किसी क्षेत्र विशेष में रहने वाले एक ही प्रजाति के जीवों, जिनमें प्राय: परस्पर प्रजनन की क्षमता होती है,
को वहां की जनसंख्या के रूप में परिभाषित किया जाता है। इस स्थित में हम उन मनुष्यों की संख्या के बारे
में बात कर रहे हैं जो किसी शहर या कस्बे, क्षेत्र, देश या दुनिया में रहते हैं। जल्द ही हम विश्व जनसंख्या
दिवस मनाने वाले हैं, आईए इस दिन पर एक नजर डालते हैं और देखते हैं कि यह दिवस क्या होता है और
कैसे अस्तित्व में आया?1987 में जब विश्व की आबादी 5 बिलियन पहुंच गयी,जिसको मद्देनजर रखते हुए
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की गवर्निंग काउंसिल (Governing Council) द्वारा1989 से विश्व
जनसंख्या दिवस मनाने की घोषणा की गयी।विश्व जनसंख्या दिवस परिवार नियोजन, गोद लेने, लैंगिक
समानता, गरीबी, मातृ स्वास्थ्य और मानवाधिकारों के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के प्रयास में
मनाया जाता है। यह लोगों को दुनिया के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र और समाज के विकास में होने वाले
प्रतिकूल प्रभावों को दिखाने का भी प्रयास करता है।
प्रत्येक वर्ष संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम दुनिया से संबंधित किसी विशेष मुद्दे पर प्रकाश डालने हेतु एक
विषय या थीम (Theme) प्रदान करता है और वर्ष 2020 का विषय महिलाओं और लड़कियों के स्वास्थ्य
और अधिकारों पर केंद्रित था। महामारी के दौरान, बढ़ती बेरोजगारी के साथ, महिलाओं का स्वास्थ्य और
कल्याण न केवल कोरोनावायरस से बल्कि लिंग आधारित हिंसा में वृद्धि से प्रभावित हुआ है।संयुक्त राष्ट्र
जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) (United Nations Population Fund (UNFPA)) द्वारा किए गए शोध
ने यह साबित कर दिया है कि यदि किसी देश में 6 महीने से अधिक समय तक लॉकडाउन रहता है तो यह
स्वास्थ्य सेवाओं को गंभीर रूप से बाधित कर सकता है।
"निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 47 मिलियन
महिलाएं आधुनिक गर्भ निरोधकों का उपयोग करने में सक्षम नहीं हो पाएंगी, जिसके परिणामस्वरूप 7
मिलियन अनपेक्षित गर्भधारण हो सकते हैं।" यूएनएफपीए और संयुक्त राष्ट्र के अन्य संगठनोंएक साथ
मिलकर समाज के कमजोर समुदायों को इस दौरान पर्याप्त सहायता प्रदान करने की दिशा में कार्य कर रहे
हैं।क्योंकि कोरोना के चलते जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम को संचालित करने वाली सभाओं का आयोजन
नहीं कियाजा सकता है तो यूएनएफपीए ने महामारी के दौरान यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य आवश्यकताओं
और महिलाओं और लड़कियों की कमजोरियों के बारे में जागरूकता बढ़ानेके उद्देश्य से ऑनलाइन
(Online) आंकड़े और दिशानिर्देश साझा करके किए हैं।
कोविड-19 लॉकडाउन (COVID-19 lockdown) ने भारत के जनसंख्या नियंत्रण उपायों को खतरे में
डाल दिया है, जिससे जनसंख्या विस्फोट की आशंका और अधिक बढ़ गई है।द वीक (THE WEEK) के
साथ एक साक्षात्कार में, भारत में वंचित महिलाओं के उत्थान के लिए काम करने वाली संस्था पॉपुलेशन
फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएफआई) (Population Foundation of India (PFI)) की कार्यकारी निदेशक
पूनम मुत्तरेजा ने इस समस्या की भयावहता के बारे में बताया। मुत्तरेजा कहती हैं, ''परिवार नियोजन
सेवाओं के अभाव के साथ-साथ गर्भ निरोधकों की सीमित आपूर्ति के परिणामस्वरूप अनियोजित जन्म,
गर्भपात और अतिरिक्त प्रसव की संख्या में वृद्धि होगी।''उ.प्र. जैसे राज्यों में, कंडोम और गर्भ निरोधकों के
वितरण में शामिल संकट से निपटने के लिए पहले से ही प्रयास किए जा रहे हैं।
सरकार ने कोविड-19 के दौरान प्रदान की जाने वाली आवश्यक सेवाओं में परिवार नियोजन सेवाओं को
शामिल किया जो कि एक स्वागत योग्य कदम कहा जा सकता है। इसके साथ ही, फार्मेसियों
