधवा नेशनल पार्क में पर्यटक बारासिंगा को जंगल में
देख सकते हैं।यह एक मध्यम आकार का हिरण है, जो 30 सेमी की ऊंचाई तक बढ़ सकता है और 180
किलोग्राम वजनी हो सकता है। शरीर पर प्रायः पीले या भूरे रंग के बाल पाये जाते हैं। तराई इलाकों में
बारहसिंगा दलदलीय क्षेत्रों में रहता है और मध्य भारत में यह वनों के समीप स्थित घास के मैदानों में पाया
जाता है। ये सक्रिय जानवरों में से हैं जो दिन और रात दोनों समय चरते हैं। बारहसिंगा आमतौर पर झुंड में
देखे जाते हैं।
बारहसिंगा का सबसे विलक्षण अंग इसके सिर पर लगे सींग हैं, जिन्हें एंटीलर्स (Antlers) कहा
जाता है। एक वयस्क नर बरसिंघा के सींग 75 सेमी तक लंबे हो सकते हैं और 12 से अधिक अंक हो सकते
हैं। ज्यादातर इन सींगों की शाखाओं की संख्या 10-14 के बीच होती है और यही कारण हैं कि इन्हें बारहसिंगा
के नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ है 'बारह सींग वाला'।इसके सींग सामान्य सीगों की अपेक्षा अलग होते
हैं, क्योंकि यह युग्मित तथा शाखाओं वाली संरचना है, जो पूरी तरह से हड्डी से बनी होती हैं। विकासशील
सींगों में पानी और प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है और एक नरम, बालों जैसा आवरण होता है। इनके सींगों में
पाये जाने वाले प्रोटीन और अन्य उपयोगी तत्वों के कारण वर्तमान समय में इनकी मांग बहुत अधिक है।इनमें
रक्त वाहिकाएं और तंत्रिकाएं भी होती हैं। पर्यावरणीय परिवर्तनों के परिणामस्वरूप इसकी संरचना भी बदलती
जाती है। इसके विपरीत सामान्य सींग अशाखित व अयुग्मित होते हैं तथा केराटिन (Keratin) नामक पदार्थ
द्वारा आवरित किए जाते हैं।यह स्थायी होते हैं तथा विभिन्न प्रजातियों में लगातार बढ़ते जाते हैं। इन दोनों के
कार्य भी अलग-अलग होते हैं। एंटीलर्स मुख्य रूप से प्रजनन के मौसम के दौरान साथी चयन के लिए उपयोग
किए जाते हैं जबकि सामान्य सींग आम तौर पर सामाजिक प्रभुत्व, क्षेत्रीयता और शिकारियों से बचने के लिए
उपयोग किये जाते हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/3xEzFM1
https://bit.ly/3gJE9LW
https://bit.ly/3cXqeQ0
https://bit.ly/2UhujIg
https://bit.ly/2UlcIiB
चित्र संदर्भ
1. बारहसिंघा का एक चित्रण (wikipedia)
2. मध्य भारत के कान्हा घास के मैदान में मादा बरसिंघा हिरण का एक चित्रण (wikimedia)
3. बारहसिंघा के झुंड का एक चित्रण (flickr)
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