बसंत पंचमी (Basant Panchami) का त्योहार उत्तर भारत में धूमधाम से मनाया जाता है और इस वर्ष (2021), बसंत पंचमी का यह त्योहार 16 फरवरी, मंगलवार को मनाया जा रहा है। यह हर साल माघ के हिंदू चंद्र कैलंडर (lunisolar calendar) महीने के पांचवें दिन मनाया जाता है, जो आमतौर पर जनवरी या फरवरी के अंत में आता है। इस त्यौहार को सरस्वती पूजा के नाम से भी जाना जाता है और यह हिंदू धर्म में ज्ञान, संगीत और कलाओं की देवी सरस्वती को समर्पित हैं। यूं तो भारत में छ: ऋतुएं होती हैं लेकिन बसंत को ऋतुओं का राजा कहा जाता है और यह त्योहार बसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है। बसंत पंचमी पर सरसों के खेत लहलहा उठते हैं, जौ, ज्वार, चना और गेहूं की बालियां खिलने लगती हैं। इस दिन से बसंत ऋतु का प्रारंभ होता है। इसके अलावा इसे होली की तैयारी की शुरुआत के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है जो 40 दिन बाद पड़ती है। इस दौरान मौसम सुहाना हो जाता है और पेड़-पौधों में नए फल-फूल तथा कोपलें पल्लवित होने लगते हैं। पंचमी पर वसंत से चालीस दिन पहले वसंत उत्सव मनाया जाता है।
यह देश के उत्तरी, पश्चिमी और मध्य भागों में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल और बिहार में। पंजाब में, बसंत पंचमी को पतंगों के त्योहार के रूप में मनाया जाता है, जबकि राजस्थान में इस त्योहार पर चमेली (jasmine) की माला पहनाई जाती है। बसंत पंचमी का उत्सव न सिर्फ भारत में बल्कि भारत के पड़ोसी देशों जैसे बांग्लादेश (Bangladesh) और नेपाल (Nepal) में भी इस त्योहार को बहुत जोश के साथ मनाते हैं। इसके अलावा बाली द्वीप और इंडोनेशिया (Indonesia) में इसे "हरि राया सरस्वती" (Hari Raya Saraswati) (सरस्वती का महान दिन) के रूप में जाना जाता है। यह 210-दिवसीय बालिनी पावुकॉन कैलेंडर (Balinese Pawukon calendar) की शुरुआत को भी चिह्नित करता है। चूंकि देवी सरस्वती ज्ञान का प्रतीक हैं, इसलिए कई शैक्षणिक संस्थान जैसे कि स्कूल और पुस्तकालय भी देवी का सम्मान करने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए प्रार्थना की व्यवस्था करते हैं।
हम बसंत पंचमी क्यों मनाते हैं, इसके पीछे एक दिलचस्प इतिहास है। एक प्रचलित मान्यता के अनुसार, देवी सरस्वती, जिन्हें शिक्षा, संगीत और कला की देवी कहा जाता है, इस दिन जन्मी थीं और लोग ज्ञान प्राप्त करने के लिए उनकी पूजा करते हैं। इसलिए अक्सर लोगों को बसंत पंचमी पर सरस्वती पूजा करते हुये देखा जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं में देवी सरस्वती को सफेद पोशाक, सफेद फूल और सफेद मोती साथ कमल पर बैठे हुये दिखाया है, जिन्होंने हाथों में एक वाद्य यंत्र वीणा (Veena) भी धारण किया है। देवी सरस्वती की चार भुजाएँ शिक्षा ग्रहण करने के लिये मानव व्यक्तित्व के चार पहलुओं का प्रतिनिधित्व करती हैं: मन (mind), बुद्धि (intellect), सतर्कता (alertness) और अहंकार (ego)। यह एक सफेद हंस (swan) पर सवार होती है, जो यह दर्शाता है कि व्यक्ति को अच्छे और बुरे कर्मों के बीच भेदभाव करने के लिए स्पष्ट दृष्टि और ज्ञान होना चाहिए। इसके अलावा, हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना भी जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन ब्रह्मांड का निर्माण किया था। बसंत ऋतु को प्रेम की ऋतु माना जाता है, हमारे चारों ओर फूल खिले रहते हैं और पक्षियों चहकते है। इसमें फूलों के बाणों को खाकर दिल प्रेम से सराबोर हो जाता है। इन कारणों से बसंत पंचमी के दिन कामदेव और उनकी पत्नी रति की पूजा की जाती है। बिहार के औरंगाबाद (Aurangabad) जिले में सूर्य-देवता का मंदिर है, जिसे देवार्क सूर्य मंदिर (Deo-Sun Shrine) के रूप में जाना जाता है, की स्थापना बसंत पंचमी के दिन हुई थी। यह दिन इलाहाबाद (प्रयागराज) के राजा ऐला (Aila ) द्वारा मंदिर की स्थापना और सूर्य-देव के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
