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आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च।
हिरण्ययेन सविता रथेना देवा याति भुवनानि पश्यन्।।
सबके प्रेरक सूर्यदेव स्वर्णिम रथ में विराजमान होकर अंधकारपूर्ण अंतरिक्ष-पथ में विचरण करते हुए देवों और मानवों को उनके कार्यों में लगाते हुए लोकों को देखते हुए आगे चल रहे हैं।
नमः सूर्याय शान्ताय सर्वरोग निवारिणे
आयु ररोग्य मैस्वैर्यं देहि देवः जगत्पते ||
हिन्दू धर्म में सूर्य को सूर्य देवता के रूप में पूजा जाता है। प्राचीन भारतीय साहित्य में सूर्य को आदित्य, अर्क, भानु, सवितर, पूषन, रवि, मार्तण्ड, मित्र, भास्कर और विवस्वान नाम से पुकारा जाता था। सूर्य देव को विशेषकर राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, झारखंड और ओडिशा में पूजा जाता है। सूर्य की प्रतिमा को अक्सर रथ पर सवार दिखाया जाता है, जिसमें सात घोड़े होते हैं यह सात घोड़े प्रकाश के सात रंग या सप्ताह के सात दिनों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
मध्ययुगीन हिंदू धर्म में, सूर्य भी प्रमुख हिंदू भगवान शिव, ब्रह्मा और विष्णु के लिए एक प्रतीक थे। कुछ प्राचीन ग्रंथों और कलाओं में, सूर्य को इंद्र, गणेश या अन्य के साथ समकालिक रूप से प्रस्तुत किया गया है। बौद्ध धर्म और जैन धर्म के कला-साहित्य में सूर्य को एक देवता के रूप में प्रस्तुत किया गया है। सूर्य देव के पास एक चक्र को दर्शाया जाता है जिसे धर्मचक्र माना जाता है। सूर्य, हिंदू ज्योतिष की राशि प्रणाली में बारह नक्षत्रों में से एक, सिंह (सिंह) के स्वामी हैं। हिंदू धर्म में सूर्य देवता को भगवान श्रीकृष्ण के विराट पुरुष या विश्वरूप (विश्वव्यापी रूप) की आंख माना जाता है। सूर्य की पूजा आम जन, संत के अतिरिक्त असुर या राक्षस भी करते हैं।
सूर्य देवता को सौर संप्रदाय के अनुयायियों में सर्वोच्च माना जाता है, यह संप्रदाय अब बहुत छोटा हो गया है और लगभग विलुप्त हो गया है। सौर, भगवान के पांच प्रमुख रूपों में से एक के रूप में सूर्य की पूजा करते हैं। संपूर्ण भारत में कई मंदिर सूर्य भगवान को समर्पित हैं। सूर्य का पहला सामान्य रूप अर्क है। अर्क के रूप में सूर्य की पूजा ज्यादातर उत्तर और पूर्वी भारत में की जाती है। उड़ीसा में बहुत ही भव्य और विस्तृत कोणार्क मंदिर, उत्तर प्रदेश में उत्कर्ष और लोलार्क, राजस्थान में बलकार मंदिर और गुजरात के मोढ़ेरा में सूर्य मंदिर, सभी अर्क के रूप में समर्पित हैं। 10 वीं शताब्दी में उत्तर प्रदेश में बना बलकार सूर्य मंदिर, 14 वीं शताब्दी में तुर्की के आक्रमण के दौरान नष्ट हो गया था। सूर्य का दूसरा सबसे सामान्य रूप, मित्र है जो मुख्यत: गुजरात में प्रसिद्ध है।
विभिन्न धर्म ग्रंथों में सूर्य देव का उल्लेख:
ऋग्वेद में उगते सूर्य को विशिष्ट स्थान दिया गया है। ऋग्वेद के कुछ श्लोकों में सूर्य को अंधेरे को हरने वाला और जीवन में ज्ञान और अच्छाई का विस्तार करने वाला बताया गया है। कुछ श्लोकों में इन्हें एक निर्जीव वस्तु, आकाश में एक पत्थर या मणि के रूप में बताया गया है, जबकि अन्य में यह एक मानवीय स्वरूप देवता को संदर्भित करते हैं।
महाभारत महाकाव्य के पहले अध्याय की शुरूआत सूर्य से ही हुयी है, जिसमें इन्हें ब्रह्मांड की आंख, सभी अस्तित्व की आत्मा, सभी जीवन की उत्पत्ति के कारक, सांख्य और योगियों का लक्ष्य और स्वतंत्रता और आध्यात्मिक मुक्ति के लिए प्रतीकवाद बताया गया है। महाभारत में कर्ण सूर्य और अविवाहित राजकुमारी कुंती के पुत्र हैं। महाकाव्य में कुंती को एक अविवाहित माँ के रूप में वर्णित किया गया है, वह कर्ण का परित्याग कर देती हैं, जिसका उन्हें आजीवन दुःख रहता है। शिशु कर्ण को एक सारथी द्वारा अपनाया जाता है, वह बड़ा होकर एक महान योद्धा बनता है और कुरुक्षेत्र के मुख्य पात्रों में से एक है बनता है और अपने भाइयों (पाण्डवों) से युद्ध लड़ता है।
रामायण में सूर्य को राजा सुग्रीव का पिता कहा गया है। सुग्रीव ने भगवान श्री राम की रावण को हराने में मदद की थी। इन्होंने वानर सेना या बंदरों की सेना का नेतृत्व करने के लिए हनुमान को प्रशिक्षण दिया था। दिलचस्प बात यह है कि भगवान राम स्वयं सूर्य के वंशज थे।
