18वीं शताब्दी के आरंभ में उत्तरी भारत में आने वाली कौम को इतिहास में रोहेला के नाम से जाना जाता है। यह लोग पेशावर फौजी थे। भारत आकर फौजी नौकरी करना – उनके जीविका का मुख्य साधन था। मुग़ल शासक औरंगज़ेब के निधन (1707) के बाद मुग़ल साम्राज्य का पतन बड़ी तेज़ी से आरंभ हुआ। केंद्र की कमज़ोरी का लाभ उठाकर मुग़ल सूबेदारों ने स्वतन्त्र सूबों की स्थापना करना आरंभ कर दिया। वे नाममात्र को ही मुग़ल साम्राज्य से रिश्ता बनाये रहें|
इस राजनैतिक पतन का अंत 1857 की क्रांति में हुआ जब अंग्रेजों ने भारत के अधिकतर भाग पर अधिकार स्थापित कर लिया। अराजकता के इस युग में रोहेलों को कठेर में फलने फूलने और रोहेला साम्राज्य स्थापित करने का सुअवसर मिला। सरदार दाऊद खां रोहेला और उसके पुत्र नवाब अली मुहम्मद खां ने कठेर पर और गंगा के दोआबी इलाके – नजीबाबाद में नवाब नजीब-उद-दौला ने शक्तिशाली रोहेला राज्य स्थापित किया। रोहेलाओं नें आँवला, बरेली, पीलीभीत, मोरादाबाद, शाहजहाँपुर और बिसौली को सांस्कृतिक केंद्रों के रूप में बनाया।
रोहेलाओं के इसी काल में बड़े पैमाने पर भवनों, मस्जिदों का निर्माण हुआ। भवनों आदि के उदाहरण उपरोक्त स्थानों पर देखने को मिल जाते हैं। यहाँ के भवनों में यहाँ की ऐतिहासिकता दिखाई देती है।
यदि रोहेलाओं के उदय व मुग़लों के पतन के समय काल की बात करें तो यह दिखाई देता है कि- मुग़ल साम्राज्य के पतन का मुख्य कारण सरकारी आमदनी में कमी थी। मुग़ल हुकूमत उस वक्त तक मज़बूत रही जब तक मालगुज़ारी की आमदनी केन्द्रीय कोष में जमा होती रही। ख़ालसा ज़मीनों की आमदनी फौजी तनख्वाह और शाही खानदान की आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए पर्याप्त रही। जब राजस्व विभाग में चोरियाँ आरंभ हो गयी तो सरकारी आमदनी कम हो गयी। सूबेदार आमदनी बढ़ाने के लिए दूसरे इलाकों पर अधिकार करने लगे। सूबेदारों ने लगान वसूल करने के लिए जाती फ़ौज रखना शुरू कर दिया। बादशाहों की गलत योजनाओं के कारण ज़मींदार और अमीर वर्ग भी परेशान रहने लगा। लगान वसूल करने के लिए जब फ़ौज आती तो काश्तकार गाँव छोड़कर जंगल में भाग जाते।
उपरोक्त सभी बातें मुग़ल राज के पतन का कारण बनीं और मुग़लों के पतन के कारण ही रोहेला साम्राज्य की स्थापना हुई। रोहेलाओं के आधार इस क्षेत्र का नाम रोहेलखंड पड़ा।
1. रोहेला इतिहास (इतिहास व संस्कृति) 1707-1774, डब्ल्यू. एच. सिद्दीकी।