लॉकडाउन (Lockdown) के कारण विश्व के सभी देशों में कृषि गतिविधियाँ नकारात्मक रूप से प्रभावित हुई है और इस कोविड-19 (COVID-19) महामारी ने खाद्य, पोषण और आजीविका सुरक्षा की समस्याओं को उजागर किया है, जिसमें बड़ी संख्या में ग्रामीण लोग, विशेष रूप से, शहरों में प्रवासी लोग सामना कर रहे हैं। कोविड-19 महामारी ने खेतों से घर तक खाद्य आपूर्ति श्रृंखला को बाधित करके वैश्विक खाद्य और पोषण सुरक्षा को प्रभावित किया है। मार्च 2019 की तुलना में इस लॉकडाउन में गेहूं की कीमत में 8% और चावल में 25% की वृद्धि हुई। कोविड से पहले 820 मिलियन लोग अल्पपोषित और 2 बिलियन लोग कुपोषित थे। आज लाखों से अधिक लोग गरीबी रेखा के समीप अपना जीवन यापन कर रहे हैं, सामाजिक अलगाव, आंदोलन प्रतिबंध, आपूर्ति में रुकावट, कम आय और खाद्य मूल्य में वृद्धि के कारण उनके जीवन में भोजन की खरीद के लिए आर्थिक और भौतिक साधनों का अभाव है। इस संकट में मानव आहार की गुणवत्ता को भी प्रभावित किया है। लॉकडाउन के दौरान कई गतिविधियों के सीमित होने के कारण बड़ी संख्या में लोगों ने संग्रहित खाद्यान्न रखना शुरू कर दिया। जिस कारण खाद्यान्न से लेकर ताजे फल और सब्जियां अधिक महंगी होने लगी। इस कारण भारी संख्या में लोग प्रोसेस्ड फूड (processed food) के अधिक सेवन की ओर बढ़ने लगे, प्रोसेस्ड फूड ऐसे खाद्य पदार्थ होते हैं, जिन्हें पहले से बनाकर रख दिया जाता है और लंबे समय तक खराब होने से बचाए रखने के लिए इनमें तरह-तरह के रंगों और कृत्रिम या रासायनिक पदार्थों का उपयोग होता है। यही कारण है कि लंबे समय तक इनके सेवन का सेहत पर बुरा असर पड़ता है। यह प्रोसेस्ड फूड मधुमेह और अन्य आहार संबंधी रोगों का कारण बन सकते हैं जोकि कोविड मृत्यु दर के लिए जोखिम के कारक हैं।
खाद्य क्षेत्र और खाद्य व्यवस्था न केवल, खाद्य और पोषण संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने और इस क्षेत्र में सामाजिक सुरक्षा बनाए रखने के लिए ज़रूरी है, बल्कि आर्थिक सशक्तिकरण में भी इसकी मुख्य़ भूमिका है। महामारी ने सभी स्तरों पर खाद्य प्रणालियों को प्रभावित किया है यानी विश्व स्तर पर, घरेलू स्तर पर और स्थानीय स्तर पर भी। कोविड-19 के चलते लगाए गए लॉकडाउन से, बड़ी संख्य़ा में शहरों से हुए पलायन ने मज़दूरों की कमी पैदा की, इस कमी और कम उत्पादकता के कारण किसानों को सबसे ख़राब अनुभव हुआ है। इसके चलते खुदरा विक्रेता भी प्रभावित हुए हैं, इसका प्रभाव कृषि मूल्य श्रृंखलाओं और खाद्य प्रणाली में भी पड़ा है। इस खाद्य समस्या से निपटने के लिये कृषि एक महत्वपूर्ण हथियार साबित हो सकता है और कृषि तथा उत्पादकता बढ़ाने के लिये मिट्टी की गुणवत्ता बहुत अहम है। क्योंकि भविष्य में 60 फीसदी ज्यादा अनाज पैदा करने की जरूरत होगी, ताकि लोग भुखमरी जैसे स्थितियों का सामना ना करे। ऐसे वैश्विक विकासों के मद्देनजर, मिट्टी व्यक्तिगत कृषि