सूर्य को बौद्ध कलाकृति में एक देवता के रूप में माना जाता है, अशोक द्वारा बनवायी गयी प्राचीन कलाकृतियां इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। बोधगया के महाबोधि मंदिर में भी इनकी प्रतीमा है जिसमें इन्हें चार घोड़ों के रथ में उषा और प्रत्यूषा के साथ सवार दिखाया गया है। इस तरह की कलाकृति बताती हैं कि बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए प्रतीक के रूप में सूर्य एक पूर्व भारतीय परंपरा से बौद्ध धर्म में अपनाई गई अवधारणा है।
सूर्य दक्षिण अमेरिका (South America), यूरोप (Europe), अफ्रीका (Africa) और एशिया (Asia) में पाए जाने वाले प्राचीन और मध्यकालीन संस्कृतियों में एक सामान्य देवता हैं। सूर्य की विशेषताएं और पौराणिक कथाएं इस्लाम-पूर्व फारस के ह्वारे-क्षेता (Hvare-khshaeta) और ग्रीक-रोमन (Greek-Roman) संस्कृति में हेलिओस-सोल (Helios-Sol) देवता के समान हैं। सूर्य एक वैदिक देवता हैं, एल्गूड (Elgood) कहते हैं, लेकिन कुषाण युग के दौरान प्राचीन फारस और भारत के बीच संपर्कों से इनकी दैव्य स्थिति मजबूत हुई, साथ ही 8 वीं शताब्दी के बाद जब सूर्य-पूजा पारसी भारत में भी चली गयी। एलगूड के अनुसार, मध्य प्रथम सहस्राब्दी के आसपास, बाद में कुषाण युग में कुछ ग्रीक विशेषताओं को सूर्य प्रतिमा विज्ञान में शामिल किया गया था।
भारत में सूर्य को समर्पित प्रमुख त्यौहारों और तीर्थयात्राओं में मकर संक्रांति, पोंगल, सांबा दशमी, रथ सप्तमी, छठ पूजा और कुंभ मेला शामिल हैं।
संक्रांति का अर्थ है सूर्य का एक राशी से दूसरी में स्थानांतरण। एक वर्ष में 12 संक्रांति होती हैं। प्रत्येक संक्रांति आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल, ओडिशा, पंजाब, गुजरात द्वारा अनुगमन किए जाने वाले सौर कैलेंडर (Calendar) में महीने की शुरुआत के रूप में चिह्नित है। दूसरी ओर, नक्षत्र सौर बंगाली कैलेंडर और असमी कैलेंडर में, एक संक्रांति प्रत्येक महीने के अंतिम दिन और महीने के प्रथम दिन के रूप में चिन्हित की जाती है।
मकर संक्रांति: मकर संक्रांति में सूर्य शीत ऋतु के पौस मास में उत्तरायण से होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। पारंपरिक भारतीय कैलेंडर चंद्र स्थितियों पर आधारित होता है, संक्रांति एक सौर घटना है। मकर संक्रांति की तिथि दीर्घावधि, 14 जनवरी या कभी-कभी 15 जनवरी होती है, क्योंकि मकर राशि में सूर्य का उदय होता है।
मेष संक्रांति: इस दिन, सूर्य नक्षत्र मेष राशी में प्रवेश करते हैं, यह आमतौर पर 14/15 अप्रैल को होता है। पारंपरिक हिंदू सौर कैलेंडर में इस दिन से नए साल की शुरुआत होती है। इस दिन क्षेत्रीय नए साल के त्योहार भी होते हैं: पंजाब क्षेत्र में बैसाखी, ओडिशा में पान संक्रांति और बंगाल क्षेत्र में मेष संक्रांति और इसके अगले दिन पोहेला बैसाखी मनाई जाती है।
धनु संक्रांति: इस दिन सूर्य धनु राशि में प्रवेश करते हैं। धनु संक्रांति से हिंदू सौर कैलेंडर का नौंवा महीना शुरू होता है। यह चंद्र पौष माह के पहले दिन मनाया जाता है। मकर संक्रांति के दिन धनुर मास समाप्त होता है। दक्षिणी भूटान और नेपाल में, यह जंगली आलू खाकर मनाया जाता है। धनु संक्रांति के दिन सूर्य देव की पूजा की जाती है, इस दिन लोग गंगा, यमुना, महानदी, गोदावरी, कृष्णा, तुंगभद्रा, और कावेरी जैसी पवित्र नदियों में संक्रांति स्नान या अनुष्ठान स्नान करना बहुत शुभ मानते हैं।
कर्क संक्रांति: इस दिन सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करते हैं। इस दिन सूर्य देव की दक्षिण यात्रा शुरू होती है, जिसे दक्षिणायन भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि छह महीने के चरण के दौरान देवता सो जाते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और भक्त आशीर्वाद के लिए उपवास रखते हैं। इस दिन देव सयानी एकादशी भी होती है। कहा जाता है कि इस दिन अन्न और वस्त्र का दान करना अत्यंत शुभकारी होता है।
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