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हर वर्ष गर्मियों में लाल चीटियों के प्रजाति में से फोर्मिका संगुनिआ (Formica singunea) अन्य चीटियों के प्रजाति को पकड़ने के लिए जाती है , वे अन्य चीटियों के घोसलो में घुसपैठ करके वहां के रानी को मारकर वहां के बच्चो (प्यूपा) का अपरहण करके अपने घोसलो में लेकर आती है। ये उन प्यूपा का अपरहण अपने देखभाल एवं रक्षा करने के लिए करती है , ठीक शब्दों में बोले तो दास या गुलाम बनाती है। जब वे प्यूपा नए घोसलो में आते है तो उनको अपने अपरहण के बारे में कोई जानकारी नहीं होती है इसीलिए वे उनके लिए भोजन इकठ्ठा करते है और उनके घोसलो की रक्षा करते है जैसे की वह घोसला उनके खुद का हो। इस प्रकिया ने वैज्ञानिको को सोचने के लिए विवश कर दिया की ऐसे गुलाम व्यवहार कैसे विकसित हुए, पर अब ये नए साक्ष्यों से पता चला की लाल चीटिया अन्य प्रजाति के चीटियों या प्यूपा को अस्थायी पर जीव के रूप में इस्तेमाल किया करती है। वे प्यूपा को अपने घोसलो में रखकर उन्हें अपने बच्चो के देखभाल करने के लिए प्रयोग करती थी।
यह बात सुनने में जरूर अजीब लगे पर है सच । लाल चींटी की चटनी खाने से मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियां नहीं होती हैं। छत्तीसगढ़ के सभी आदिवासी इलाकों में लाल चींटी के औषधीय गुण के कारण इसकी बहुत मांग हैं।
प्रायःआम, अमरूद, साल और अन्य ऐसे पेड़ जिनमें मिठास होती है उन पेड़ों पर यह चींटियां अपना घरौंदा बनाती हैं। आदिवासी एक पात्र में चींटियों को एकत्र करते हैं। इसके बाद इनकों पीसा जाता है।नमक, मिर्च मिलाकर रोटी के साथ या ऐसे ही खा लिया जाता है। चींटी में फॉर्मिक एसिड होने के कारण इससे बनी चटनी चटपटी होती है। इसमें प्रोटीन भी होता है।
चित्र संदर्भ
1.लाल चींटी तथा भोजन करते बच्चे का एक चित्रण (Youtube , Unsplash)
2.लाल चींटी की चटनी का एक चित्रण (Youtube)
3.पेड पर लाल चींटी का एक चित्रण (Freepik)