'मोती' शब्द लैटिन शब्द पिरूला (pirula) से लिया गया है जिसका अर्थ है नाशपाती (pear), अर्थात् नाशपति के आकार का मोती। मोती अपनी सुन्दरता के कारण अत्यंत लोकप्रिय होते हैं तथा धन का एक प्रमुख यंत्र भी हैं। मोती को नौ रत्नों में गिना जाता है और इसकी चमक को उभारने के लिए किसी विशेष प्रकार की कटिंग (Cutting) या पॉलिशिंग (Polishing) की आवश्यकता नहीं होती है। संपूर्ण विश्वर में, मोती लोक कथाओं का विषय रहे हैं और यह सबसे आधुनिक विज्ञानों में से एक जीन-टिक इंजीनियरिंग (gene-tic engineering)का विषय भी हैं। आधुनिक मोती संस्कृति के उत्पादन और विकास का श्रेय जापान (Japan) को जाता है। इसकी प्रारंभिक सफलता 1893 में कोकिची मिकिमोटो (Kokichi Mikimoto) ने हासिल की, जिन्हें 'पर्ल किंग' (Pearl King) कहा जाता है और मोती उत्पाोदन उद्योग के जनक के रूप में भी माना जाता है। इस प्रारंभिक सफलता से मोती संस्कृति की तकनीक विकसित हुई। भारत में मोती उत्पाजदन में तकनीकी सफलता 1973 में सेंट्रल मरीन फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट (Central Marine Fisheries Research Institute)(CMFRI) द्वारा तूतीकोरिन (Tuticorin) में हासिल की गई थी। 1981 में हैचरी (Hatchery) में मोती सीपों के नियंत्रित उत्पादन प्रक्रिया को विकसित किया गया जो दूसरी सबसे बड़ी सफलता थी। एक मोती का निर्माण तब होता है जब मेंटल टिशू (mantle tissue) को किसी परजीवी द्वारा घायल कर दिया जाता है, जो मोलस्क शेल बिलेव (mollusk shell bivalve ) या गैस्ट्रोपॉड (gastropod) के खोल के बाहरी नाजुक रिम (rim) को नुकसान पहुंचाता है। प्रतिक्रिया में, मोलस्क के मेंटल टिशू मोती की सैक (sac) में नेकर (nacre) या मोती की जननी को स्रावित करते हैं, इस उपचार प्रक्रिया के दौरान एक पुटी (cyst) बनता है, जो बाद में मोती का रूप धारण करता है। रासायनिक रूप से कहा जाए, तो यह कैल्शियम कार्बोनेट (calcium carbonate) और एक रेशेदार प्रोटीन (fibrous protein ) है जिसे कोंचियोलिन (conchiolin) कहा जाता है। यह बढ़ते मोती सैक को भरता है और अंततः एक मोती बनाता है।
मोती के मुख्य प्रकार:
प्राकृतिक मोती:
किसी सीप की मांसपेशियों या ऊतकों के भीतर एक ठोस या आकस्मिक घाव के पश्चात इसके भीतर प्राकृतिक मोती बनते हैं। उत्पादित मोती को प्राकृतिक मोती कहा जाता है और इनकी आकस्मिक उत्पत्ति के कारण यह बहुत दुर्लभ होते हैं।
संवर्धित मोती (Cultured pearls): संवर्धित मोती का उत्पादन मानव हस्तक्षेप द्वारा किया जाता है, इसमें मोती का उत्पादन करने वाले ऑइस्टोर्स (oysters) या मसेल्स (mussels) को पाला जाता है। इसमें निर्माण प्रक्रिया में प्राकृतिक मोती के निर्माण की तकनीक में परिर्वतन किया जाता है।जैसे मेंटल लोब की बाहरी उपकला और मुख्य पदार्थ या केंद्रक में परिवर्तन।
कृत्रिम मोती:
इस तरह के मोती एक कृत्रिम चमक के साथ प्लास्टिक, कांच, मछली के शल्कक आदि से बने सस्ते नकली होते हैं।
भारत के प्रमुख मोती उत्पादक क्षेत्र:
मन्नार की खाड़ी:
श्रीलंका (Sri Lanka) के निकट स्थित मन्नार की खाड़ी भारतीय मोती उत्पाहदक क्षेत्र है जहां बेहतरीन गुणवत्ता के शुद्ध प्राच्य मोती उत्पटन्न होते हैं। इस क्षेत्र की प्रजाति पिन्क्टाडा फ्यूकाटा (Pinctada fucata) है।
कच्छ की खाड़ी:
