किसी स्वतंत्र राष्ट्र के लिये जितनी महत्ता उसके प्रतीकों, राष्ट्रगान और राष्ट्रध्वज की होती है उतनी ही महत्ता उस देश की राजभाषा या राष्ट्रभाषा की भी होती है। परंतु भारत विभिन्नताओं से भरा एक ऐसा राष्ट्र है जिसकी भाषा हर कोस पर बदल जाती है। भारत एक बहुभाषी राष्ट्र है, जिसकी राजभाषा ‘हिंदी’ को बनाया गया है। 14 सितम्बर 1949 को सर्वसम्मति से हिंदी को यह गौरव प्राप्त हुआ था, और इसे राजभाषा का दर्जा 26 जनवरी 1950 को दिया, जब भारत को संविधान बना था। हिंदी भले ही राष्ट्रभाषा न हो परंतु भारत संघ की राजभाषा अवश्य है जिसकी लिपि देवनागरी को माना गया है। भारतीय संविधान में किसी भी भाषा को राष्ट्र भाषा के रूप में नहीं माना गया है। आज तक भारत में कोई राष्ट्रीय भाषा नहीं है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 (1) में विशेष रूप से उल्लेख है कि, संघ की आधिकारिक भाषा देवनागरी लिपि में हिंदी होगी। भारतीय संसद में कार्य केवल हिंदी या अंग्रेजी में किया जा सकता है। अंग्रेजी का उपयोग आधिकारिक उद्देश्यों जैसे कि संसदीय कार्यवाही, न्यायपालिका, केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच संचार के लिए किया जाता है। भारत के राज्यों के पास यह स्वतंत्रता और शक्तियां होती है कि वह अपनी स्वयं की आधिकारिक भाषा को निर्दिष्ट कर सकते हैं।
सरकार ने 22 भाषाओं को आधिकारिक भाषा के रूप में जगह दी है। जिसमें केन्द्र सरकार या राज्य सरकार अपने जगह के अनुसार किसी भी भाषा को आधिकारिक भाषा के रूप में चुन सकती है। केन्द्र सरकार ने अपने कार्यों के लिए हिन्दी और अंग्रेजी भाषा को आधिकारिक भाषा के रूप में जगह दी है। इसके अलावा अलग अलग राज्यों में स्थानीय भाषा के अनुसार भी अलग अलग आधिकारिक भाषाओं को चुना गया है। फिलहाल 22 आधिकारिक भाषाओं में असमी, उर्दू, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, ओडिया, पंजाबी, संस्कृत, संतली, सिंधी, तमिल, तेलुगू, बोड़ो, डोगरी, बंगाली और गुजराती है। ब्रिटिश भारत की आधिकारिक भाषाएं अंग्रेजी, उर्दू और हिंदी थीं, अंग्रेजी का उपयोग केंद्रीय स्तर पर उद्देश्यों के लिए किया जाता था।
1946-1949 तक संविधान को बनाने की तैयारियां शुरू कर दी गई। संविधान में हर पहलू को लंबी बहस से होकर गुजरना पड़ा ताकि समाज के किसी भी तबके को ये ना लगे कि संविधान में उसकी बात नहीं कही गई है। लेकिन सबसे ज्यादा विवादित मुद्दा रहा कि किस भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा देना है, इसे लेकर सभा में एक मत पर आना थोड़ा मुश्किल लग रहा था। जब दिसंबर 1946 में पहली बार संविधान सभा की बैठक हुई थी, तब निकाय द्वारा लिए गए शुरुआती फैसलों में यह कहा गया था कि सदन की कार्यवाही हिंदुस्तानी और अंग्रेजी में आयोजित की जाएगी। इस समय झांसी के एक सदस्य, आर.वी. धुलेकर (RV Dhulekar) ने हिंदी में अपनी बात कही जिस पर अध्यक्ष ने उन्हें टोकते हुए कहा कि सभा में मौजूद कई लोगों को हिंदी नहीं आती है और इसलिए वह उनकी बात समझ नहीं पा रहे हैं। इस पर धुलेकर ने तिलमिलाते हुए कहा कि 'जिन्हें हिंदुस्तानी नहीं आती, उन्हें इस देश में रहने का हक नहीं है।' इस बात पर दक्षिण भारत से भी पुरजोर विरोध हुआ। सदन में बोली गयी हर हिन्दी के लिए अंग्रेजी में अनुवाद माँगा गया। परंतु अंततः फैसला हिंदुस्तानी के पक्ष में हुआ।
