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मृदा प्रदूषणों के मुख्य कारणों में औद्योगिक अपशिष्ट,
वनोन्मूलन, कृषि अपशिष्ट,रासायनिक कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग, अत्यधिक जुताई, सिंचाई और
चराई, भंडारण और परिवहन के दौरान तेल का रिसाव, अम्लीय वर्षा आदि शामिल हैं।इन सभी कारणों
की वजह से मिट्टी की संरचना में परिवर्तन होता है, तथा उसमें मौजूद आवश्यक पोषक तत्व नष्ट हो
जाते हैं, जिससे मृदा प्रदूषण होता है। परिणामस्वरूप मिट्टी की उर्वरता या तो कम हो जाती है या फिर
नष्ट हो जाती है। मृदा प्रदूषण हमारे दैनिक जीवन के लगभग सभी पहलुओं को प्रभावित करता है तथा
यह मुख्य रूप से फसलों की पैदावार और हमारे स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है। प्रदूषित मिट्टी पर उगाई जाने
वाली फसलें और पौधे अधिकांश प्रदूषकों को अवशोषित कर लेते हैं, जिसका असर उनकी वृद्धि तथा
उत्पादकता पर पड़ता है। जब इनका सेवन मानव द्वारा किया जाता है, तब अनेकों प्रदूषक शरीर में चले
जाते हैं, जो बीमारियों का कारण बनते हैं। मृदा प्रदूषण से मरूस्थलीकरण भी हो सकता है, जो व्यापक
अकाल को जन्म दे सकता है।इसके अलावा प्रदूषण के कारण मिट्टी में मौजूद जीव या तो मारे जाते हैं,
या अन्य स्थानों पर चले जाते हैं, जिससे खाद्य श्रृंखलापर बुरा असर पड़ता है।भारत में मिट्टी का
प्रदूषण बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक से औद्योगिक क्षेत्र में तीव्र विकास के कारण निरंतर बढ़ता जा
रहा है।
स्थानीय खाद्य उत्पादन की
उत्पादकता और गुणवत्ता को अच्छी उर्वरक मिट्टी के माध्यम से बढ़ाया जा सकता है। अत्यधिक
स्थानीय खाद्य उत्पादन संवेदनशील क्षेत्रों की अधिक गहन खेती तथा मिट्टी के क्षरण को बढ़ावा दे
सकता है, लेकिन यदि मिट्टी की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए उचित प्रबंधन किया जाता है, तो
मिट्टी,खाद्य सुरक्षा से सम्बंधित समस्याओं को कम करने में मदद कर सकती है।
मिट्टी के प्रदूषण को रोकने तथा उसकी गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं।जैसे -
खेती के लिए हमेशा जैविक तरीकों का उपयोग किया जाना चाहिए। रासायनिक कीटनाशकों और उर्वरकों
का उपयोग कम करना चाहिए।वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करना चाहिए। घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट के
उचित निपटान के लिए पुनः चक्रण और पुन: उपयोग के तरीकों को अपनाना चाहिए।प्रत्येक व्यक्ति को
मिट्टी के संरक्षण के लिए जागरूक होना चाहिए, तथा इसके बारे में जागरूकता फैलानी चाहिए।