महाशिवरात्रि का पर्व भारत (India), नेपाल (Nepal) और वेस्टइंडीज (West Indies) में मौजूद हिंदू आबादी द्वारा बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं में, पांचांग कुछ विशेष महत्व रखते हैं और उनके पीछे की कहानियां अक्सर विभिन्न समुदायों और क्षेत्रों के अनुसार भिन्न-भिन्न होती हैं। महाशिवरात्रि हिंदू माह माघ में अमावस्या के दिन मनाई जाती है। इस त्योहार की उत्पत्ति के विषय में भी अलग-अलग मान्यताएं प्रचलित हैं।
महा शिवरात्रि का उल्लेख कई पुराणों, विशेषकर स्कंद पुराण, लिंग पुराण और पद्म पुराण में मिलता है। मध्यकालीन शैव ग्रंथों में शिवरात्री से जुड़े विभिन्न संस्करणों का उल्लेख किया गया है, और विभिन्न शिव प्रतीक जैसे लिंगम के लिए उपवास, श्रद्धा का उल्लेख किया गया है। विभिन्न किंवदंतियों में महा शिवरात्रि के महत्व का वर्णन किया जाता है। शैव मत परंपरा से संबंधित एक कथा के अनुसार यह वह रात्रि है जब शिव सृष्टि, संरक्षण और विनाश का ताण्डव नृत्य करते हैं। इस लौकिक नृत्य में भजनों का जप, शिव शास्त्रों का पाठ और भक्तों के राग शामिल होते हैं, जो हर जगह शिव की उपस्थिति को दर्शाते हैं। एक अन्य कथा के अनुसार, यह वह रात्रि है जब शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। एक अलग किंवदंती में कहा गया है कि शिवलिंग जैसे लिंग को भोग प्रसाद चढ़ाने का एक वार्षिक अवसर होता है, जिससे लोग अपने पापों से मुक्ति पाकर पुन: सत्यता के मार्ग पर चल सकते हैं। एक और मान्यता के अनुसार जब भगवान शिव ने समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से निकले विष को पीकर सृष्टि को बचाया था, तभी से शिवरात्रि मनाई जाती है। यह विष उनके कण्ठ में एकत्रित हो गया और जिससे उनका कण्ठ नीला हो गया, यही कारण है कि भगवान शिव को नीलकंठ (नीला गला) भी कहा जाता है।
शिवपुराण की एक पौराणिक कथा के अनुसार, हिंदू त्रिदेव अपनी श्रेष्ठता स्थापित करने के लिए लड़ रहे थे। इस युद्ध की भयावहता को देखकर, अन्य देवताओं ने भगवान शिव से इसमें हस्तक्षेप करने और उन्हें (त्रिदेवों) इस युद्ध की निरर्थकता का अनुभव कराने का अनुरोध किया। तब भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु के बीच अग्नि के एक विशाल स्तंभ का रूप धारण किया। बाद में देवताओं ने इस अग्नि स्तंभ के शिखर को खोजने का निर्णय लिया। भगवान ब्रह्मा ने हंस का रूप धारण किया और ऊपर की ओर उड़ गए, जबकि भगवान विष्णु वराह (हिंदू देवता विष्णु के अवतार के रूप में) का रूप धारण कर पृथ्वी के अंदर चले गए। अत्यधिक प्रकाश के कारण न तो ब्रह्मा और न ही विष्णु इस स्तंभ के सिरे को खोज सके।
अपनी यात्रा के दौरान, भगवान ब्रह्मा एक केतकी के फूल के माध्यम से अग्नि स्तंभ से धीरे-धीरे नीचे उतरे। फूल से जब यह पूछा गया कि वह कहां से आया है तो उसने उत्तर दिया कि उसे अग्नि स्तंभ के शीर्ष पर चढ़ाया गया था। भगवान ब्रह्मा ने अपनी खोज पूरी कर इस फूल को साक्षी के रूप में साथ लेकर आने का निर्णय लिया। इस घटना से शिव क्रुधित हो गए और उन्होंने ब्रह्मा जी को झूठ बोलने के लिए दंडित किया और उन्हें शाप दिया कि कोई भी उनसे कभी प्रार्थना नहीं करेगा। आज तक, बह्मा को समर्पित केवल एक ही मंदिर है जो कि राजस्थान के अजमेर में स्थित पुष्कर मंदिर है। जैसा कि केतकी के फूल ने झूठी गवाही दी थी, तो उसे किसी भी पूजा में प्रसाद के