जुलाई 1947 तक, जब भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को चुना गया था और राष्ट्रीय भाषा तय करने का समय था, तब जवाहरलाल नेहरू ने हिंदुस्तानी (हिंदी और ऊर्दू का मिश्रण) भाषा का समर्थन किया, उनके साथ कई और सदस्य भी शामिल हुए लेकिन विभाजन की वजह से लोगों के मन में काफी गुस्सा था, इसलिए हिंदुस्तानी भाषा की जगह शुद्ध हिंदी के पक्षधर का पलड़ा ज्यादा भारी होने लगा। हिंदी भाषा विरोधियों ने भी अपना पक्ष रखा और हिंदी को न चुने जाने की मांग की। हिंदी के समर्थकों में प्रमुख रूप से कांग्रेस के सदस्य थे जैसे पीडी टंडन (PD Tandon), केएम मुंशी (KM Munshi), रविशंकर शुक्ला (Ravi Shankar Shukla) और सम्पूर्णानंद (Sampurnanand)। इन सभी ने हिंदी के समर्थन में कई प्रस्ताव रखे लेकिन कोई भी प्रयास सफल नहीं हो सका क्योंकि हिंदी अभी भी दक्षिण और पूर्वी भारत के राज्यों के लिए अनजान भाषा ही थी। केवल हिंदी को भारत की राष्ट्रीय भाषा बनाए जाने के लिए विरोध प्रदर्शन किए गये। बंगाल से आई लक्ष्मी कांता मैत्र (Lakshmi Kanta Maitra) ने राष्ट्रभाषा के रूप में संस्कृत का पक्ष रखा। इसके अलावा, बंगाली और ओडिया को भी राष्ट्रीय भाषाओं के रूप में प्रस्तावित किया गया था। एक लंबी बहस के बाद सभा इस फैसले पर पहुंची कि भारत की राजभाषा हिंदी (देवनागिरी लिपि) होगी लेकिन संविधान लागू होने के 15 साल बाद यानि 1965 तक सभी राज काज के काम अंग्रेजी भाषा में किए जाएंगे। इस समझौते को सभी ने स्वीकार किया, और कहा गया की दक्षिण भारतीय कुछ समय के लिए अंग्रेजी और संस्कृत भाषा में राज्य के मामलों कार्यवाही कर सकते हैं और इस बात पर भी जोर दिया कि हिंदी को राज्य समर्थन के साथ आगे विकसित किया जाएगा। इस तरह हिंदी कड़े विरोध के बाद देश की सिर्फ राजभाषा बनकर ही रह गई, राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई। 1965 में जब हिंदी को सभी जगहों पर आवश्यक बना दिया गया तो तमिलनाडु में हिंसक आंदोलन हुए। जिसके बाद कांग्रेस (Congress) ने तय किया कि संविधान के लागू हो जाने के 15 साल बाद भी अगर हिंदी को हर जगह लागू किए जाने पर अगर भारत के सारे राज्य राजी नहीं हैं तो हिंदी को भारत की एकमात्र राष्ट्रभाषा नहीं बनाया जा सकता है। एक लम्बी ऐतिहासिक प्रक्रिया से गुजरने के बाद भी हिंदी को राष्ट्रभाषा का पद प्राप्त न हो सका। इस देश के 20 राज्य ऐसे हैं जिनमें हिंदी भाषी बहुत कम हैं, ऐसे में हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं हो सकती। हालाँकि वर्तमान सरकार ने भी इस दिशा में बहुत सी आशाएं जगाई है। 2017 में, हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की एक भाषा के रूप में स्थापित करने के लिए एक ठोस प्रयास भी किये गये थे। उपराष्ट्रपति (Vice-president) वेंकैया नायडू (Venkaiah Naidu) ने तो सार्वजनिक रूप से हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का समर्थन भी कर दिया है। श्री नायडू समय-समय पर भारत में हिन्दी के महत्व को भी प्रतिपादित करते रहते हैं।
