लीची, गर्मियों का एक स्वादिष्ट तथा रसदार फल है, जिसे अपने पारभासी, सुगंधित खाने योग्य गूदे के लिए जाना जाता है। चीन (China) और जापान (Japan) जैसे देशों में इसे डिब्बाबंद स्थिति में पसंद किया जाता है। लीची की उत्पत्ति दक्षिणी चीन, विशेष रूप से क्वांगतुंग (Kwangtung) और फुकियन (Fukien) के प्रांतों से हुई है। लीची की खेती अपने मूल क्षेत्र चीन के बाद पूर्वी एशिया (Asia) और पश्चिम इंडीज (Indies) के अपतटीय क्षेत्र, दक्षिण अफ्रीका (Africa), मेडागास्कर (Madagascar) में फैली। इसके बाद इसकी खेती फ्रांस (France) और इंग्लैंड (England) में भी की जाने लगी। लीची का दुनिया के अन्य हिस्सों में प्रसार इसकी मिट्टी, जलवायु आवश्यकताओं और इसके बीज के अल्प जीवन काल के कारण धीमा था। चीन के रिकॉर्ड (Records) के अनुसार, लीची का इतिहास और इसकी खेती 2000 ईसा पूर्व की है। इसकी खेती दक्षिणी चीन, मलेशिया (Malaysia) और वियतनाम (Vietnam) के क्षेत्र में शुरू हुई। भारत में इसकी खेती की शुरूआत को देंखे, तो 17 वीं शताब्दी के अंत तक लीची चीन से बर्मा (Burma) होते हुए सबसे पहले पूर्वी भारत में पहुँची। इसके बाद 18 वीं शताब्दी के अंत तक इसे बंगाल में पेश किया गया, जहाँ से यह बाद में रामपुर सहित भारत के बड़े हिस्सों में पहुंची। भारत वास्तव में दुनिया में लीची का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, जो वैश्विक उत्पादन का लगभग पांचवां हिस्सा उत्पादित करता है। भारत में लीची उत्पादन में अग्रणी राज्यों में असम, उड़ीसा, झारखंड, पंजाब, हिमांचल प्रदेश, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल शामिल हैं। बढ़ती मांग के कारण समय के साथ इसकी खेती के क्षेत्र और लीची के अनुसंधान और विकास के लिए सरकारी नीतियों और योजनाओं में भी वृद्धि हुई है। भारत में, 56,200 हेक्टेयर क्षेत्र से 428,900 मीट्रिक टन (Metric tonnes) लीची का उत्पादन प्रतिवर्ष किया जाता है। विश्व लीची उत्पादन में भारत और चीन का 91 प्रतिशत हिस्सा है, लेकिन इन लीचियों को स्थानीय रूप से बेचा जाता है।
लीची फल गोल या दिल के आकार का होता है तथा इसकी त्वचा पतली और थोड़ी सख्त होती है। इसके फलों को उत्कृष्ट सुगंध और गुणवत्ता के लिए जाना जाता है। किंवदंतियों के अनुसार, प्राचीन संत प्रति दिन 300 से 1,000 लीची का उपभोग किया करते थे। इसकी फसल मुख्य रूप से मई से जून तक उपलब्ध होती है। भारत में उगाई जाने वाली लीची किस्मों के लिए विभिन्न प्रकार की जलवायु और मिट्टी की आवश्यकता होती है। दिसंबर से फरवरी तक 10°C और अप्रैल से जून तक 38°C तापमान वाले क्षेत्रों में लीची की खेती अत्यधिक सफल होती है। इसकी खेती के लिए नम वातावरण, कभी-कभार होने वाली वर्षा, ठंडी हवाओं से मुक्त ठंढ और गर्म हवाएं आदर्श हैं। भारत में जिन क्षेत्रों में लीची होती है, वहां का तापमान फूलों और फल के लगने के दौरान 21°C से 37.8°C के बीच हो सकता है। पारंपरिक चीनी चिकित्सा में लीची के कई लाभ बताए गये हैं। यह रक्त परिसंचरण को बढ़ावा देता है और रक्त रोगों को दूर करता है। पेट की बीमारियों, सुस्ती और अनिद्रा में सुधार के लिए भी यह महत्वपूर्ण है। लीची ठंडी होती है और अल्सर, पाचन, प्रजनन प्रणाली आदि को स्वस्थ रखती है। भारत में, लीची के बीज से बनी चाय दर्द और तंत्रिका सूजन (Nerve inflammation) का इलाज करती है। इसके एंटीप्लेटलेट (Antiplatelet), एंटीकॉग्लेंट (Anticoagulant) और थ्रोम्बोलाइटिक (Thrombolytic) गुण हृदय रोगों से संरक्षण प्रदान करते हैं। यकृत के अच्छे संचालन, खांसी से राहत देने के लिए लीची एक अच्छा फल है। जठरांत्र (Gastralgia), ट्यूमर (Tumors) और ग्रंथियों के विस्तार पर भी इसका लाभकारी प्रभाव होता है। इसमें फ्लेवोन (Flavones), क्वेरसेटिन (Quercitin) और केमफेरोल (Kaemferol) यौगिक मौजूद होते हैं, जो कैंसर (Cancer) कोशिकाओं के प्रसार को कम करने में मदद करते हैं। लीची रक्तचाप और हृदय गति को सामान्य करता है और इसलिए स्ट्रोक (Strokes) और हृदय रोगों से रक्षा के लिए प्रभावी है। यह पेट को ठीक से साफ कर भूख में सुधार करती है तथा पेट में जलन जैसी समस्याओं को दूर करती है। लीची फास्फोरस (Phosphorus) और मैग्नीशियम (Magnesium) का एक समृद्ध स्रोत है, जो हड्डियों को मजबूत बनाता है। लीची में मौजूद फाइबर (Fiber) स्वस्थ वजन बनाए रखने में सहायक है। इसमें उपस्थित विटामिन सी (Vitamin C) शरीर को सर्दी और अन्य संक्रमणों से बचाता है और शरीर की रोग प्रतिरोधकता को विकसित करता है। इसमें विटामिन B, B6, पोटेशियम (Potassium) थियामिन (Thiamin), नियासिन (Niacin), फोलेट (Folate) और कॉपर (Copper) भी मौजूद होते हैं, जो कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate), प्रोटीन (Protein) और वसा के चयापचय को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
कोरोना महामारी के कारण हुई तालाबंदी से विभिन्न क्षेत्र प्रभावित हुए हैं, तथा इसका असर लीची बाजार पर भी हुआ है। चूंकि, पीक सीजन (Peak season) अर्थात जब यह प्रचुर मात्रा में होता है, तथा इसकी बिक्री सर्वाधिक होती है, के दौरान आपूर्ति श्रृंखला बाधित रही, इसलिए इसका नुकसान लीची उगाने वाले किसानों को उठाना पड़ा। इसी बीच यह भी माना गया कि, लीची का उपभोग इंसेफेलाइटिस (Encephalitis) का कारण बन रहा है, जिससे बच्चों की मौतें हो रही हैं। इन अफवाहों की वजह से भी लीची व्यवसाय को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है।
संदर्भ:
https://bit.ly/2QWdMrw
https://bit.ly/3dwt3XL
https://bit.ly/3dwsVHL
https://bit.ly/31MGn4I
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र में लीची बेचने वाले एक व्यक्ति को दिखाया गया है। (विकिमेडिया)
दूसरा चित्र पेड़ों पर लीची को दर्शाता है। (पिक्सीयो)
तीसरा चित्र लीची को दर्शाता है। (स्नेपोगोट)