स्वर्ण अनुपात – हमारे जीवन से संबंधित एक गणितीय अनुपात

रामपुर

 12-05-2021 09:21 AM
सिद्धान्त 2 व्यक्ति की पहचान

यह तो हम सभी जानते हैं कि गणित एक विषय मात्र नहीं है बल्कि इसका सीधा संबंध हमारे जीवन से है।प्रकृति की हर एक वस्तु यहाँ तक की हमारे शरीर की संरचना भी कई गणितीय धारणाओं से संबंधित है। फिर चाहे वह हमारे शरीर के अंगों का आकार हो या फिर हड्डियों की संख्या। हमारे चारों ओर गणितीय तत्व सदैव उपस्थित रहते हैं।किसी भी वस्तु का सटीक मान ज्ञात करने के लिए गणित का प्रयोग किया जाता है। यही कारण है कि वास्तुकला में गणित एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। प्राचीन समय से ही गणित और सौंदर्य जगत के मध्य गहरा संबंध रहा है।बड़ी-बड़ी इमारतों और पवित्र स्थलों की शिल्पकला और मूर्तिकला में गणितीय रेखांकन और आनुपातिक नियमों के उदाहरण आज भी देखे जा सकते हैं।स्वर्ण अनुपात गणित की एक अपरिमेय संख्या है। सुनहरा अनुपात दो खंडों के बीच की उस स्थति को दर्शाता है जब उन दो खंडों का अनुपात उन दोनों खंडों के योग और बडे़ खंड के अनुपात के बराबर होता है।सुनहरे अनुपात को सुनहरा माध्य, सुनहरा खंड, दिव्य खंड और ईश्वरीय अनुपात आदि नामों से भी जाना जाता है।इसका अध्ययन सर्वप्रथम ग्रीक गणितज्ञों द्वारा किया गया था। अत: इसे ग्रीक अक्षर फाई (phi) (φ) से दर्शाया जाता है।इसका मान 1.618033988749894848… होता है।

आइए इसे एक उदाहरण द्वारा समझने का प्रयास करते हैं:
माना एक रेखा या एक आकृति को दो भागों में विभाजित किया जाता है। एक बड़ा खंड (a) और एक छोटा खंड (b)। जब इन दोनों खंडों का अनुपात (a:b) दोनों खंडों के योग (a+b) और बड़े खंड (a) के अनुपात(a + b) : a के बराबर होता है तब यह स्थिति स्वर्ण अनुपात कहलाती है।

गणित में स्वर्ण अनुपात को निम्न दो प्रकार से हल किया जा सकता है: पहली विधि में बाएँ भिन्न से हल करते हुए:
 φ + 1 = φ2
जिसे इस प्रकार पुन:व्यवस्थित किया जा सकता है:
φ2–φ– 1 = 0
द्विघात सूत्र का उपयोग करते हुए, दो हल प्राप्त किए जाते हैं:

क्योंकि φ दो पूर्ण अंकों के बीच का अनुपात है, अत: φ भी एक पूर्ण अंक होगा।
स्वर्णिम अनुपात का अध्ययन अगली सहस्राब्दी में परिधीय रूप से किया गया था। तत्पश्चात अबू कामिल (सी. 850–930) ने इसे पंचकोणों और दशभुजों की अपनी ज्यामितीय गणना में नियोजित किया।उनके लेखन ने फिबोनाची (Fibonacci) (सी. 1170–1250) श्रृंखला को प्रभावित किया, जो संबंधित ज्यामितीय समस्याओं को हल करने के लिए अनुपात का उपयोग करती थी। ल्यूका पैसिओली (Luca Pacioli) ने अपनी पुस्तक का नाम स्वर्ण अनुपात के नाम पर दिव्य अनुपात (1509) रखा, और कुछ प्लैटोनिक (Platonic)ठोस पदार्थों में इस अनुपात की उपस्थिति सहित इसके कई गुणों की खोज की। इसके बाद लियोनार्डो दा विंची (Leonardo da Vinci), जर्मन गणितज्ञ साइमन जैकब (Simon Jacob), राफेल बॉम्बेली (Rafael Bombelli) जैसे कई महान गणितज्ञों और विशेषज्ञों ने इस अनुपात के अन्य पहलुओं काविस्तृत अध्ययन किया।
हमारे आस-पास मौजूद सभी वस्तुएँ चाहे वह प्राकृतिक हो या मानव-निर्मित, किसी न किसी आकृति या आकार में अवश्य होती हैं।यह आकृतियाँ हमें हमेशा से अपनी ओर आकर्षित करती आई हैं।क्या आप जानते हैं कि इनमें से कई वस्तुओं के आकार गणितीय अवधारणा पर आधारित होते हैं।एक प्रसिद्ध स्विस (Swiss) वास्तुकार ले कोर्बुसियर (Le Corbusier) की वास्तुकला और डिज़ाइन (Design) पूरी तरह सद्भाव और गणितीय अनुपात की प्रणालियों पर केंद्रित थे। उनके कार्य में सुनहरे अनुपात और फाइबोनैचि श्रृंखला की छवी को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। जोहान्स केपलर (Johannes Kepler) ने लिखा है कि "स्त्री और पुरुष की छवि ईश्वरीय अनुपात या स्वर्ण अनुपात से बनी है। मेरी राय में, पौधों का प्रसार और जानवरों के पूर्वज सभी एक ही अनुपात में हैं"।