राजभाषा शासन तंत्र, प्रशासनिक नीतियों तथा प्रयोजनों की भाषा मानी जाती है। किन्तु किसी देश की किसी भाषा को राष्ट्रभाषा का सम्मान व समर्थन तो जनमानस के व्यवहार के बिना मिलना सम्भव नहीं होता। सभ्य समाज में या राष्ट्रीय विचारों के आदान-प्रदान के लिए एक ऐसी सम्पर्क भाषा का होना नितान्त आवश्यक है जो सम्पूर्ण राष्ट्र और समाज को एक सूत्र में बांधकर रख सके। हिन्दी ने राष्ट्रभाषा और राजभाषा के दोनों रूपों में अपना दायित्व अत्यंत सहजता से निभाया है। हिन्दी भाषा शिक्षा, कला-संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान एवं समस्त कार्य व्यापार का भी सहजता से निर्वहन करती है। आज हिन्दी भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा बन चुकी है। चीनी के बाद हिंदी दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। 500 मिलियन से अधिक लोग हिंदी का उपयोग करते हैं। इंडो-आर्यन (Indo-Aryan) भाषाई वर्गीकरण प्रणाली के सिद्धांत के अनुसार, हिंदी भाषाओं के मध्य से उभरी है। 1991 की जनगणना के अनुसार, हिंदी को देश भर में एक "राष्ट्रभाषा" के रूप में भारतीय आबादी के 77% से अधिक लोगों द्वारा स्वीकार किया गया था। इसके अलावा भारतीय आबादी के कारण हिंदी दुनिया में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। भारत की 1991 की जनगणना के अनुसार, हिंदी लगभग 337 मिलियन भारतीयों की मातृभाषा है। परन्तु एसआईएल इंटरनेशनल के एथनोलॉग (SIL International Ethnologue) के अनुसार, भारत में लगभग 180 मिलियन लोग हिंदी को अपनी मातृभाषा के रूप में मानते हैं, और 300 मिलियन सहायक भाषा के रूप में इसका उपयोग करते हैं। भारत के बाहर, नेपाल (Nepal) में हिंदी बोलने वालों की संख्या 8 मिलियन (80 लाख), दक्षिण अफ्रीका (South Africa) में 890000, मॉरीशस (Mauritius) में 685,000, अमेरिका (US) में 317,000 है, जबकि यूके (UK), यूएई (UAE), कनाडा (Canada) और ऑस्ट्रेलिया (Australia) में भी हिंदी बोलने वालों और द्विभाषी या त्रिभाषी वक्ताओं की उल्लेखनीय आबादी है, जो अंग्रेजी से हिंदी के बीच अनुवाद और व्याख्या करते हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/2KKWB9E
https://bit.ly/39h41uL
https://bit.ly/2Yc6Bft
चित्र संदर्भ:
मुख्य तस्वीर गणतंत्र दिवस की कामना करती है। (pixy.org)
दूसरी तस्वीर एक समकालीन भारतीय पासपोर्ट दिखाती है, जिसमें हिंदी और अंग्रेजी की दो आधिकारिक भाषाएं हैं। (विकिमीडिया)
तीसरी तस्वीर में हिंदी में भारत के संविधान की प्रस्तावना दिखाई गई है। (विकिमीडिया)
अंतिम चित्र में भारत का भाषा क्षेत्र मानचित्र दिखाया गया है। (विकिमीडिया)