कच्छ की खाड़ी में लगभग 42 मोती सीप की रीफ(reefs)हैं, जिन्हें 'खड्डे' के नाम से जाना जाता है। खड्डा का अर्थ है मिट्टी और रेत के मिश्रण के साथ मूंगा और चट्टानी क्षेत्र का एक कठोर तल। पिनक्टाडा फ्यूकाटा (Pinctada fucata ) प्रजाति के मोती सीप यहाँ पाए जाते हैं।
रंगीन मोती के उत्पादन के लिए उत्तरदायीकारक:
(1) सीप का उत्पादन और प्रकाश की गहराई मोती की चमक और रंग को प्रभावित करती हैं।
(2) मोती सीप के पालन की अवधि में वृद्धि के साथ इसकी चमक भी बढ़ जाती है।
सहस्राब्दी से, मोती ने दुनिया भर में मानवता को मोहित किया है। प्राचीन काल में, मांग प्राकृतिक उत्पादन द्वारा पूरी की जाती थी। किंतु आधुनिक दुनिया में मोती की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए, उद्यमियों और शोधकर्ताओं ने मोती का उत्पादन करने वाले सीप और मसल्स को पालकर मोती का उत्पादन करना प्रारंभ कर दिया है। इस परियोजना का उद्देश्य कच्चे माल की उपलब्धता और स्थानीय बाजार की मांग को देखते हुए मोती संस्कृति की स्थापना करना है। भारत के मोती पूरी दुनिया में 'ओरिएंटल मोतियों' (Oriental beads)के बेहतरीन के स्वहरूप के रूप में जाने जाते हैं। हालांकि भारत में दुनिया के अन्य हिस्सों की अपेक्षा प्राकृतिक मोती संसाधन कम हो गए हैं और लगभग चार दशक पहले भारत में मोती उत्पादकों का पालन बंद कर दिया गया था। जिसके चलते उत्पादन और मांग के बीच एक बड़ा अंतर हो गया है जिसके लिए एकमात्र विकल्प मोती की संस्कृति बचा है।
संवर्धित मोती के माध्यम से करीब 1 से 2 लाख रूपए प्रति माह आराम से कमाए जा सकते हैं। जिस प्रकार से इस कृषि में फायदा अधिक है उतना ही इसकी कृषि में जोखिम भी है. इसलिए इसे बड़े संभलकर करना होता है। अतः इसकी कृषि प्रारंभ करने से पहले कृषि केन्द्रों से इसके बारे में विस्तृत जानकारी ले लेनी चाहिए। पानी की गुणवत्ता, पानी के स्रोत, पानी की गहराई, सब्सट्रेट (Substrate) प्रकार, पोषक तत्व का भार, तापमान और प्राप्तकर्ता की बेहतर गुणवत्ता के साथ-साथ दाता मसल्स (Mussels) सहित मोती संस्कृति की शुरुआत से पहले जैविक मापदंडों की जांच करने की आवश्यकता है। परिचालन गतिविधियों के लिए साइट का चयन सुविधाजनक होना चाहिए। प्राकृतिक वातावरण से एकत्र किए गए मसल्स आदर्श माने जाते हैं,हालांकि चयन से पहले इनडोर (Indoor) उत्पादित जीवों के पैथोलॉजिकल (Pathological) मापदंडों को ध्यान देने की आवश्यकता होती है। मोती संस्कृति विभिन्न सहायक गतिविधियों की मांग करती है, जिसके लिए उपयुक्त उपस्थिति की आवश्यकता होती है। मसल्स संग्रह, आरोपण, मुख्यी तैयारी, संस्कृति इकाई निर्माण, खेत प्रबंधन और उत्पांदित मोतियों का एकत्रीकरण। बेहतर पारिश्रमिक के लिए उत्पाद में स्थिर बाजार स्थिति होनी चाहिए।ब ड़े मोती का बेहतर मूल्य होता है। सरकार भी इस कृषि पर करीब 25 लाख रूपए तक सब्सिडी रेट (subsidized rate) पर आर्थिक मदद करती है, जिससे मोती उत्पादन करने वाले किसानों को मदद मिल सके।
संदर्भ:
https://bit.ly/3dOE3kw
https://bit.ly/3eC0w3M
https://bit.ly/3nmiifl
https://bit.ly/2qB5AA6
https://bit.ly/3xlehMC
https://bit.ly/3ewceg3
चित्र सन्दर्भ:
1.विभिन्न प्रकार के मोती का चित्रण (wikimedia)
2.मोती द्वारा निर्मित उद्पादों चित्रण (Unsplash)
2.रंगीन मोतियों का चित्रण (Unsplash)
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