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भारत में पहली बार प्रिंटमेकिंग 1556 से चलन में आई।
हालांकि इस बात के साक्ष्य भी मिले हैं, कि भारत में चित्रों के दोहराव की प्रक्रिया सिंधु घाटी
सभ्यता से भी पहले शुरू हो गई थी, क्यों कि इस सभ्यता में भूमि के अनुदान को तांबे की
प्लेटों पर सूचनाओं को उकेरकर दर्ज किया गया था। भारत में प्रिंटमेकिंग तकनीक से छपने
वाली पहली किताब गैस्पर डी लियो(Gaspar De Leo) की कॉम्पेंडियो स्पिरिचुअल दा वीडे
क्रिस्टा(Compendio Spiritual da Vide Crista) “क्रिश्चियन लाइफ का आध्यात्मिक
संग्रह” है, जो भारत के गोवा में 1561के दौरान छपी थी। भारत में इंटैग्लियो प्रिंटिंग
(intaglio printing) की शुरुवात डेनिश मिशनरी (Danish missionary), बार्थोलोम्यू
ज़िजेनबाल्ग(Bartholomew Zijenbalg) द्वारा की गई थी। उन्होंने “द इवेंजेलिस्ट्स एंड
द एक्ट्स ऑफ द एपोस्टल्स” (The Evangelists and the Acts of the Apostles)
नामक एक पुस्तक प्रकाशित की, जो तमिलनाडू के एक जिले ट्रैंक्यूबर (Tranquebar; जो
तत्कालीन समय में डेनमार्क का उपनिवेश) में भी छपी थी। दरअसल यह किताब इसलिए
बेहद खास थी, क्यों कि इसके शुरुआती पन्ने पर भूरे रंग की एक नक़्क़ाशी छपी हुई थी,
जिसके साथ ही भारत विश्व में रंगीन छपाई करने वाला पहला देश बन गया। इसी लेखक
कि एक अन्य पुस्तक, ग्रैमैटिका डैमुलिका (Grammatica Damulica) प्लेट उत्कीर्णन
(प्लेट को निश्चित आकार में काटना) तकनीक से छपी पहली पुस्तक बनी। भारत में सबसे
पहले मुद्रित चित्रण (एक लकड़ी का ब्लॉक प्रिंट) 1806 में तंजौर में छपी एक पुस्तक
बालबोध मुक्तावली (Balbodh Muktavali) पाया जा सकता है।
1870 के दशक में
कैलेंडर, पुस्तकों और अन्य प्रकाशनों के लिए मुद्रित चित्रों की मांग बढ़ने के साथ-साथ
सिंगल शीट डिस्प्ले प्रिंट (ललित कला प्रिंट) के रूप में बेहद लोकप्रिय हुआ, और इस प्रकार
यह छपाई शैली पूरे भारत में फलने-फूलने लगी।
रामपुर रज़ा पुस्तकालय में भी "अकबर के शासनकाल के प्रारंभिक वर्षों के तिलिस्म" नामक
एक अनूठा एल्बम है। जिसमें ज्योतिष और जादुई शिक्षा के अलावा समाज के विभिन्न
स्तरों के जीवन को चित्रित करने वाले 157 लघुचित्र शामिल हैं। एल्बम में अवध नवाबों की
मुहरें भी हैं जो इंगित करती हैं कि, यह स्थान कभी उनके कब्जे में था। पुस्तकालय संग्रह में
संतों और सूफियों के चित्र वाला एक एल्बम भी है।
प्रिंटमेकिंग मैट्रिक्स (किसी पटल पर कुरेदे गए चित्रण ) द्वारा छवियों को दूसरी सतह,
अक्सर कागज या कपड़े पर स्थानांतरित करने की प्रक्रिया है। पारंपरिक प्रिंटमेकिंग
तकनीकों में वुडकट, नक़्क़ाशी, उत्कीर्णन और लिथोग्राफी शामिल हैं, जबकि आधुनिक
कलाकार स्क्रीन प्रिंटिंग तकनीक का इस्तेमाल करते हैं।
मैट्रिक्स एक प्रकार की आकृति
(टेम्पलेट) होती है, जिसे लकड़ी, धातु या कांच से निर्मित किया जाता है। जब मैट्रिक्स की
सतह पर आकृतियों को उकेरा जाता है, जिसके बाद उन्हें स्याही या रंगों में डुबोकर दूसरी
सतह पर रखने मैट्रिक्स की नक्काशी का उभरा हुआ तल दूसरे माध्यम पर छप जाता है।
कागज, कपड़े अथवा किसी अन्य सतह पर छपाई के लिए विभिन्न प्रिंट मेकिंग तकनीकों
का प्रयोग किया जाता है।
1. वुडकट (woodcut): यह प्रिंटमेकिंग का सबसे पुराना स्वरूप है, जिसमें लकड़ी के
ब्लॉक की सतह में चाकू और अन्य उपकरणों की सहायता से डिजाइन बनाई जाती है,
ब्लॉक के कट जाने के बाद उसके उभरे हुए में स्याही लगाकर उसे मुद्रित किया जाता
है। जबकि ब्लॉक के गहरे भाग में स्याही नहीं जाती इसलिए केवल उभरा हुआ भाग
ही दूसरी सतह पर छपता है।
2. नक़्क़ाशी (Etching) इस प्रिंट मेकिंग प्रक्रिया में किसी लोहे, जस्ते, अथवा तांबे की
सपाट चादर पर किसी नुकीले औजार (सुई) का उपयोग करके नक्काशी की जाती है।
जिसके पश्चात नक्काशी की गयी परत को मोम इत्यादि से साफ़ किया जाता है।
सफाई होने के बाद इस चादर को एसिड में डुबो के कुछ देर रखा जाता है, दरअसल
एसिड उभरे हुए भाग को गला देता है, निकलने के बाद टारलेटन चीर (भारी स्टार्च
युक्त चीज़ीक्लॉथ) का उपयोग करके प्लेट को और साफ किया जाता है। अब यदि
इस प्लेट में स्याही लगाकर ऊपर से कागज बिछाने के बाद चादर पर उकेरी नक्काशी
कागज पर छप जाती है।
3. लिथोग्राफी(lithography) इस प्रिंटमेकिंग प्रक्रिया में एक डिजाइन एक फ्लैट
पत्थर (या तैयार धातु प्लेट, आमतौर पर जस्ता या एल्यूमीनियम) पर खींचा उकेरा
जाता है, और रासायनिक प्रतिक्रिया के माध्यम से दूसरी सतह पर चिपकाया जाता
है।
4. एक्वाटिंट (aquatint): इस तकनीक में भी Etching की ही भांति धातु की प्लेट में
चित्र छापने के लिए, एसिड रेखाएं बनाने के लिए सुई का इस्तेमाल किया जाता है।
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