मिठाई किसी भी समारोह, पूजा-पाठ, शादी के अवसरों में एक अहम भूमिका निभाती है, कोई भी उत्सव बिना मिठाई के तो पूरा हो ही नहीं सकता है। ऐसे ही रामपुर की मिठाई की दुकानों, त्योहारों और मेलों आदि में पाई जाने वाली स्वादिष्ट मिठाई खाजा की उत्पत्ति अवध राज्य के पूर्वी हिस्सों और आगरा और अवध के पूर्व संयुक्त प्रांत से हुई थी। यह क्षेत्र वर्तमान में उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों और बिहार के पश्चिमी जिलों से मेल खाता है और ओडिशा राज्य की यह मूल मिठाई है। बिहार की सिलाव खाजा पूरे भारत भर में प्रसिद्ध है जो पेटीज़ (Patties) की तरह दिखती है किन्तु स्वाद में मीठी होती है। सिलाव खाजा को अपने स्वाद, कुरकुरेपन, और बहुपरतों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। किवदंतियों के अनुसार जब भगवान गौतम बुद्ध अपने अनुयायियों के साथ इस क्षेत्र से गुज़र रहे थे तो उन्होंने इस मिठाई का सेवन किया था। भक्तों की मानें तो इसका नाम भगवान बुद्ध ने ही खाजा रखा।
खाजा को मुख्य रूप से गेंहू के आटे या मैदे और मावे से बनाया जाता है, इसमें ड्राइ फ्रूइट्स (Dry fruits) या अन्य स्टफिंग (Stuffing) के साथ तेल में तला जाता है, फिर चीनी की चाशनी में डुबाया जाता है। यह ओडिशा की बहुत प्रसिद्ध मिठाइयों में से एक है और यह सभी ओडिया लोगों की भावनाओं से संबंधित है। इसे जगन्नाथ मंदिर, पुरी में प्रसाद के रूप में भी परोसा जाता है। बिहार के सिलाओ और राजगीर का खाजा लगभग पूरी तरह से बाकलावा के समान है। बाकलावा एक तुर्क की मिठाई है जिसे पेस्ट्री की परतों के अंदर कटे हुआ नट (Nuts – बादाम आदि) की स्टफिंग करके बनाया जाता है और चाशनी या शहद की मदद से मीठा किया जाता है। यह दक्षिण काकेशस (South Caucasus), बाल्कन (Balkans) और मध्य एशिया (Central Asia) के साथ-साथ ईरानी (Iranian), तुर्की (Turkish) और अरब (Arab) व्यंजनों, और लेवंत और माघरेब के अन्य देशों की एक आम मिठाई है।
भारत में ज्यादातर लोगों को पहली बार बाकलावा खाने का मौका तब मिला था जब एक व्यक्ति तुर्की से छुट्टी से लोटा था और अपने साथ बाकलावा लेकर आया था। उसके बाद से लोगों द्वारा उत्सव के दौरान या उपहार के रूप में इसे भेंट करने लग गए। धीरे धीरे यह शादी के निमंत्रण के साथ, मिठाई की मेज पर और दुकानों में अलमारियों पर दिखाई देने लगा। कोरोनावायरस (Coronavirus) तालाबंदी के दौरान, मुस्लिम उपवास का महीना रमजान भी शुरू हो गया था, इस बीच पेस्ट्री की दुकानों को भी छूट मिली क्योंकि तुर्की के लोग बिना बाकलावा मिठाई के रमजान में नहीं रह पाए।
वहीं सिलाव का खाजा अपने स्वाद, कुरकुरापन और बहुस्तरीय उपस्थिति के लिए जाना जाता है जिसका श्रेय स्थानीय जल और सिलाओ की जलवायु को जाता है। यहाँ की खाजा मिठाई को दिसम्बर 2018 में भौगोलिक संकेतक रजिस्ट्री द्वारा भौगोलिक संकेत टैग (जिसे जी. आई (G.I.) टैग(Tag)) कहा जाता है दिया। भौगोलिक संकेत मुख्य रूप से किसी विशिष्ट उत्पाद को दिया जाता है जो किसी भौगोलिक क्षेत्र में कई वर्षों से बन रहा हो। सिलाव में 60 से भी अधिक दुकानें सिलाव खाजा को कई वर्षों से बना रही हैं। इस मिठाई को बनाने के लिए गेंहू का आटा या मैदा, चीनी, इलायची, घी आदि का उपयोग किया जाता है। सिलाव खाजा की प्रत्येक 28 ग्राम में 158 कैलोरी, 11 ग्राम वसा, 13 ग्राम कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate), 2 ग्राम प्रोटीन (Protein) आदि पोषक तत्व मौजूद होते हैं। आम तौर पर, 12 से 15 दिनों के भीतर सिलाव खाजा खराब नहीं होता है। जबकि बारिश के मौसम में यह मिठाई जल्दी खराब हो सकती है।
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