पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने के लिए अनेकों घटकों की आवश्यकता होती है, जिसमें से मिट्टी या
मृदा भी एक है। मिट्टी निश्चित रूप से हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्यों कि विभिन्न प्रकार के पौधे
जिन पर हम प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर हैं, मिट्टी में ही उगते हैं। इसलिए अपने ग्रह को सुंदर
बनाए रखने के लिए इसे स्वस्थ रखना अत्यंत आवश्यक है। भारत में मिट्टी की एक विस्तृत विविधता
देखने को मिलती है, जो विभिन्न कार्यों के लिए उपयोग में लायी जाती है।वहीं,रामपुर की यदि बात करें,
तो यहां दोमट और सिल्टी मिट्टी मुख्य रूप से पायी जाती है। यहां महीन बनावट वाली कार्बनिक पदार्थ
से समृद्ध मिट्टी तराई क्षेत्र में मौजूद है, तथा दोमट मिट्टी उच्च भूमि में विकसित हुई है।इसी प्रकार से
सिल्टी मिट्टी छोटे जलोढ़ मैदान में पायी जाती है। चूंकि, यहां पायी जाने वाली मिट्टी का उपयोग वन,
कृषि, चारागाह, उद्यान आदि के लिए किया जाता है, इसलिए मिट्टी के प्रकार ने जिले के भूमि उपयोग
पैटर्न को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।मिट्टी का हमारे जीवन में अत्यधिक महत्व है,
लेकिन प्रकृति के अन्य सभी तत्वों की तरह, यह भी प्रदूषण से ग्रसित है तथा मानव गतिविधियों के
कारण यह प्रदूषण निरंतर बढ़ता जा रहा है। मृदा प्रदूषणों के मुख्य कारणों में औद्योगिक अपशिष्ट,
वनोन्मूलन, कृषि अपशिष्ट,रासायनिक कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग, अत्यधिक जुताई, सिंचाई और
चराई, भंडारण और परिवहन के दौरान तेल का रिसाव, अम्लीय वर्षा आदि शामिल हैं।इन सभी कारणों
की वजह से मिट्टी की संरचना में परिवर्तन होता है, तथा उसमें मौजूद आवश्यक पोषक तत्व नष्ट हो
जाते हैं, जिससे मृदा प्रदूषण होता है। परिणामस्वरूप मिट्टी की उर्वरता या तो कम हो जाती है या फिर
नष्ट हो जाती है। मृदा प्रदूषण हमारे दैनिक जीवन के लगभग सभी पहलुओं को प्रभावित करता है तथा
यह मुख्य रूप से फसलों की पैदावार और हमारे स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है। प्रदूषित मिट्टी पर उगाई जाने
वाली फसलें और पौधे अधिकांश प्रदूषकों को अवशोषित कर लेते हैं, जिसका असर उनकी वृद्धि तथा
उत्पादकता पर पड़ता है। जब इनका सेवन मानव द्वारा किया जाता है, तब अनेकों प्रदूषक शरीर में चले
जाते हैं, जो बीमारियों का कारण बनते हैं। मृदा प्रदूषण से मरूस्थलीकरण भी हो सकता है, जो व्यापक
अकाल को जन्म दे सकता है।इसके अलावा प्रदूषण के कारण मिट्टी में मौजूद जीव या तो मारे जाते हैं,
या अन्य स्थानों पर चले जाते हैं, जिससे खाद्य श्रृंखलापर बुरा असर पड़ता है।भारत में मिट्टी का
प्रदूषण बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक से औद्योगिक क्षेत्र में तीव्र विकास के कारण निरंतर बढ़ता जा
रहा है। तीव्र औद्योगिक वृद्धि ने पर्यावरण के लिए खतरे को और भी बढ़ा दिया है। मिट्टी का संरक्षण
अत्यधिक आवश्यक है, क्यों कि इसका सम्बंध खाद्य सुरक्षा से भी है। मिट्टी की गुणवत्ता उगाए गए
खाद्य पदार्थों की मात्रा और गुणवत्ता को निर्धारित करती है। इसलिए वैश्विक खाद्य सुरक्षा को बनाए
रखने के लिए मिट्टी की भौतिक, रासायनिक और जैविक अखंडता की रक्षा करना महत्वपूर्ण है। वर्तमान
समय में मिट्टी विश्व स्तर पर 7 अरब लोगों के लिए पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराने में सहायता प्रदान
कर रही है। 2050 तक 900-1000 करोड़ लोगों को भोजन प्रदान करने के लिए जहां भोजन की
सामाजिक-आर्थिक उपलब्धता और खाद्य उत्पादन क्षमता में मजबूती से सुधार करना होगा, वहीं भूमि
उपयोगकर्ताओं को मिट्टी के स्थायित्व और उत्पादकता को भी अच्छी तरह से प्रबंधित करना होगा।
