क्रिसमस (Christmas) के बाद लोगों को नए साल का इंतजार रहता है। नया साल यानी 1 जनवरी वर्ष 2021 का पहला दिन है। हर साल, दुनिया भर में लोग नए साल का दिन बहुत उत्साह से मनाते हैं। नया साल नई शुरूआत का प्रतीक माना जाता है, आप 2021 की शुरूआत स्वयं के लिये लक्ष्य निर्धारित करके, आत्म-बेहतरी के लिये संकल्प करके, समाज के लिये कुछ अच्छा करके या जरूरतमंद की सहायता करके मना सकते हैं।
हालांकि इस बार का नया साल कोविड-19 (COVID-19) की वजह से उतने उत्साह से नहीं मनाया जायेगा परन्तु नियमों का पालन और सामाजिक दूरी को बनाये रखते हुए आप अपने परिवार के साथ इसे मना ही सकते हैं। वर्तमान में पूरी दुनिया के लोग नए साल का स्वागत करने को तैयार हैं। ऐसे में एक सवाल आप सबके मन में भी आता होगा कि आखिर नया साल 1 जनवरी को ही क्यों मनाया जाता है? तो आइये जानते हैं कि आखिर क्यों 1 जनवरी को ही मनाया जाता है नया साल?
दुनिया भर की सभ्यताएं कम से कम चार सहस्राब्दियों से नए साल की शुरुआत का जश्न मनाती आ रही हैं। अधिकांश देशों में नए साल का उत्सव ग्रेगोरियन कैलेंडर (Gregorian calendar) के अंतिम दिन 31 दिसंबर की शाम से शुरू होता है और 1 जनवरी तक जारी रहता है। लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था, और अभी भी दुनिया के सारे देशों में 1 जनवरी से नए साल की शुरुआत नहीं मानी जाती है। नव वर्ष उत्सव 4,000 वर्ष पहले से बेबीलोन (Babylon-बेबीलोन प्राचीन मेसोपोटामिया (Mesopotamia) का एक नगर था। यह बेबीलोनिया साम्राज्य का केन्द्र था।) में मनाया जाता था। लेकिन उस समय नए वर्ष का ये त्यौहार मार्च के अंत में मनाया जाता था जो कि वसंत के आगमन की तिथि भी मानी जाती थी। वे इस अवसर पर एक बड़े पैमाने पर एक धार्मिक उत्सव का आयोजन करते थे, जिसे अकितू (Akitu) कहा जाता था (यह शब्द जौ (barley) के लिए उपयोग किये जाने वाले सुमेरियन (Sumerian) शब्द से लिया गया था, जिसे वसंत में काटा जाता था) जिसमें वसंत के पहले दिन को ग्यारहवें दिन के त्योहार के रूप में मनाया जाता था। इस समय के दौरान, कई संस्कृतियों ने साल के "पहले" दिन को तय करने के लिए सूर्य और चंद्रमा चक्र का उपयोग किया। नए साल के अलावा, अतीकू में बेबीलोन के आकाश के देवता मरदुक (Marduk) की बुराई की देवी तियामत (Tiamat) पर पौराणिक जीत का जश्न भी मनाया जाता था और ये समय नये राजाओं की ताजपोशी के लिये भी उत्तम माना जाता था।
1 जनवरी से नया साल मनाने की शुरुआत पहली बार 45 ईसा पूर्व रोमन राजा जूलियस सीजर ने की थी। उस रोमन साम्राज्य में कैलेंडर का चलन रहा था। प्रारंभिक रोमन कैलेंडर में 10 महीने और 304 दिन शामिल थे। आठवीं शताब्दी ई.पू. एक राजा, नुमा पोमपिलियस (Numa Pompilius) को जनूअरियस और फियोरूरी (Januarius and Februarius) के महीनों को कैलेंडर में जोड़ने का श्रेय दिया जाता है। कहते हैं कि नूमा ने मार्च की जगह जनवरी को साल का पहला महीना माना। ऐसा माना जाता है कि जनवरी महीने का नाम रोमन के देवता 'जानूस' (Janus) के नाम पर रखा गया था। जानूस रोमन साम्राज्य में शुरुआत का देवता माना जाता था जिसके दो मुंह हुआ करते थे। आगे वाले मुंह को आगे की शुरुआत और पीछे वाले मुंह को पीछे का अंत माना जाता था। इसलिए देवता जानूस के नाम पर जनवरी को साल का पहला दिन माना गया और 1 जनवरी को साल की शुरुआत मानी गई। इसलिए 1 जनवरी को नए साल का जश्न मनाया जाता है। इसके अलावा और भी कई कारण हैं जिनकी वजह से 1 जनवरी को नए साल का जश्न मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि रोम के बादशाह जूलियस सीजर (Julius Caesar) ने 45 ईसा पूर्व जुलियन कैलंडर बनवाया था और तब से लेकर आज तक दुनिया के ज्यादातर देशों में 1 जनवरी को ही साल का पहला दिन माना जाता है। 46 ई.