प्राणियों में एकता और ईश्वर की इबादत का मार्ग दिखाने वाले इस्लाम धर्म में प्रर्थना स्थल का विशेष महत्व होता है। यही कारण है कि इस्लामिक वास्तुकला विश्वभर में प्रसिद्ध है। इस्लामिक पवित्र स्थल को सटीक ज्यामितीय कलाकृतियों और पारंपरिक वास्तुकला से बनाया जाता है। अल-बिरूनी (Al-Biruni) के तहत, ज्यामिति को भूगणित कहा जाता था और इसे प्राकृतिक दर्शन के रूप में वर्गीकृत किया गया था, जिसमें समय और स्थान के साथ संयुक्त पदार्थ और रूप शामिल थे। आज भी कई इस्लांमी इमारतों में पारंपरिक गुंबद और शिल्पकारी को देखकर यह कहा जा सकता है कि भूगणित का प्रभाव इस्लामी वास्तुकला में साफ झलकता है। उदाहरण के लिए रॉक-ऑफ क्यूबेत उल सखारा का गुंबद (the Dome of the Rock-el Qubbet ul Sakhrah)।इसके अलावा सुनहरे अनुपात के विभिन्न पैटर्न (Patterns) को अक्सा मस्जिद के गुंबद, इस्लामी मीनार और पवित्र स्थल काबा की वर्गाकार आकृति आदि इस्लामिक वास्तुकला में ख़ास तौर पर देखा जा सकता है।
मानव चेहरे के विश्व-प्रसिद्ध विशेषज्ञ डॉ स्टीफन आर. मार्क्वड (Stephen R. Marquardt) ने दशकों तक मानव सौंदर्य पर अध्ययन किया है। उन्होंने अपने अध्ययन में प्राचीन काल से लेकर आधुनिक समय के मानव चेहरे का विश्लेषण किया है। अपने शोध के माध्यम से, उन्होंने पाया कि सुंदरता न केवल फाई (phi) से संबंधित है, बल्कि इसे सभी नस्लों, संस्कृतियों और युगों के स्त्री व पुरुषों के लिए परिभाषित किया जा सकता है।उनके काम में सुंदरता पर क्रॉस-सांस्कृतिक सर्वेक्षण शामिल हैं,जिसमें उन्होंने पाया कि सभी समूहों और लिंगों में चेहरे की सुंदरता की धारणा एक-समान है। अपने इस शोध को उन्होंने पेटेंट (Patent) भी कराया। इससे पता चलता है कि प्राकृतिक रूप से निर्मित मानव चेहरा भी एक सटीक आकृति से बना है और चेहरे के हर पैटर्न में एक महीन समानता होती है यही समानता स्वर्ण अनुपात को प्रदर्शित करती है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3eyRTYZ
https://bit.ly/3o30FBl
https://bit.ly/3hcN60S
https://bit.ly/3evRM0d

चित्र संदर्भ:-
1.स्वर्ण अनुपात का एक चित्रण (Pixabay)
2.मोनालीसा पर स्वर्ण अनुपात का एक चित्रण (Youtube)



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