कोरोना महामारी के दौर में जहां, दुनिया भर के नीति व्यवस्थापकों ने एक आपातकालीन आर्थिक-स्थिरीकरण पैकेज (Package) की शर्तों पर मोल-भाव किया, वहीं डेनमार्क (Denmark) ने इस अभूतपूर्व चुनौती का सामना करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। डेनमार्क की सरकार ने महामारी के प्रभाव से प्रभावित निजी कंपनियों से कहा कि, सरकार कर्मचारियों की बड़े पैमाने पर छंटनी या निलंबन से बचने के लिए उन्हें उनके वेतन का 75 प्रतिशत हिस्सा भुगतान करेगी। इस योजना के लिए वहां की सरकार को तीन महीनों में राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का 13 प्रतिशत खर्च करना होगा। इस योजना के पीछे सरकार का दृष्टिकोण यह है कि, कंपनियां (Companies) श्रमिकों के साथ अपने संबंधों को बनाए रखें। यदि कंपनियां उन्हें हटा देती हैं, तो उन्हें वापस काम पर रखने में लगने वाला समय अधिक चुनौतिपूर्ण हो सकता है। यह योजना तीन महीने तक चली, जिसके बाद यह उम्मीद की गयी कि, चीजें वापस सामान्य हो जाएंगी। इस तरह से अर्थव्यवस्था को पूर्ण रूप से स्थिर कर दिया गया, ताकि इसका नुकसान बाद में न झेलना पड़े। डेनमार्क का यह विचार विश्व को महामंदी से बचने में मदद कर सकता है। लेकिन इसके लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि, यदि स्थिति वापस सामान्य नहीं होती है, तो एक बड़ा आर्थिक संकट उत्पन्न हो सकता है। भारत में इस प्रकार का कदम उठाया जाना प्रभावी हो सकता है, लेकिन इसकी आवश्यकता बहुत अधिक नहीं है, क्यों कि, यहां अनौपचारिक क्षेत्रों में कार्य करने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक है। भारत का अनौपचारिक क्षेत्र यहां की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में सहायक हो सकता है। जहां अर्थशास्त्रियों ने कोरोना विषाणु के प्रकोप के कारण भारत की आर्थिक वृद्धि में लगभग 1% की गिरावट का अनुमान लगाया, वहीं यह भी माना कि देश का बड़ा अनौपचारिक क्षेत्र उसकी अर्थव्यवस्था को बनाए रखने में मदद करेगा। भारत अपने विनिर्माण क्षेत्र हेतु कच्चे माल के लिए चीन पर निर्भरता के बावजूद इस स्थिति का सामना करने में सक्षम है।
जबकि बड़ी कंपनियां सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के प्रति अधिक संवेदनशील हैं, वहीं अनौपचारिक क्षेत्र के उच्च प्रभुत्व के कारण, अन्य देशों की तुलना में भारत की स्थिति बेहतर होगी। हालांकि, असंगठित क्षेत्र राष्ट्रीय आय में अधिक योगदान नहीं दे सकता, लेकिन रोजगार सृजन में इसका महत्व कुछ और समय तक जारी रहने की संभावना है। रोजगार की समस्या देश की प्रमुख समस्याओं में से एक है, तथा उद्योग विश्लेषकों द्वारा यह सुझाव दिया गया है कि, असंगठित क्षेत्र इस संकट से निकलने का एकमात्र उपाय हो सकता है। भारतीय बाजार में अनौपचारिक क्षेत्र की हिस्सेदारी 50% से अधिक है, इसलिए कोरोना महामारी के कारण लगाए गये प्रतिबंध इस बाजार को अत्यधिक प्रभावित नहीं करेंगे। कोरोना महामारी के कारण लगे प्रतिबंधों के प्रभाव का सामना करने के लिए भारत के विभिन्न राज्यों में भी कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने महामारी के प्रसार की अवधि के दौरान यह घोषणा की कि, श्रमिकों को दैनिक मजदूरी का भुगतान सुनिश्चित किया जायेगा। इसके लिए कृषि और श्रम मंत्रियों ने मिलकर वित्त मंत्री के अधीन एक समिति का गठन किया, जो दैनिक वेतन भोगी मजदूरों को उनके भरण-पोषण के लिए भुगतान करेगी। इससे उन्हें काम करने और संक्रमण का जोखिम लेने के लिए घर से बाहर नहीं जाना पड़ेगा। आरटीजीएस (Real-time gross settlement) के माध्यम से जीविका का पैसा सीधे उनके खातों में स्थानांतरित किया जाएगा। उत्तर प्रदेश न्यूनतम मजदूरी अधिसूचना, अक्टूबर 2019 के अनुसार, अकुशल, अर्ध-कुशल और कुशल श्रमिकों के लिए प्रतिदिन की न्यूनतम मजदूरी क्रमशः 318.42 रुपये, 350.26 रुपये और 392.35 रुपये है।
राज्य संक्रमित लोगों को मुफ्त परीक्षण और उपचार की सुविधा भी प्रदान करेगा तथा बीमारी और पुनः स्वस्थ होने की अवधि के दौरान किसी भी प्रकार की वेतन कटौती नहीं की जायेगी।
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