उद्यमों में उत्पादन कारक के रूप में एक केंद्रीय भूमिका निभाती है, और संकट के समय कृषि और उत्पादकता के लिए एक बुनियादी आवश्यकता भी है। मिट्टी आर्थिक और सामाजिक विकास में केंद्रीय भूमिका निभाती है। यह इंसान, पशु और वानस्पतिक जीवन के बने रहने के लिए अनाज, चारा, रेशा और अक्षय ऊर्जा की आपूर्ति सुनिश्चित करती है। इसलिए, समय-समय पर इसकी देखभाल की जरूरत होती है। खेती लायक जमीन को बढ़ाना मुश्किल है, इसलिए मौजूदा कृषि क्षेत्र पर ही उत्पादन का दबाव है।
जीवन और मानव कल्याण के लिए मिट्टी का स्वस्थ होना बेहद अहम है लेकिन विश्व के सभी महाद्वीपों पर मृदा क्षरण होने से खाद्य व जल सुरक्षा और जीवन की कई बुनियादी ज़रूरतों पर ख़तरा बढ़ रहा है। कोविड-19 महामारी और भुखमरी से निजात पाने के लिए मिट्टी का प्रबंधन न केवल पैदावार बनाए रखने के लिए बल्कि कई अन्य कार्यों के लिए भी मिट्टी को स्वस्थ रखना बहुत महत्वपूर्ण है। आधुनिक नवाचारों के आवेदन के माध्यम से मिट्टी की गुणवत्ता और कार्यक्षमता को बहाल करके और पर्यावरणीय गुणवत्ता में सुधार करते हुए स्थानीय खाद्य उत्पादन प्रणाली के लचीलापन को मजबूत किया जा सकता है। स्वस्थ मिट्टी सभी जीवित प्राणियों के लिए स्वस्थ पर्यावास और जीवन का आधार है, स्वस्थ्य मिट्टी से खाद्य सुरक्षा, स्वच्छ जल, कच्चे पदार्थ प्राप्त करने और कई प्रकार के पारिस्थितिकी तंत्रों की सेवाएं बरक़रार रखने में मदद मिलती है।
खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने और बनाए रखने के लिए, वैश्विक स्तर और स्थानीय स्तर पर नीति और निर्णय लेने की आवश्यकता होती है, उचित स्तर पर गुणवत्ता-मूल्यांकन की जानकारी तक पहुंच की आवश्यकता होती है। मृदा पर अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ और सूचना केंद्र के रूप में, आईएसआरआईसी (ISRIC) इस तरह मिट्टी की जानकारी प्रदान करता है और समर्पित मिट्टी सूचना प्रणाली विकसित करने में सहायता प्रदान करता है। आज, विश्व स्तर पर मिट्टी 7 अरब लोगों के लिए पर्याप्त भोजन प्रदान करती है। हालांकि यह उपलब्धता असमान रूप से वितरित है और 1 बिलियन लोग संरचनात्मक रूप से कम प्रभावित हैं। 2050 तक 9-10 बिलियन लोगों को भोजन प्रदान करने के लिए, जैव-खाद्य के साथ-साथ भोजन की सामाजिक-आर्थिक उपलब्धता और खाद्य उत्पादक क्षमता में भी अत्यधिक सुधार किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, खाद्य सुरक्षा प्राप्त करना एक चुनौती है और मिट्टी समाधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। मिट्टी हमारे खाद्य उत्पादन का आधार हैं इसलिये मिट्टी के रखरखाव की आवश्यकता है, लेकिन मनुष्यों द्वारा मिट्टी का तेजी से दोहन करने की वजह से मिट्टी के रखरखाव की आवश्यकता और भी बढ़ गई है। मृदा के क्षरण से मिट्टी का स्वास्थ्य और उत्पादकता प्रभावित होती है, बेहद उपजाऊ मिट्टी की ऊपरी परत हट जाती है और