हमारा देश भारत कई वर्षों से विभिन्न धर्मों को एक सूत्र में बाँधे हुए है। विभिन्न धर्मों के अनुयायी यहाँ मिल-जुल कर रहते हैं। जहाँ सभी लोग न केवल अपने धर्म एवम् संस्कृति का पालन स्वतंत्रतापूर्वक करते हैं बल्कि सभी धर्मों के त्यौहारों को पूरे देश में बडे़ ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। हमारे देश में आज भी कई ऐसे प्रतीक विद्यमान हैं जो भारत के विभिन्न धर्मों की एकता का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन्हीं में से एक है उत्तर प्रदेश राज्य की राजाधानी लखनऊ से 314 किलोमीटर दूर एक छोटे से शहर रामपुर के केंद्र में स्थित रज़ा लाइब्रेरी (Raza Library)। जिसका निर्माण 18 वीं शताब्दी में रामपुर के उत्तराधिकारी नवाब द्वारा किया गया था। रामपुर की रज़ा लाइब्रेरी एशिया के सबसे बड़े और सुंदर पुस्तकालयों में से एक है। इस पुस्तकालय की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ उर्दू, हिंदी, पश्तो और संस्कृत भाषा में लिखी गई कई ऐतिहासिक पांडुलिपियों को संरक्षित रखा गया है। पश्तो में अनुवादित पहली कुरान की प्रति भी यहाँ देखी जा सकती है। पांडुलिपियों के अतिरिक्त यहाँ विभिन्न ऐतिहासिक दस्तावेज़, इस्लामी सुलेख के नमूने, तमिल और तुर्की भाषा की पुस्तकें, लगभग 30,000 मुद्रित पुस्तकें, कई लघु चित्र, खगोलीय उपकरणों और अरबी व फारसी के सचित्र कार्यों के दुर्लभ और मूल्यवान संग्रह मौजूद हैं। ऐसा माना जाता है विद्या और ज्ञान का यह महान संरक्षण-गृह रामपुर के पहले नवाब फैजुल्लाह खान के प्रयासों का परिणाम था। भारत की स्वतंत्रता के बाद जब सभी राज्य भारतीय संघ में विलय हो रहे थे। तब उत्तर प्रदेश की पहली रियासत जिसे भारतीय संघ में मिलाया गया वह रामपुर रियासत थी। उसके बाद वर्ष 1949 में रज़ा पुस्तकालय का नियंत्रण एक ट्रस्ट (Trust) प्रबंधन के हाथों में सौंप दिया गया। जो जुलाई 1975 तक ट्रस्ट के ही पास रहा। 1 जुलाई 1975 को भारत सरकार ने संसद में पारित एक अधिनियम के तहत पुस्तकालय को अपने अधीन ले लिया और पुस्तकालय के पूर्ण वित्त पोषण और प्रबंधन का कार्यभार संभालने का निर्णय लिया। वर्तमान में यह पुस्तकालय केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित है जिसे संस्कृति विभाग के तहत राष्ट्रीय महत्व के एक स्वायत्त संस्थान के रूप में संरक्षित किया गया है। वर्ष 2003 में स्थापित राष्ट्रीय पांडुलिपियों के मिशन (National Mission for Manuscripts) के अंतर्गत एक 'पांडुलिपि संरक्षण केंद्र' ('Manuscript Conservation Centre') या MCC बन गया है। इसे भारतीय अध्ययन और कलाओं का ख़जाना माना जाता है।
