जहां 29 मार्च को देश भर में लाखों लोग रंगों का त्यौहार मनाने की तैयारी कर रहे हैं, वहीं स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि, यदि जश्न के दौरान कोविड-19 (COVID-19) से सम्बंधित नियमों का पालन नहीं किया जाता है, तो कोरोना महामारी का प्रसार और भी तीव्र हो सकता है। देश भर में लोग रंगों का त्यौहार मनाने के लिए तैयार हैं। चूंकि, पिछले साल कोरोना महामारी ने होली के उत्सव को उत्साह हीन कर दिया था, इसलिए इस वर्ष लोग कुछ राहत की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन कई राज्यों में कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए राज्य सरकारें अनेकों प्रतिबंध लगाने को मजबूर हो गयी हैं। होली एक लोकप्रिय प्राचीन हिंदू त्यौहार है, जिसे "प्यार का त्यौहार", "रंगों का त्यौहार" और "वसंत का त्यौहार" भी कहा जाता है। यह त्यौहार भगवान कृष्ण और देवी राधा के शाश्वत और दिव्य प्रेम तथा बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। यूं तो, इस त्यौहार की शुरूआत भारत में हुई तथा मुख्य रूप से इसे भारत में मनाया जाता है, लेकिन वर्तमान समय में यह पर्व एशिया (Asia) और पश्चिमी दुनिया के अन्य क्षेत्रों में मनाया जा रहा है। होली की प्रमुख विशेषता इसमें उपयोग किये जाने वाले रंगों की है, जिन्हें त्यौहार के दिन परिवार और मित्रों पर लगाया जाता है। माना जाता है कि, वसंत का मौसम (जिसके दौरान मौसम में बदलाव होता है) अपने साथ वायरल (Viral) बुखार और जुकाम लेकर आता है। होली के दौरान उपयोग किये जाने वाले प्राकृतिक गुलाल को इसका प्रभावी उपाय माना जाता है, क्यों कि यह औषधीय गुणों से युक्त होते हैं। गुलाल पारंपरिक रूप से नीम, कुमकुम, हल्दी, बिल्व और अन्य औषधीय जड़ी बूटियों से बने होते हैं, तथा इन्हें आयुर्वेदिक चिकित्सकों द्वारा उपयोग करने की सलाह भी दी जाती है। होली के दिन सामान्य रूप से हरा, पीला, लाल, केसरी, नीला, भूरा, काला आदि गुलालों का उपयोग किया जाता है, जिन्हें प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त किया जाता है। हरा गुलाल मुख्य रूप से मेहंदी, गुलमोहर के पेड़ की सूखी पत्तियों, वसंत के मौसम में होने वाली फसलों और जड़ी बूटियों की पत्तियों, पालक की पत्तियों आदि से, पीला गुलाल हल्दी पाउडर (Powder), बेल फल, अमलतास, गुलदाउदी की प्रजातियों, गेंदा, सूरजमुखी, आदि से, लाल गुलाल, गुलाब, लाल सैंडल वुड (Sandal wood) पाउडर, लाल अनार के दानों, टेसू वृक्ष (Tesu - पलाश) के फूल, सूखे गुड़हल के पौधे आदि से, केसरी गुलाल टेसू के पेड़ के फूल, हल्दी पाउडर के साथ नींबू का रस मिलाकर, बारबेरी (Barberry) आदि से, नीला गुलाल भारतीय जामुन, अंगूर की प्रजाति, नीला गुड़हल आदि से, तथा भूरा गुलाल चुकंदर से बनाया जाता है। इसी प्रकार से अन्य प्रकार के रंग के गुलाल भी विभिन्न प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त किये जाते हैं। 19 वीं शताब्दी के मध्य में सिंथेटिक (Synthetic) रंगों का आगमन हुआ तथा शहरी क्षेत्रों में पेड़ों के लुप्त होने के कारण तथा उच्च मुनाफा कमाने के लिए प्राकृतिक गुलालों का महत्व कम होता चला गया।
हिंदू धर्म में पारंपरिक संस्कारों में गुलाल या अबीर (बंगाली) को अवश्य ही शामिल किया जाता है।
होली के साथ-साथ अन्य पर्वों जैसे डोल पूर्णिमा (Dol Purnima), दुर्गा पूजा आदि में भी गुलाल का उपयोग किया जाता है। हिंदू धर्म और संस्कृति में प्रत्येक रंग का अपना महत्व है, और यही कारण है, कि विभिन्न अवसरों या गुणों को प्रदर्शित करने के लिए रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। हिंदू कलाकारों ने देवताओं और उनके कपड़ों को भी विभिन्न रंगों के साथ जोड़कर उनके विभिन्न गुणों को उजागर किया है। लाल रंग कामुकता और शुद्धता दोनों को इंगित करता है। हिंदू धर्म में, शुभ अवसरों जैसे विवाह, बच्चे के जन्म, आदि के लिए सबसे अधिक लाल रंग का