रामपुर में अक्सर पक्षियों की एक अद्भुत प्रजाति शिकरा को देखा जाता है। भारत (India) और पाकिस्तान (Pakistan) में शिकरा बाज की प्रजातियों में से सबसे ज्यादा पसंदीदा है क्योंकि इसे आसानी से प्रशिक्षित किया जा सकता था। इसका नाम उर्दू और हिंदी शब्द शिकारी से लिया गया है। यह अपने कार्यों से अपने नाम के बहुत करीब प्रतीत होता है। शिकरा (एक्सीपीटर बैजियस (Accipiter badius)) अपने परिवार में सबसे छोटा शिकारी पक्षी है, जो एशिया (Asia) तथा अफ़्रीका (Africa) में काफ़ी संख्या में पाया जाता है। यहां इसे गोशॉक (goshawk) भी कहा जाता है। इसका अफ्रीकी रूप एक अलग प्रजाति का प्रतिनिधित्व करता है, लेकिन सामान्यत: इसे शिकरा की उप-प्रजाति के रूप में ही माना जाता है। शिकरा चीनी गोशॉक (Chinese goshawk) और यूरेशियन गौरैया (Eurasian Sparrow) सहित अन्य गौरैया प्रजातियों के समान ही है।
शिकरा एक छोटा पक्षी है जो तक़रीबन 26 से 30 से.मी. लम्बा होता है। अपनी प्रजाति के अन्य सदस्यों की तरह शिकरे के छोटे, गोलाकार पंख होते हैं और इनकी पतली, लम्बी पूँछ होती है। वयस्क पेट की तरफ़ से सफ़ेद होते हैं और उसमें कत्थई रंग की पड़ी लकीरें होती हैं जो सफ़ेदी छुपाकर पेट को लालिमा देती हैं। निचले पेट में कत्थई धारियाँ कम हो जाती हैं और निचला पेट सफ़ेद सा होता है। रान के क्षेत्र में प्रायः सफ़ेदी ही दिखाई देती है। मादा नर से थोड़ी बड़ी होती हैं। नरों की आँख की पुतली लाल रंग की होती है जबकि मादा की पुतली पीले–नारंगी रंग की होती है। यह तीक्ष्ण और दो नोट (two note) वाली ध्वनि उत्पन्न करते हैं और इनकी विशिष्ट पल्लव और ग्लाइड (glide) की उड़ान होती है। भुजंगा द्वारा इनके आवाज की नकल की जाती है, क्रमिक विकास के दौरान, शिकारियों से बचने के लिए इसके रूप की नकल पपीहे ने की है। ये अपने साहस और सामर्थ्य के लिए जाने जाते हैं जो कि अपने आकार के भी बड़े पक्षियों को उठा लेते हैं।
शिकरा जंगलों, खेतों और शहरी क्षेत्रों की एक विस्तृत श्रृंखला में पाया जाता है, यह सामान्यत: अकेले या फिर जोड़े में घूमना पसंद करते हैं। जो अपने भोजन के लिए मुख्य रूप से कृन्तकों, गिलहरी, छोटे पक्षियों, छोटे सरीसृपों (मुख्य रूप से छिपकली लेकिन कभी-कभी छोटे सांप) और कीड़ों का शिकार करता है। यह अपने घोंसले टहनियों और लकडि़यों से बनाते हैं जिसका आकार कप जैसा होता है, जो कौवे के घोंसलों के समान दिखता है। ये घरेलू पक्षी नहीं हैं, फिर भी ये पेड़ों पर घोसले बनाते हुए विशेष सावधानी बरतते हैं। शहरों में, ये आक्रामक हो सकते हैं, अपने घोंसले को कौवे और अन्य प्राणियों (यहां तक कि मनुष्यों) से बचा सकते हैं। भारत में इनके प्रजनन का मौसम मार्च से जून तक गर्मियों में होता है। नर और मादा दोनों अंडों को सेते हैं (वे समानता में विश्वास करते हैं)।
भारत और पाकिस्तान में जो लोग शिकार के लिए शिकरा को पालते हैं तथा इन्हें प्रशिक्षित करते हैं, उनमें यह पक्षी अत्यधिक लोकप्रिय है। स्वतंत्रता से पूर्व यह शिकारियों का सबसे अच्छा दोस्त हुआ करता था क्योंकि इसे शिकार के लिए आसानी से प्रशिक्षित और नियंत्रित किया जा सकता था। इसलिए इसे बाज़ की कला में भी अत्यधिक इस्तेमाल किया गया। हालांकि अब इस तरह की गतिविधियों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है, किंतु आज भी यह अपने असाधारण धैर्य, अनुशासन, साहस, शिकारी के रूप में अपनी बुद्धि, और आसानी से प्रशिक्षित और नियंत्रित होने की अपनी विशेषताओं के लिए लोकप्रिय है जो इसे अद्भुत और अन्य जीवों से अलग बनाती हैं।
कई संस्कृतियों में इसे दिमाग और बहादुरी का प्रतीक भी माना गया है। अक्सर इसका उपयोग अधिक बेशकीमती बाज़ों के लिए भोजन सप्लाई करने के लिए किया जाता था। 2009 में एक भारतीय नौसेना के हेलीकॉप्टर बेस (helicopter base) का नाम INS शिकरा (INS Shikra) भी रखा गया था। प्रसिद्ध पंजाबी कवि शिव कुमार बतालवी ने ‘मैंने इक शिकरा यार बनाया’ नामक कविता भी लिखी है, जिसमें उसने अपने खोए हुए प्यार की तुलना शिकरा से की है। आईयूसीएन (International Union for Conservation of Nature) द्वारा शिकरा को सबसे कम चिंताजनक (Least concern) जीव की श्रेणी में रखा गया है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3bzTlqY
https://bit.ly/3aU0Udc
https://bit.ly/3r0aSzb
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र में शिकारा पक्षी दिखाया गया है। (पिक्सिनियो)
दूसरी तस्वीर में उड़ते हुए शिकरा को दिखाया गया है। (विकिमीडिया
आखिरी तस्वीर में महिला शिकारा दिखाया गया है। (विकिमीडिया)