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भोजन की समीक्षा में मछली पालन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।विश्व भर में मछली, लोगों के आहार में प्रोटीन (Protein) के रूप में महत्वपूर्ण योगदान देती है। यह अनुमान लगाया गया है कि 15 से 20 प्रतिशत प्रोटीन जलीय जीवों से ही आता है। लेकिन वर्तमान समय में कोविड-19 (Covid-19) की वजह से कई देशों में तत्काल और विनाशकारी परिणाम देखे गए हैं, जिसमें सीमाओं का बंद करना, सामाजिक दूरी, तालाबंदी और प्रसार को रोकने के लिए किए गए अन्य उपायों ने मछली और समुद्री भोजन के व्यापार को लगभग बंद कर दिया है।उत्पादक देश भी कोविड-19 से प्रभावित हुए हैं, जिस वजह से उन्हें खाद्य पदार्थों को शीतगृह में जमा करना पड़ रहा है, क्योंकि प्रतिबंध के कारण वे अपने उत्पादों का उत्पादन कर तो रहे हैं, लेकिन परिवहन अवरोधों के कारण बढ़ी हुई माँग की आपूर्ति करने में असमर्थ हैं।
डिब्बाबंद सार्डिन (Sardines) और मैकेरल (Mackerel) उत्पादों का राष्ट्रीय भंडार अप्रैल 2020 में 35 मिलियन डिब्बे तक था। निर्यात, खुदरा और ऑनलाइन (Online) बाजारों के माध्यम से अवशोषित होने के अलावा, संसाधित डिब्बाबंद मछली का उपयोग सामाजिक सहायता उत्पादों में से एक के रूप में किया जा सकता है जो समुदाय की प्रोटीन की जरूरतों को पूरा करते हैं।वहीं उद्योग मंत्रालय द्वारा बताया गया कि इंडोनेशिया के विभिन्न क्षेत्रों मंल 718 मछली प्रसंस्करण व्यवसाय इकाइयाँ फैली हुई हैं। मछली प्रसंस्करण क्षेत्र का कुल उत्पादन 2019 में 1.6 मिलियन टन तक पहुंच गया,यानी इसमें 2016 की तुलना में 300 हजार टन की वृद्धि को देखा गया है।अपने सकारात्मक प्रदर्शन के बावजूद, मछली डिब्बाबंद उद्योग को कोविड-19 महामारी के प्रभाव को देखते हुए विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।इन चुनौतियों में डिब्बे, मसाले की कीमत में वृद्धि के साथ-साथ तालाबंदी से प्रभावित देशों से आयातित मछली के कच्चे माल की कमी भी शामिल है।
भारत की तटरेखा 8,000 किमी तक फैली हुई है, इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि यह दुनिया के सबसे बड़े मछली उत्पादकों में से एक है और मछली और मछली उत्पादों का एक शीर्ष निर्यातक है।फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन (Food and Agriculture Organization) की 2016 की स्टेट ऑफ वर्ल्ड फिशरीज एंड एक्वाकल्चर (State of World Fisheries and Aquaculture) की रिपोर्ट (Report) के अनुसार, 2014 में, भारत का कुल उत्पादन लगभग 9.6 मिलियन टन था, जिसमें समुद्री और अंतर्देशीय कुचक्र, साथ ही मत्स्यपालन उत्पादन भी शामिल था। हालांकि, खराब होने वाले सामानों के परिवहन के लिए विश्वसनीय घरेलू बुनियादी ढांचे की कमी कि वजह से भारतीयों द्वारा मुख्य रूप से ताजी मछली खाने का ही विकल्प चुना जाता है, जो कई क्षेत्रीय व्यंजनों के केंद्र में है। लेकिन वर्तमान समय में इस क्षेत्र ने काफी प्रगति कर ली है, जिस से भारत में भी कई उद्यमी मछलियों को डिब्बाबंद करके व्यवसाय को एक नया रूप दे सकते हैं। खाद्य पदार्थ को डिब्बाबंद करने की प्रक्रिया सर्वप्रथम फ्रांसीसी (Frenchman) निकोलस एपर्ट (Nicolas Appert) द्वारा पेश की गई थी। उन्होंने 1795 में,उबलते पानी में मछली के जार रखकर मछली को संरक्षित करने के तरीकों के साथ प्रयोग करना शुरू किया।नेपोलियन (Napoleonic) युद्धों के पहले वर्षों के दौरान, फ्रांसीसी सरकार ने बड़ी मात्रा में भोजन को संरक्षित करने का एक सस्ता और प्रभावी तरीका खोजने वाले व्यक्ति को 12,000 फ्रैंक पुरस्कार देने की घोषणा की। एपर्ट ने अपना आविष्कार प्रस्तुत किया और जनवरी 1810 में पुरस्कार जीत लिया।
संदर्भ :-
https://bit.ly/3tbayhw
https://bit.ly/3vBisSR
https://bit.ly/3vEfEnM
https://bit.ly/334mcjA
https://bit.ly/3t9vNjK
https://bit.ly/3gS0ur6
https://bit.ly/2QOYMfl
चित्र संदर्भ:-
1. डिब्बाबंद मछली का चित्रण (Wikimedia)
2. डिब्बाबंद मछली का एक चित्रण (Wikimedia)
3. भारतीय मछुआरों का एक चित्रण (Youtube)