हिंदुओं की इस त्योहार में गहरी आस्था है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्त्व है, कई जगह पवित्र नदियों के तट और तीर्थ स्थानों पर बसंत मेला भी लगता है। यह दिन नया काम शुरू करने, शादी करने या गृह प्रवेश करने के लिए बेहद शुभ माना जाता है। बसंत पंचमी के उपलक्ष्य में रंग पीले का बहुत महत्त्व है, क्योंकि यह सरसों के फूलों के खिलने का समय है जो पीले रंग के होते हैं, और देवी सरस्वती का पसंदीदा रंग पीला ही है, इसलिए लोग इस दिन पीले कपड़े पहनते हैं और पीले व्यंजन तथा मिठाइयां तैयार करते हैं जो काफी स्वादिष्ट और सेहतमंद होते हैं। बसंत का यह पीला रंग शांति, समृद्धि, प्रकाश, ऊर्जा और आशावादी होने का प्रतीक है। इसके अलावा, त्योहार के लिए पारंपरिक दावत तैयार की जाती है, जिसमें व्यंजन आमतौर पर पीले और केसरिया (saffron) रंग के होते हैं। बसंत पंचमी पर देश के कई हिस्सों में केसर के साथ पके हुए पीले चावलों की पारंपरिक दावत होती है। बिहार में देवी सरस्वती को बूंदी और लड्डू चढ़ाए जाते हैं, इसके साथ श्रीफल (नारियल), गंगा जल और बेर भी चढ़ाया जाता है। परंपरागत रूप से, पंजाब में मक्के की रोटी और सरसों के साग की दावत का प्रबंध किया जाता है। बिहार में, लोग देवी को खीर, मालपुआ और बूंदी के व्यंजनों का भोग लगाते हैं। केसरिया शीरा बसंत पंचमी के दौरान महाराष्ट्र या गुजराती घरों में तैयार होने वाली सूजी और दूध की मिठाई है, जिसे देवी सरस्वती के भोग के लिये तैयार किया जाता है। बंगाल में देवी सरस्वती को राजभोग चढ़ाया जाता है। राजभोग एक पारंपरिक बंगाली मिठाई है जो पनीर के साथ बनाई जाती है और बादाम और पिस्ता से भरी होती है। राजभोग बंगाल में हर उत्सव का हिस्सा है, लेकिन अपने पीले रंग के कारण, यह सरस्वती पूजा समारोहों के दौरान भी एक लोकप्रिय व्यंजन है। बंगाल में इस दिन पीले रंग की खिचड़ी खाई भी जाती है, पंडालों में सामुदायिक सभा के लिए बड़ी मात्रा में राष्ट्र का पसंदीदा भोजन यानी की खिचड़ी तैयार की जाती है। पीला रंग शिक्षकों के लिये ज्ञान और शुभता से गहराई से जुड़ा हुआ है।
अन्य बहुत सी परंपराएं हैं जो बसंत पंचमी के उत्सव से जुड़ी हैं। विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग रीति-रिवाज होते हैं जिनके साथ वे इस रंगीन त्योहार का पालन करते हैं। कई क्षेत्रों में मूर्ति विस्तापन दिवस पर, बड़े जुलूस आयोजित किए जाते हैं। माँ सरस्वती की मूर्तियों को गंगा नदी के पवित्र जल में विसर्जित किया जाता है। कई जगह इस दिन बच्चों को उनके पहले शब्दों को पढ़ना और लिखना सिखाया जाता है। कुछ लोग इस दिन संगीत का अध्ययन करते हैं या संगीत की कोई नयी धुन बनाते हैं।
संदर्भ:
https://en.wikipedia.org/wiki/Vasant_Panchami
https://bit.ly/3rWL07r
https://bit.ly/2LWryIK
https://bit.ly/3anD9d8
चित्र संदर्भ:
मुख्य तस्वीर में बसंत पंचमी के लिए पीले फूल दिखाई देते हैं। (विकिमीडिया)
दूसरी तस्वीर बसंत पंचमी महोत्सव के लिए पीले रंग की धार्मिक पोशाक में एक लड़की को दिखाती है। (विकिमीडिया)
तीसरी तस्वीर मालपुआ पकवान दिखाती है। (विकिमीडिया)