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हमारी धरती पेड़-पौधों की विविधता से परिपूर्ण है, तथा इस विविधता में खजूर का पेड़ भी शामिल है। यह पेड़ जहां मुख्य रूप से अपने फल और अन्य भागों के लिए जाना जाता है, वहीं विभिन्न क्षेत्रों में सांस्कृतिक महत्व भी रखता है। यूं तो, इस पेड़ की खेती की सटीक उत्पत्ति अभी स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं हो पायी है, लेकिन यह निश्चित है कि, इसकी खेती 4000 ईसा पूर्व (BC) से की जा रही है। इस पेड़ की खेती की पुरातनता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि, दक्षिणी इराक (Iraq) – मेसोपोटामिया (Mesopotamia) में उर (Ur) के निकट चंद्रमा देवता के मंदिर के निर्माण में इस पेड़ का इस्तेमाल किया गया था। खजूर की प्राचीनता का अन्य प्रमाण मिस्र (Egypt's) की नाइल (Nile) घाटी में है, जहां इसका उपयोग मिस्र की हाइरोग्लाइफ़िक्स (Hieroglyphics) (- प्राचीन मिस्र के स्मारकों पर इस्तेमाल की गयी चित्रलेखन प्रणाली) में प्रतीक के रूप में किया गया था। हालाँकि, मिस्र से खजूर की संस्कृति के महत्वपूर्ण साक्ष्य प्राप्त होते हैं, लेकिन खजूर की खेती मिस्र से पहले ईराक (Iraq) में महत्वपूर्ण हो चुकी थी। इन सभी बातों की पुष्टि सुमेरियों (Sumerians), अकाडियनों (Akadians) और बेबीलोनियन (Babylonians) के प्राचीन ऐतिहासिक अवशेषों के पुरातात्विक शोधों से हुई है। इन प्राचीन लोगों ने अपने घरों की छतें खजूर के पेड़ के तनों और पत्तियों से निर्मित की थी। इस प्रकार खजूर का पेड़ दुनिया में शायद सबसे प्राचीन समय से उगाया जाने वाला पेड़ है। यहूदी (Jewish), ईसाई (Christian) और इस्लामी (Islamic) धर्मों में खजूर के फल को बहुत अधिक महत्व दिया जाता है। यहूदी धर्म में खजूर सात पवित्र फलों में से एक है, तथा यहां पाम संडे (Palm Sunday) भी आयोजित किया जाता है। पवित्र कुरान में भी खजूर के फल का उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि, खजूर पेड़ के पूर्वज उष्णकटिबंधीय अफ्रीका (Africa) से फीनिक्स रिकलिन्टा जैक (Phoenix Reclinata Jacq), या भारत से फीनिक्स सिल्वेस्ट्रिस (एल) रोक्स्ब (Phoenix sylvestris (L) Roxb) या इन दोनों प्रजातियों के संकर हैं।
खजूर रेगिस्तान में उगने वाली कुछ फसलों में से एक है, जिसे ‘जीवन का वृक्ष’ भी कहा गया है। ये पेड़ बहुत लंबे समय तक उगते हैं और लंबे समय तक फल भी उत्पादित करते हैं। इसके अलावा लंबी अवधि के सूखे और बेहद उच्च तापमान में भी ये पेड़ जीवित रह सकते हैं। मिस्र की एक पुरानी कहावत के अनुसार ‘खजूर एकमात्र ऐसी रचना है, जो मानव के समान दिखती है। अन्य पेड़ों के विपरीत, खजूर जितना पुराना होता जाता है, इसकी उत्पादकता उतनी अधिक बढ़ती जाती है। भारत दुनिया में खजूर के फलों का सबसे बड़ा आयातक है, जबकि ईरान (Iran) इसका सबसे बड़ा निर्यातक। भारत में, इसकी खेती 12493 हेक्टेयर (Hectare) में की जाती है और उत्पादन 85000 टन (Ton) से भी अधिक होता है। खजूर की विभिन्न प्रजातियां हैं, जिनमें से फीनिक्स सिल्वेस्ट्रिस (Phoenix sylvestris) प्रजाति भारतीय मूल की है। यह भारत के अलावा दक्षिणी पाकिस्तान (Pakistan), श्रीलंका (Sri Lanka), नेपाल (Nepal), भूटान (Bhutan), म्यांमार (Myanmar) और बांग्लादेश (Bangladesh) में भी मूल रूप से उगायी जाती है। समुद्र तल से 1300 मीटर (meter) की ऊँचाई तक मैदानी और झाड़ी वाले वनस्पति क्षेत्रों में यह प्रजाति आसानी से वृद्धि करती है। इस पेड़ की ऊंचाई 4 से 15 मीटर (meter), जबकि व्यास 40 सेंटीमीटर (centimeter) तक होता है। पत्तियां प्रायः 3 मीटर लंबी तथा संरचना में थोड़ी सी मुड़ी हुई होती हैं। पेड़ का पत्तियों से युक्त शीर्ष भाग, जिसे लिफ क्राउन (Leaf crown) कहा जाता है, 10 मीटर चौड़ा और 7.5-10 मीटर लंबा होता है। पुष्पक्रम सफेद उभयलिंगी फूलों के साथ लगभग 1 मीटर तक वृद्धि करता है। खजूर का फल बहुत ही पौष्टिक, आत्मसात और ऊर्जा देने वाला होता है। इनमें पोषक तत्वों की मात्रा भरपूर होती है, और इसलिए आहार संबंधी मूल्यों के कारण इसे लोगों द्वारा हमेशा उच्च श्रेणी में रखा जाता है। अन्य फलों और खाद्य पदार्थों की तुलना में खजूर प्रति किलोग्राम (kg) में 3,000 से अधिक कैलोरी (Calories) देते हैं। इसके अलावा, खजूर प्रति हेक्टेयर भोजन के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक हैं तथा विश्व स्तर पर इनका उत्पादन 30 लाख टन से अधिक होता है। खजूर के फल में 70% कार्बोहाइड्रेट्स (Carbohydrates) होता है, जो इसे मनुष्य को उपलब्ध सबसे पौष्टिक प्राकृतिक खाद्य पदार्थों में से एक बनाता है। खजूर के फल का उपयोग वाइन (Wine) और जेली (Jelly) बनाने के लिए भी किया जाता है।
खजूर की खेती के सफल होने के लिए बहुत ही विशिष्ट परिस्थितियों जैसे – शुष्क गर्मी, मध्यम सर्दी और फलों के पकने के लिए वर्षा से मुक्त अवधि, की आवश्यकता होती है। भारतीय रेगिस्तान इस आवश्यकता को पूरा करते हैं। खजूर के इन लाभकारी उपयोगों को देखते हुए तथा इसकी व्यापक रूप से खेती करने के लिए, केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (The Central Arid Zone Research Institute - CAZRI) जोधपुर में खजूर की कई पादप किस्में पेश की गयी। लेकिन, गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री की कमी, जुलाई-अगस्त के दौरान बारिश से फलों का खराब होना, पक्षियों द्वारा फलों की भारी क्षति और धूल भरी आंधी से फलों की गुणवत्ता में गिरावट आदि कारकों ने खजूर के बड़े पैमाने पर उत्पादन को बाधित किया। यदि खजूर को बड़े पैमाने पर उत्पादित करना है, तो इन समस्याओं को दूर करना आवश्यक है।