(pharmacies) में कंडोम, मौखिक गर्भनिरोधक गोलियों, आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियों जैसी स्वयं
देखभाल विधियों की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए। परिवार नियोजन सेवाओं तक निरंतर पहुंच
सुनिश्चित करने के लिए आशा और अन्य समुदाय स्तर के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का समर्थन किया जाना
चाहिए।प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं के लिए फाउंडेशन (Foundation for Reproductive Health
Services) ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की जो इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे कोविड-19 ने
अनपेक्षित गर्भधारण और असुरक्षित गर्भपात को जन्म दिया है। स्थिति चिंताजनक है। पॉपुलेशन फाउंडेशन
ऑफ इंडिया (पीएफआई) (Population Foundation of India (PFI)) न केवल कोविड-19 संकट से
निपटने में सरकार का समर्थनकर रहा है, बल्कि परिवार नियोजन सहित स्वास्थ्य सेवाओं के प्रावधान पर
कोविड-19 के प्रभाव का आकलन करने के लिए सबूत भी जुटा रहा है।
भारत में जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम बीसवीं सदी के अंत से ही प्रारंभ हो गए थे, भारत की पूर्व प्रधान
मंत्री इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल की शुरुआत की। इस कदम के 'पांच सूत्री कार्यक्रम' के प्रमुख
सिद्धांतों में से एक जनसंख्या वृद्धि को सीमित करने के लिए नसबंदी अभियान था। इनके शासनकाल के
दौरान पुरुष नसबंदी पर ध्यान केंद्रित करने वाले नसबंदी शिविरों को उनकी योजनाओं के विरोध के प्रमुख
स्रोतों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया गया था।
भारत की अधिक जनसंख्या इसकी आंतरिक समस्या के
साथ वैश्विक ध्यानाकर्षण का विषय भी बनी हुयी है। जनसंख्या परिषद (Population Council), फोर्ड
फाउंडेशन (Ford Foundation), रॉकफेलर फाउंडेशन (Rockefeller Foundation) और यूएसएआईडी
(USAID ) जैसे संगठनों ने इसे संबोधित करने के उपायों को आगे बढ़ाने हेतु भारत के राजनीतिक
अभिजात वर्ग के साथ हाथ मिलाया। इसने लोकप्रिय मीडिया (जैसे 'हम दो, हमारे दो') में संदेशों के माध्यम
से एक संस्कृति का निर्माण किया और ठोस लक्ष्य-संचालित स्वास्थ्य नीतियों ने सरकार द्वारा निर्धारित
नसबंदी कोटा को पूरा करने का प्रयास किया।इन अभियानों का एक स्पष्ट उद्देश्य था कि एक अच्छा
भारतीय होने के लिए, आपके दो से अधिक बच्चे नहीं होने चाहिए (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने स्वतंत्रता
दिवस के भाषण में इस भावना को पुनर्जीवित किया, जब उन्होंने कहा कि छोटे परिवार अधिक 'देशभक्त'
हैं)। राज्य ने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए आधुनिक विज्ञान और चिकित्सा पर भी दबाव डाला कि यदि
भारत को एक 'आधुनिक' राष्ट्र बनना है, तो भारतीयों को प्रति परिवार दो बच्चे पैदा करने के लिए प्रतिबद्ध
होना होगा।भारत में कुल प्रजनन दर 1960 में प्रति महिला लगभग 6 बच्चों से गिरकर आज 2.1 हो गई है।
यह आंकड़ा प्रतिस्थापन स्तर के बहुत करीब है, यह वह संख्या है जो जनसंख्या में प्रत्येक महिला को वहन
करने की आवश्यकता होती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जनसंख्या का आकार एक पीढ़ी से
दूसरी पीढ़ी में बदल दिया जाए। भारत की कुल प्रजनन दर में गिरावट तब तक जारी रहेगी जब तक
महिलाओं को आर्थिक स्वायत्तता के साथ-साथ प्रजनन स्वायत्तता प्राप्त है।
संदर्भ:
https://bit.ly/2REOPBE
https://bit.ly/2TiqWQM
https://bit.ly/3gq8M7E
https://bit.ly/3xhBFKh
चित्र संदर्भ
1. जनसंख्या भीड़ और कोरोना वायरस का एक चित्रण (flickr,unsplash)
2. लॉकडाउन में शहर का एक चित्रण (youtube)
3. भारत में गर्भनिरोधक प्रसार दर का एक चित्रण (flickr)
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