पू. सम्राट जूलियस सीजर ने अपने समय के सबसे प्रमुख खगोलविदों और गणितज्ञों के साथ परामर्श करके समस्या को हल करने का निर्णय लिया, क्योंकि सातवीं शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास पारंपरिक रोमन कैलेंडर में चंद्र चक्र का पालन किया जाता था और इसमें सुधार की सख्त आवश्यकता थी। उन्होनें नई गणनाओं के आधार पर एक नया कैलेंडर जारी किया, इस कैलेंडर में 12 महीने थे, जो कि आधुनिक ग्रेगोरियन कैलेंडर (Gregorian calendar) जैसा दिखता था जो आज दुनिया भर के अधिकांश देश उपयोग हो रहे हैं। जूलियस सीजर ने खगोलविदों के साथ गणना कर पाया कि पृथ्वी को सूर्य के चक्कर लगाने में 365 दिन और छह घंटे लगते हैं, इसलिए सीजर ने रोमन कैलेंडर को 310 से बढ़ाकर 365 दिन का कर दिया। इसके बाद रोमन साम्राज्य जहां तक फैला हुआ था वहां नया साल एक जनवरी से माना जाने लगा। इस कैलेंडर का नाम जूलियन कैलेंडर था।
परंतु रोम के पतन और ईसाई धर्म के यूरोप में फैलने के बाद लगभग 567 ईस्वी में, नए साल के जश्न को गैर-ईसाई के रूप में देखा जाने लगा। ईसाई धर्म के लोग 25 मार्च या 25 दिसंबर से अपना नया साल मनाना चाहते थे। कुछ देशों ने अपना नया साल 25 मार्च को शुरू किया (इस ईसा मसीह की मां मैरी (Mary) को संदेश दिया था कि उन्हें ईश्वर के अवतार ईसा मसीह को जन्म देना है), जिस दिन मैरी के सम्मान की दावत थी। अन्य देशों ने क्रिसमस दिवस, 25 दिसंबर (ईसा मसीह का जन्म हुआ था) को नये साल के रूप में मनाया। लेकिन जूलियन कैलेंडर में की गई समय की गणना में थोड़ी खामी थी, इसमें लीप ईयर (Leap year) की त्रुटि के कारण, ईस्टर (Easter) की तारीख पीछे हट गई। ऐसे में 16वीं सदी आते-आते समय लगभग 10 दिन पीछे हो चुका था। समय को फिर से नियत समय पर लाने के लिए रोमन चर्च के पोप ग्रेगरी XIII (Pope Gregory XIII) ने 1582 में इस पर काम किया। ग्रेगरी ने एक नया कैलेंडर तैयार किया जो इसे संरेखित रखने के लिए हर चार साल में एक लिप दिवस का उपयोग करता था। उन्होंने 1 जनवरी को साल के पहले दिन के रूप में बहाल किया। इसे हम आज ग्रेगोरियन कैलेंडर के नाम से जानते है। इस कैलेंडर में नए साल की शुरुआत 1 जनवरी से होती है। इसलिए नया साल 1 जनवरी से मनाया जाने लगा है।
अधिकांश कैथोलिक देशों (Catholic countries) ने ग्रेगोरियन कैलेंडर को जल्दी से अपनाया, लेकिन प्रोटेस्टेंट (Protestant) और पूर्वी अनुष्ठान देशों को थोड़ा संकोच था। प्रोटेस्टेंटों ने शिकायत की कि ये कैलेंडर “एंटीक्रिस्ट” (Antichrist) है और उन्हें गलत दिनों में पूजा करवाने की कोशिश कर रहा था। परन्तु धीरे धीरे उन्होनें भी इस कैलेंडर को स्वीकार किया। इस प्रकार अधिकांश देशों ने आधिकारिक तौर पर नए साल के दिन के रूप में 1 जनवरी को अपनाया। हालाँकि ये जरुरी नहीं है कि दुनिया के सभी देशों में 1 जनवरी को ही नया साल मनाया जाता हो, थाइलैंड में नए साल के त्यौहार को "सोन्गक्रान' (Songkran) कहते हैं। उनका नए साल का यह त्योहार 13 से 14 अप्रैल को आता है। लेसोथो और दक्षिण अफ्रीका (Lesotho and South Africa) के सोथो लोग (Sotho people ) दक्षिण गोलार्ध की सर्दियों के अंत के दौरान 1 अगस्त को सेलमो सा बसोथो (Sellemo sa Basotho) को नये साल के रूप में मनाते हैं। चीन (China) सहित पूर्वी एशिया के आसपास के कुछ देशों में चीनी नववर्ष मनाया जाता है जोकि आम तौर पर 20 जनवरी और 20 फरवरी के बीच आता है। वहीं भारत में चैत्र शुक्ल के गुडी पड़वा (Gudi Padwa) के दिन नए साल का जश्न मनाने का रिवाज है, चैत्र मास मूल रूप से हिंदू कैलेंडर का पहला महीना है, यह आमतौर पर 23-24 मार्च के आसपास आता है। परंतु ब्रिटिश राज के बाद भारत में भी ग्रेगोरियन कैलेंडर का अनुसरण होने लगा, तब से भारत में भी 1 जनवरी को नए साल के रूप में मनाया जाना लगा।
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