रामपुर के एक नवाब हामिद अली खान (1889-1930) को वास्तुकला की अच्छी समझ थी। वह एक कवि और कलाकार थे। उन्होने शहर में कई शानदार महलों और राज्य भवनों का निर्माण करवाया था। वर्ष 1904 में फोर्ट-पैलेस परिसर (Fort-Palace Complex) के भीतर पुराने किले की नींव पर एक इंडो-यूरोपियन शैली (Indo-European Style) का एक शानदार ख़ास बाग महल (The Khas Bagh Palace) का निर्माण किया गया। जिसे हामिद मंजिल भी कहा जाता है। 1905 में हामिद अली ने किले के भीतर एक शानदार दरबार हॉल (Darbar Hall) का भी निर्माण कराया। इस कार्य को चीफ इंजीनियर (Chief Engineer) डब्ल्यू.सी. राइट (W.C. Wright) द्वारा पूर्ण किया गया। राइट की वास्तुकला में इस्लामी, हिंदू और विक्टोरियन गोथिक के तत्वों का समावेश मिलता है, जिन्हें 'इंडो-सरैसेनिक' (Indo-Saracenic) के नाम से जाना जाता है। आज भी रामपुर रज़ा लाइब्रेरी, वहाँ रखे गए ओरिएंटल पांडुलिपियों (Oriental Manuscripts) का प्रसिद्ध संग्रह है। साथ ही वर्ष 1957 में रज़ा लाइब्रेरी को एक शानदार इमारत में परिवर्तित कर दिया गया। इसी वर्ष राइट ने रज़ा लाइब्रेरी के आंतरिक भाग का निर्माण किया था। ज्ञान का भंडार और भाईचारे का प्रतीक मानी जाने वाली रज़ा लाइब्रेरी में सभी धर्मों से जुड़ी ख़ास पुस्तकें कई वर्षों से संग्रहित की गई हैं। उदाहरण के लिए हजरत अली द्वारा हिरन की खाल पर लिखी कुरान और सुमेर चंद की फारसी में लिखी गई रामायण भी शामिल है। इस रामायण के शुरुआती पेज सोने के पानी से लिखे गए हैं।
इस पुस्कालय की वास्तुकला के इतिहास पर नज़र डालें तो इसमें इस्लामिक धार्मिक संस्कृति की झलक देखी जा सकती है। इस्लामिक वास्तुकला में मीनारों का विशेष महत्व होता है। यही वह स्थान होता है जहाँ से प्रतिदिन पाँच बार प्रर्थना अथवा नवाज़ की जाती है। मीनार को हमेशा एक मस्जिद से जोड़ा जाता है और इसमें एक या एक से अधिक बालकनियाँ या खुली गैलरी बनी होती हैं। पूर्व ग्रीक (Greek) प्रहरी और ईसाई चर्च (Christian Churches) की मीनारें भी ऐसी ही प्राचीन मीनारों के अन्य उदाहरण हैं। 724 और 727 ईशा पूर्व के बीच एक विशाल वर्ग के रूप में बनाया गया उत्तरी अफ्रीका (North Africa) का सबसे पुराना मीनार क्यारुआन (Kairouan), ट्यूनीशिया (Tunisia) में स्थित है। रज़ा पुस्कालय की मीनारें भारत के चार प्रमुख धर्मों की एक-जुटता की प्रतीक हैं। इसका कारण यह है कि मीनार का पहला भाग एक मस्जिद के आकार का बनाया गया है। इसके ऊपर का भाग चर्च जैसा दिखाई देता है। मीनार का तीसरा भाग सिख धर्म के धर्मस्थल गुरुद्वारे की वास्तुशिल्प से बना है। अंतत: मीनार का शीर्ष भाग हिंदू मंदिर के आकार का बना है। इस प्रकार इस पुस्तकालय की मीनारें चारों धर्मों का समान रूप से प्रतिनिधित्व करती हैं और न केवल देश को बल्कि पूरे विश्व को सर्व धर्म समभाव अर्थात सभी धर्म समान हैं, का संदेश देती हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/38789g5
https://bit.ly/3kCJYev
https://bit.ly/2NV1T45
https://bit.ly/2PkLWo2
https://bit.ly/3kGUlO8
https://bit.ly/30hzfMV
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र में रज़ा लाइब्रेरी के 4 धर्मों के 4 खिड़कियाँ दिखाया गया है। (प्रारंग)
दूसरी तस्वीर रज़ा लाइब्रेरी के 4 धर्मों के 4 खिड़कियाँ दिखाया गया है।(प्रारंग)
अंतिम तस्वीर में रज़ा लाइब्रेरी दिखाया गया है। (प्रारंग)