बाक़ी बची मिट्टी की उपयोगिता उतनी नहीं रहती। इससे कृषि उत्पादकता घटती है, पारिस्थितिकी तंत्रों का कार्य भी प्रभावित होता है और भूस्खलन व बाढ़ जैसी भूर्गभीय चुनौतियों का जोखिम भी बढ़ जाता है। मानव निर्मित कचरे की उपस्थिति के कारण भी मिट्टी दूषित हो जाती है। प्रकृति से उत्पन्न अपशिष्ट जैसे कि मृत पौधे, जानवरों के शव और सड़े हुए फल और सब्जियां केवल मिट्टी की उर्वरता को जोड़ती हैं। हालांकि यह अपशिष्ट उत्पाद रसायनों से भरे हुए हैं जो मूल रूप से प्रकृति में नहीं पाए जाते हैं और मिट्टी के प्रदूषण को जन्म देते हैं। हालांकि मृदा प्रदूषण राष्ट्रीय स्तर पर एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है, लेकिन मृदा प्रदूषण के मूल्यांकन पर समन्वित प्रयास राष्ट्रीय स्तर पर अनुपस्थित है। भारत में औद्योगिक क्षेत्र में वृद्धि से भी मृदा को खतरा बढ़ गया है। मृदा प्रदूषण पर व्यापक जानकारी के अभाव के कारण भारत में राष्ट्रीय स्तर पर बड़े पैमाने पर नजरअंदाज किया गया है। औद्योगिक अपशिष्ट मिट्टी की सतह में लंबे समय तक रहते हैं जो मिट्टी को अनुपयुक्त बना देते हैं। साथ ही खनन की गतिविधियों ने भी काफी हद तक मृदा प्रदूषण को प्रभावित किया है।
मिट्टी की गुणवत्ता विभिन्न भौतिक, रासायनिक और जैविक प्रक्रियाओं का नतीजा है। बहुत ज्यादा खेती, अत्यधिक दोहन जैविक और अजैविक स्रोतों से सीमित क्षतिपूर्ति के कारण मिट्टी की गुणवत्ता क्षीण हुई है। मिट्टी की गुणवत्ता में लगातार गिरावट को अक्सर उपज की स्थिरता या कमी के एक कारण के रूप में देखा जाता है। महामारी के दौरान भी मिट्टी की गुणवत्ता पर काफी असर पड़ा, क्योंकि इस समय मानव गतिविधियों के आई अचानक कमी से मानव उपभोग में गिरावट के परिणामस्वरूप अधिशेष भोजन (surplus food) या बचा हुआ भोजन बढ़ा, जिसे निस्तारण (dispose) करने के लिये मिट्टी में डाल दिया गया। मार्च से मई 2020 तक अमेरिका (U.S.) में मांस की खपत में आई कमी से बड़े पैमाने पर मांस को मिट्टी में दफनाना पड़ा। इससे भूमि उपयोग, भूजल गुणवत्ता, जैव विविधता, मानव स्वास्थ्य और भूमि मूल्य के दीर्घकालिक परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं। यदि मिट्टी में मृदा कार्बनिक पदार्थ (soil organic matter) कम हो तो खाद्यान्न में प्रोटीन की कमी देखी जा सकती है। इसके अलावा रसायनों से मिट्टी की सेहत को होने वाले नुकसान का पैमाना खारापन (क्षारीयता), अम्लीयता, रसायनों के कारण मिट्टी में आने वाली विषाक्तता और पोषक व जैविक तत्वों में गिरावट और अन्य पोषण संबंधी मुद्दों पर आधारित है। वर्तमान समय में रासायनिक (आधुनिक कीटनाशक और उर्वरक) का उपयोग बहुत बढ़ गया है, जिसके परिणामस्वरूप वे पानी के साथ मिश्रित हो कर जमीन में रिसते हैं और धीरे-धीरे मिट्टी की उर्वरता को कम कर देते हैं।
मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार के लिये सतत प्रबंधन (Sustainable management) भोजन और पोषण संबंधी असुरक्षा के जोखिम को कम करने के लिए महत्वपूर्ण है। व्यवस्थित रूप से उगाए गए खाद्यान्नों की पोषण गुणवत्ता उर्वरक आधारित प्रबंधन में उगाये गये खाद्यान्नों की तुलना में बेहतर हो सकती है। साथ ही मृदा तन्यकता (Soil resilience) मृदा गुणवत्ता या मृदा स्वास्थ्य का एक प्रमुख तत्व है। यह स्थायी भूमि प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण है, और खाद्य और अन्य प्राकृतिक उत्पादों की आपूर्ति और सुरक्षा के लिए, तथा मिट्टी कटाव से बचाव के लिये अति आवश्यक कारक है। मृदा माइक्रोबियल (microbial) गतिविधि से भी मृदा की भौतिक रासायनिक संरचनाएं और प्रक्रियाएं प्रभावित होती हैं। तन्यक मृदा (resilient soil) कृषि और वानिकी सहित बायोमास उत्पादन (biomass production) जैसे बुनियादी मिट्टी के गुणों को संबोधित करती है, और पोषक तत्वों, पदार्थों तथा पानी का भंडारण, फ़िल्टरिंग (filtering) और परिवर्तन करती है। मिट्टी की सेहत में सुधार भविष्य में सुरक्षित खाद्यान्न आपूर्ति, पानी पर दबाव घटाने और जलवायु परिवर्तन को बेअसर करने में मदद कर सकता है। तीनों व्यापक मंडलों जैव, जल, और वायुमंडल में अकेली मिट्टी ही है, जिसमें हमारे पास मौजूदा उपलब्ध तकनीकी की मदद से सुधार करने के लिए संघर्ष का अवसर हमारे पास अभी भी है। इसलिए खाद्य सुरक्षा और पोषण पर कोविड-19 महामारी के बुरे प्रभावों से बचने और हरित बदलाव की दिशा में तेज़ी से अग्रसर होने के लिए तत्काल उपायों की ज़ररूत है।
रामपुर जिले में भी कृषि जनसंख्या का मुख्य स्रोत है,जिले का क्षेत्रफल 2367 वर्ग किमी है और यह मध्य गंगा जलोढ़ मैदान का हिस्सा है। अध्ययन के तहत क्षेत्र में जल-प्रणाली राम गंगा नदी, कोसी और बाऊरी, सैजनी, धिमरी, बैगुल इत्यादि जैसी सहायक नदियों द्वारा नियंत्रित कि जाती है। जिले में शुद्ध सिंचित क्षेत्र 186905 हेक्टेयर है, जिनमें से 99% क्षेत्र भूमिगत जल द्वारा और 1431 हेक्टेयर क्षेत्र नहरों द्वारा सिंचित होता है। इस क्षेत्र के आधार पर विभिन्न उपजाऊ प्रकार की मिट्टी को विभिन्न भू-आकृति इकाइयों में विकसित किया गया है। तराई (Tarai) पथ में महीन बनावट, कार्बनिक पदार्थ समृद्ध मिट्टी होती है। दोमट (loamy) मिट्टी का विकास अपलैंड (upland) में मौजूद है और सिल्टी (Silty) मिट्टी छोटे जलोढ़ मैदानों (alluvial plains) में पाई जाती है। यहाँ भूमि उपयोग के पैटर्न को तय करने में मिट्टी के प्रकार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
संदर्भ:
https://bit.ly/30HXBjr
https://bit.ly/2OZ4wBV
https://bit.ly/3cxsqN1
https://bit.ly/3tmL9lj
https://bit.ly/38JZOPw
चित्र संदर्भ:
मुख्य तस्वीर रामपुर में खेती को दिखाती है। (प्रारंग)
दूसरी तस्वीर खेती के पास फैक्ट्री दिखाती है। (प्रारंग)
दूसरी तस्वीर अच्छी तरह से बढ़ती फसलों को दिखाती है। (प्रारंग)