पार्कौर (Parkour) एक प्रकार का ऐसा प्रशिक्षण, खेल या गतिविधि है, जो मुख्य रूप से शरीर की गति पर आधारित है। यह सैन्य अवरोध कोर्स प्रशिक्षण से विकसित हुआ है। इस खेल या प्रशिक्षण के अंतर्गत अभ्यासकर्ता जिसे ट्रेसर (Tracers) भी कहा जाता है, को एक जटिल वातावरण में बिना किसी सहायक उपकरण के एक स्थान से दूसरे स्थान में जाना होता है, किंतु एक स्थान से दूसरे स्थान में जाते समय उसे सबसे कुशल तरीके का उपयोग करना होता है, तथा जितनी तेज गति से संभव हो, उतनी तेज गति से दूसरे स्थान पर पहुंचना होता है। भारत की पहली राष्ट्रीय पार्कौर प्रतियोगिता में उत्तर प्रदेश के रामपुर के मूल निवासी ने शीर्ष स्थान प्राप्त किया। यह प्रतियोगिता 2014 में मुंबई में आयोजित की गयी थी। पार्कौर शब्द की उत्पत्ति ‘पारकोर्स डू कॉम्बैटेंट’ (Parcours du combatant – अवरोध प्रशिक्षण) से हुई है। यह सैन्य प्रशिक्षण का एक पुराना तरीका है, जिसमें सैनिकों को विभिन्न बाधाएं पार करते हुए आगे बढ़ना होता है। पश्चिमी यूरोप (Europe) में, पार्कौर को फ्रांसीसी नौसेना अधिकारी जॉर्जेस हेबर्ट (Georges Hébert) द्वारा विकसित किया गया था, जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध से पहले एथलेटिक कौशल को बढ़ावा दिया। यह कौशल उन स्वदेशी जनजातियों के मॉडल या वास्तविक जीवन पर आधारित था, जिन्हें वे अफ्रीका (Africa) में मिले थे। उन्होंने कहा, कि “उनके शरीर शानदार, लचीले, फुर्तीले, कुशल, स्थायी और प्रतिरोधी थे, लेकिन उनके पास जिमनास्टिक में कोई अन्य शिक्षक नहीं था। प्रकृति में जो वास्तविक जीवन वह जी रहे थे, उसके कारण उनका शरीर ऐसा बन गया था। पार्कौर आधिकारिक तौर पर एक खेल बन गया तथा लोग इसमें सक्रिय रूप से भाग लेने लगे, जिससे इसने स्केटबोर्डिंग (Skateboarding) और रॉक क्लाइम्बिंग (Rock climbing) जैसी गतिविधियों को पीछे छोड़ दिया। इसमें किसी सहायक उपकरण की आवश्यकता नहीं होती, इसलिए यह फिल्मों में एक्शन दृश्यों का एक लोकप्रिय हिस्सा बन गया है। फिल्म निर्देशक पार्कौर अभ्यासकर्ताओं को स्टंट कलाकार के रूप में भर्ती कर रहे हैं।
रामपुर का अपना पार्कौर क्लब है तथा भारतीय पार्कौर के अग्रदूतों में रामपुर के लोग भी शामिल हैं। गो प्रो (Go pro) और ऑनलाइन वीडियो प्लेटफॉर्म जैसे माउंटेड कैमरों की बढ़ती लोकप्रियता के साथ पार्कौर एक ऐसे अनुभव में बदल गया है, जिसे देखकर लगता है, कि हम स्वयं इस गतिविधि या खेल का हिस्सा हैं। ऐसा इसलिए है, क्यों कि दर्शक माउंटेड कैमरा की मदद से कलाकारों की दृष्टि से इस गतिविधि का अनुभव कर पाता है। ऐसे अनुभव के कारण ही इसकी लोकप्रियता में अत्यधिक वृद्धि हो रही है। तो आइए, एक मुक्त धावक के दृष्टिकोण से पार्कौर का एक वीडियो तथा भारत में पार्कौर के अन्य उदाहरणों को देखें।