रूप में उपयोग नहीं किया जाता है। चूंकि भगवान शिव ने देवताओं को शांत करने में मदद की, इसलिए उनके सम्मान में महा शिवरात्रि मनाई जाती है। एक अन्य मान्यता के अनुसार, देवी पार्वती ने एक बार पृथ्वी को विनाश से बचाने के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की थी। भगवान शिव इस शर्त पर विश्व को बचाने के लिए सहमत हुए कि इसके निवासी समर्पण और उत्साह के साथ उनकी पूजा करते रहेंगे। इस दिन को महा शिवरात्रि के रूप में मनाया जाने लगा। यह भी माना जाता है कि महा शिवरात्रि के ठीक एक दिन बाद फूल खिलते हैं, जो पृथ्वी की उर्वरता की ओर संकेत करते हैं।
शिवजी का एक अन्य नाम नटराज भी है, इस रूप में यह एक श्रेष्ठ नर्तक हैं। शिव स्वरूप नटराज न सिर्फ उनके संपूर्ण काल एवं स्थान को ही दर्शाता है; अपितु यह भी दर्शाता है कि ब्रह्माण्ड में स्थित सारा जीवन, उनकी गति कंपन तथा ब्रह्माण्ड से परे शून्य की नि:शब्दता सभी कुछ एक शिव में ही निहित है। नटराज दो शब्दों के समावेश से बना है – नट (अर्थात कला) और राज। इस स्वरूप में शिव कलाओं के आधार हैं। शिव का तांडव नृत्य प्रसिद्ध है। शिव ब्रह्मांड में संतुलन को बनाए रखने के लिए विनाशकारी और रचनात्मक नृत्य करते हैं, क्योंकि अस्तित्व के प्रत्येक चक्र के बाद, इसे नष्ट करना होगा, और एक नया चक्र बनाना होगा। यह लौकिक नृत्य और नटराज हिंदुओं के लिए प्रतीकात्मक है क्योंकि यह लौकिक चक्रों, निर्माण और विनाश के आधार का सार प्रदर्शित करता है।
शिव का एक अन्य महत्वपूर्ण प्रतीक गंगा नदी है जो उनकी जटाओं से उलझी हुई है। पृथ्वी में गंगा का उद्भव एक राजा के साठ हजार पुत्रों की आत्मा की शांति के लिए हुआ था, क्योंकि इन्हें एक क्रोधित ऋषि द्वारा भष्म कर दिया गया था। राजा भगीरथ ने अपनी कठोर तपस्या के बाद गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित करवाया, जिस वेग के साथ गंगा नदी पृथ्वी पर अवतरित हो रही थी उससे संपूर्ण पृथ्वी का विनाश हो सकता था इसे शांत करने के लिए शिव जी ने इसे अपनी जटाओं में उलझा दिया। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, गंगा के पवित्र जल में पापों से मुक्ति और मोक्ष दिलाने की क्षमता है।
शिवजी की सबसे प्रतीकात्मक विशेषता उनकी तीसरी आंख है जो सबसे शक्तिशाली और विध्वंसक है। यह उनके माथे में स्थित है। शिव केवल विनाशकारी उद्देश्यों के लिए तीसरी आंख खोलते हैं। हिंदू धर्म में, तीसरी आंख बुद्धिमत्ता और ज्ञान का प्रतिनिधित्व करती है। हालांकि सामान्य मनुष्यों के पास तीसरी आंख नहीं है, वे ध्यान के दौरान अपनी ऊर्जा को प्रवाहित करने के लिए अपने माथे के केंद्र में अपने विचार को केंद्रित करते हैं। जब व्यक्ति ध्यान केंद्रित करता है तो वासनापूर्ण, कपटी और झूठे विचार ध्यान को शुद्ध रखने के लिए "नष्ट" हो जाते हैं। चूंकि यह ध्यान, केन्द्रण और आत्म-जागरूकता के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है, इसलिए हिंदू माथे के इस स्थान पर तिलक लगाते हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/3vhDSFk
https://bit.ly/3l9CY9j
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र में शिव प्रतिमा को दिखाया गया है। (पिक्साबे)
दूसरी तस्वीर में माउंट कैलाश को दिखाया गया है। (विकिपीडिया)
अंतिम तस्वीर में नंदी के साथ 8 वीं शताब्दी के शिव को दिखाया गया है। (विकिपीडिया)