वर्तमान समय में फैली कोरोना महामारी ने खाद्य सुरक्षा को अत्यधिक प्रभावित किया है। अंतर्राष्ट्रीय
संगठन और अन्य श्वसन विषाणुओं पर आधारित वर्तमान साक्ष्यों के अनुसार, कोरोना महामारी खाद्य
सुरक्षा का मुद्दा नहीं है। अर्थात ऐसा कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है, जो यह बताता हो, कि कोरोना विषाणु
का प्रसार भोजन या खाद्य पैकेजिंग के कारण हो सकता है। लेकिन फिर भी इस संदर्भ में एहतियात
बरतना उचित प्रतीत होता है, क्यों कि भले ही भोजन या खाद्य पैकेजिंग सीधे तौर पर संक्रमण का
कारण न बने, लेकिन इनको वहन करने वाला व्यक्ति यदि संक्रमित होता है, तो विषाणु भोज्य पदार्थ की
सतह पर कई दिनों तक मौजूद रह सकता है, तथा किसी अन्य व्यक्ति के संपर्क में आने पर महामारी
के फैलने का कारण बन सकता है।चूंकि, महामारी के कारण खाद्य पदार्थों की उपलब्धता, पहुंच, स्थिरता
और उपभोग में व्यवधान उत्पन्न हुआ है, इसलिए खाद्य और पोषण संबंधी असुरक्षा की समस्या और
भी बढ़ गयी है।खाद्य प्रणाली में बाधा उत्पन्न होने से पौधों, जानवरों और मनुष्यों के जीवन तथा
आजीविका पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बुरा प्रभाव पड़ा है।वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह अनुमान
लगाया गया है,कि समय के साथ आगे भी इस प्रकार के परिणाम देखने पड़ सकते हैं, इसलिए खाद्य
प्रणालियों के उचित संचालन हेतु भविष्य के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है।
कोरोना महामारी के इस दौर में खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने में मिट्टी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा
सकती है।खाद्य श्रृंखलाओं में व्यवधान, कार्यबल की कमी, बंद सीमाओं और राष्ट्रीय तालाबंदी के कारण
खाद्य सुरक्षा खतरे में है तथा इसका प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। खाद्य पदार्थों के भंडारण में
कमी तथा मूल्य में अत्यधिक वृद्धि ने लोगों को संसाधित खाद्य पदार्थ खाने को मजबूर किया है, जो
मधुमेह जैसे रोगों में वृद्धि करता है।यदि शरीर पहले से ही किसी रोग की चपेट में है, तो ऐसे में
कोरोना विषाणु के संक्रमण की संभावना और भी अधिक बढ़ जाती है।यह देखते हुए स्थानीय खाद्य
उत्पादन पर अधिक जोर दिया जा रहा है।स्थानीय खाद्य उत्पादन पर निर्भर रहने से लोग भरपूर मात्रा
में पौष्टिक आहार का सेवन कर पाएंगे, जिसकी लागत भी बहुत कम होगी, किंतु ऐसा तभी संभव होगा,
जब स्थानीय खाद्य उत्पादन के लिए उपयुक्त मिट्टी उपलब्ध होगी। स्थानीय खाद्य उत्पादन की
उत्पादकता और गुणवत्ता को अच्छी उर्वरक मिट्टी के माध्यम से बढ़ाया जा सकता है। अत्यधिक
स्थानीय खाद्य उत्पादन संवेदनशील क्षेत्रों की अधिक गहन खेती तथा मिट्टी के क्षरण को बढ़ावा दे
सकता है, लेकिन यदि मिट्टी की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए उचित प्रबंधन किया जाता है, तो
मिट्टी,खाद्य सुरक्षा से सम्बंधित समस्याओं को कम करने में मदद कर सकती है।
मिट्टी के प्रदूषण को रोकने तथा उसकी गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं।जैसे -
खेती के लिए हमेशा जैविक तरीकों का उपयोग किया जाना चाहिए। रासायनिक कीटनाशकों और उर्वरकों
का उपयोग कम करना चाहिए।वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करना चाहिए। घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट के
उचित निपटान के लिए पुनः चक्रण और पुन: उपयोग के तरीकों को अपनाना चाहिए।प्रत्येक व्यक्ति को
मिट्टी के संरक्षण के लिए जागरूक होना चाहिए, तथा इसके बारे में जागरूकता फैलानी चाहिए।
चित्र संदर्भ
1. क्यारी में उगी सब्जियों का एक चित्रण (Unsplash)
2. मृदा प्रदूषण का एक चित्रण (wikimedia )
3. मिट्टी में उग रहे पोंधे का एक चित्रण (wikimedia)