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यह देश के उत्तरी, पश्चिमी और मध्य भागों में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल और बिहार में। पंजाब में, बसंत पंचमी को पतंगों के त्योहार के रूप में मनाया जाता है, जबकि राजस्थान में इस त्योहार पर चमेली (jasmine) की माला पहनाई जाती है। बसंत पंचमी का उत्सव न सिर्फ भारत में बल्कि भारत के पड़ोसी देशों जैसे बांग्लादेश (Bangladesh) और नेपाल (Nepal) में भी इस त्योहार को बहुत जोश के साथ मनाते हैं। इसके अलावा बाली द्वीप और इंडोनेशिया (Indonesia) में इसे "हरि राया सरस्वती" (Hari Raya Saraswati) (सरस्वती का महान दिन) के रूप में जाना जाता है। यह 210-दिवसीय बालिनी पावुकॉन कैलेंडर (Balinese Pawukon calendar) की शुरुआत को भी चिह्नित करता है। चूंकि देवी सरस्वती ज्ञान का प्रतीक हैं, इसलिए कई शैक्षणिक संस्थान जैसे कि स्कूल और पुस्तकालय भी देवी का सम्मान करने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए प्रार्थना की व्यवस्था करते हैं।
हिंदुओं की इस त्योहार में गहरी आस्था है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्त्व है, कई जगह पवित्र नदियों के तट और तीर्थ स्थानों पर बसंत मेला भी लगता है। यह दिन नया काम शुरू करने, शादी करने या गृह प्रवेश करने के लिए बेहद शुभ माना जाता है। बसंत पंचमी के उपलक्ष्य में रंग पीले का बहुत महत्त्व है, क्योंकि यह सरसों के फूलों के खिलने का समय है जो पीले रंग के होते हैं, और देवी सरस्वती का पसंदीदा रंग पीला ही है, इसलिए लोग इस दिन पीले कपड़े पहनते हैं और पीले व्यंजन तथा मिठाइयां तैयार करते हैं जो काफी स्वादिष्ट और सेहतमंद होते हैं। बसंत का यह पीला रंग शांति, समृद्धि, प्रकाश, ऊर्जा और आशावादी होने का प्रतीक है। इसके अलावा, त्योहार के लिए पारंपरिक दावत तैयार की जाती है, जिसमें व्यंजन आमतौर पर पीले और केसरिया (saffron) रंग के होते हैं। बसंत पंचमी पर देश के कई हिस्सों में केसर के साथ पके हुए पीले चावलों की पारंपरिक दावत होती है। बिहार में देवी सरस्वती को बूंदी और लड्डू चढ़ाए जाते हैं, इसके साथ श्रीफल (नारियल), गंगा जल और बेर भी चढ़ाया जाता है। परंपरागत रूप से, पंजाब में मक्के की रोटी और सरसों के साग की दावत का प्रबंध किया जाता है। बिहार में, लोग देवी को खीर, मालपुआ और बूंदी के व्यंजनों का भोग लगाते हैं। केसरिया शीरा बसंत पंचमी के दौरान महाराष्ट्र या गुजराती घरों में तैयार होने वाली सूजी और दूध की मिठाई है, जिसे देवी सरस्वती के भोग के लिये तैयार किया जाता है। बंगाल में देवी सरस्वती को राजभोग चढ़ाया जाता है। राजभोग एक पारंपरिक बंगाली मिठाई है जो पनीर के साथ बनाई जाती है और बादाम और पिस्ता से भरी होती है। राजभोग बंगाल में हर उत्सव का हिस्सा है, लेकिन अपने पीले रंग के कारण, यह सरस्वती पूजा समारोहों के दौरान भी एक लोकप्रिय व्यंजन है। बंगाल में इस दिन पीले रंग की खिचड़ी खाई भी जाती है, पंडालों में सामुदायिक सभा के लिए बड़ी मात्रा में राष्ट्र का पसंदीदा भोजन यानी की खिचड़ी तैयार की जाती है। पीला रंग शिक्षकों के लिये ज्ञान और शुभता से गहराई से जुड़ा हुआ है।
अन्य बहुत सी परंपराएं हैं जो बसंत पंचमी के उत्सव से जुड़ी हैं। विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग रीति-रिवाज होते हैं जिनके साथ वे इस रंगीन त्योहार का पालन करते हैं। कई क्षेत्रों में मूर्ति विस्तापन दिवस पर, बड़े जुलूस आयोजित किए जाते हैं। माँ सरस्वती की मूर्तियों को गंगा नदी के पवित्र जल में विसर्जित किया जाता है। कई जगह इस दिन बच्चों को उनके पहले शब्दों को पढ़ना और लिखना सिखाया जाता है। कुछ लोग इस दिन संगीत का अध्ययन करते हैं या संगीत की कोई नयी धुन बनाते हैं।