उपयोग किया जाता है। विभिन्न समारोहों और महत्वपूर्ण अवसरों के दौरान लाल रंग का टीका भी माथे पर लगाया जाता है। शादी के संकेत के रूप में, महिलाएं मांग में लाल रंग का सिंदूर भी लगाती हैं। लाल रंग शक्ति (कौशल) का भी प्रतीक है, इसलिए धर्म की रक्षा करने वाले तथा बुराई को नष्ट करने की क्षमता रखने वाले देवताओं को भी लाल रंग के कपड़ों के साथ प्रदर्शित किया जाता हैं। हिंदू धर्म में सबसे पवित्र स्थान नारंगी रंग को दिया गया है, जो शुद्धता और धार्मिक संयम का प्रतिनिधित्व करता है। इसे उन पवित्र पुरुषों और तपस्वियों का रंग माना जाता है, जिन्होंने दुनिया को त्याग दिया है तथा जो शाश्वत ज्ञान की खोज में हैं। हिंदू धर्म में हरे रंग को उत्सव का प्रतीक माना जाता है। महाराष्ट्र में, यह जीवन और खुशी का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए इसे यहां विधवा स्त्रियों द्वारा धारण नहीं किया जाता है। शांति और खुशी का यह प्रतीक, मन को स्थिर भी करता है। हरा रंग आंखों को ठंडक पहुंचाता है, और प्रकृति का प्रतिनिधित्व करता है। पीला रंग ज्ञान और सीखने का प्रतीक माना गया है। वसंत का यह रंग खुशी, शांति, ध्यान, क्षमता और मानसिक विकास का भी प्रतिनिधित्व करता है। भगवान विष्णु की पोशाक को पीला रंग दिया गया है, जो उनके ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है। इसी प्रकार से भगवान कृष्ण और गणेश की पोशाकों को भी पीला रंग दिया गया है। वसंत उत्सवों में पीले कपड़े पहने जाते हैं और पीले रंग का खाना खाया जाता है।
सफेद रंग को सात अलग-अलग रंगों का मिश्रण माना गया है, इसलिए यह प्रत्येक रंग की गुणवत्ता का प्रतीक है। यह रंग पवित्रता, स्वच्छता, शांति और ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है। ज्ञान की देवी, सरस्वती को हमेशा सफेद कपड़े पहने, सफेद कमल पर बैठे हुए दिखाया जाता है। सफेद रंग को शोक का रंग भी माना गया है। इसी प्रकार से पृथ्वी के रचयिता ने प्रकृति की अधिकांश चीजों जैसे, आकाश, महासागरों, नदियों और झीलों को नीला रंग दिया है। जिस देवता में शौर्य, पुरुषार्थ, दृढ़ संकल्प, कठिन परिस्थितियों से निपटने की क्षमता, स्थिर चित्त और आदर्श चरित्र समाहित है, उन्हें नीले रंग से दर्शाया गया है। उदाहरण के लिए भगवान राम और कृष्ण ने अपना सारा जीवन मानवता की रक्षा करने और बुराई को नष्ट करने में बिताया, इसलिए उन्हें अक्सर नीले रंग से साथ दिखाया जाता है। इस प्रकार होली में उपयोग किये जाने वाले रंगों का अपना-अपना महत्व है।
हर साल होली के मौके पर बाजारों में बहुत चहल-पहल दिखाई देती है, किन्तु कोरोना महामारी के चलते इस साल बाजारों में लोगों की चहल-पहल अपेक्षाकृत बहुत कम हो गयी है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, वर्तमान परिदृश्य में लोगों को सामाजिक समारोहों या सामुदायिक बैठकों में शामिल नहीं होना चाहिए, क्यों कि, कोरोना संक्रमण के मामले अभी भी बढ़ रहे हैं और भारत में नए कोविड उपभेदों की पहचान की गई है। चूंकि विभिन्न क्षेत्रों में कोविड-19 के मामलों में बढ़ोत्तरी हो रही है, इसलिए सुरक्षा के लिए लगाए गए प्रतिबंधों के कारण होली में बिकने वाली महत्वपूर्ण चीजों जैसे, गुलाल, अन्य प्रकार के रंग आदि की बिक्री में भारी गिरावट आयी है। इस प्रकार कोरोना महामारी के इस प्रभाव को होली के जश्न पर भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/31wOBy5
https://bit.ly/3d4Yybj
https://bit.ly/39htGTL
https://bit.ly/3lORPWX
https://bit.ly/2OZtqSF
https://bit.ly/3row3KA
https://bit.ly/2QIGDQh
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र गुलाल के रंगों को दर्शाता है। (लाइफस्टाइल एशिया)
दूसरी तस्वीर में पलाश के फूल और महिलाओं को प्राकृतिक गुलाल बनाते हुए दिखाया गया है। (विकिपीडिया)।
तीसरी तस्वीर में एक लड़की को गुलाल के साथ खेलते हुए दिखाया गया है। (पिक्सहिव)