रामपुर की नक्षत्रशाला से खगोलीय घटनाओं का अवलोकन

रामपुर

 08-12-2020 10:07 AM
वास्तुकला 1 वाह्य भवन

प्‍लेनेरेट्रियम (Planetarium) या नक्षत्र भवन शब्द एक ऑप्टिकल (Optical) या डिजिटल प्रोजेक्शन इंस्ट्रूमेंट (Digital Projection Instrument) को संदर्भित करता है, जो एक गोलार्द्ध के गुंबद की आंतरिक सतह पर दिखाई देता है, जिस पर सितारों, ग्रहों, सूर्य, चंद्रमा एवं खगोलीय प्रभाव दिखाई देते हैं। यह शब्द एक कमरे या एक इमारत को भी संदर्भित करता है, जिसमें प्रोजेक्टर (Projector) को रखा जाता है। 1913 में, एक खगोलविद्, हाईडेलबर्ग ऑब्जर्वेटरी (Heidelberg Observatory) के मैक्स वुल्फ (Max Wolf) ने दौ िश (Deutsches) संग्रहालय के संस्थापक ओस्कर वॉन मिलर (Oskar Von Miller) के साथ चर्चा की, जिसमें उन्‍होंने एक ऐसे गोलाकार वक्रता के गुंबद की आकृति के उपकरण की संकल्‍पना की जिसके भीतर सूर्य, चंद्रमा और ग्रहों को गति करते हुए देखा जा सके। इस उपकरण में, एक अंधेरे गुंबद में छेद के माध्यम से प्रकाश आता है, जिसके समक्ष दर्शक बैठता है। मिलर (Miller) ने इस परियोजना को ज़ाइस वर्क्स (Zeiss Works) के लिए प्रस्तावित किया था, लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के कारण इसकी प्रारंभिक जांच बाधित हो गयी। युद्ध के बाद, वाल्थर बाउर्सफेल्ड (Walther Bauersfeld), ज़ाइस (Zeiss) के मुख्य अभियंता ने एक गोलार्द्ध के गुंबद से बने सफेद आंतरिक भाग का निर्माण करने और केंद्र में एक ऑप्टिकल प्रोजेक्टर (Optical Projector ) लगाने का प्रस्ताव दिया। जिसके माध्‍यम से तारे, सूर्य, चंद्रमा और ग्रह पृथ्वी से गति करते हुए देखे गए। 1920 की शुरुआत में, बॉर्सफेल्ड (Bauersfeld) ने डिजाइन (Design) के विस्‍तार और तकनीकी गणना का काम शुरू किया। अंतत: अगस्त 1923 में जर्मनी के जेना में कार्ल ज़ीस फैक्ट्री में साढ़े तीन साल के डिजाइन और निर्माण के बाद, पहला तारामंडल प्रोजेक्टर (Planetarium Projector), ज़ाइस मॉडल (Zeiss Model) का अनावरण किया गया। आज विश्‍व में विभिन्‍न नक्षत्रशालाएं हैं, जहां से लोग खगोलीय गतिविधियों को देख सकते हैं।
रामपुर में मौजूद आर्यभट्ट नक्षत्रशाला भी आम जनता को विभिन्‍न खगोलीय घटनाओं जैसे चन्‍द्रग्रहण, सूर्यग्रहण को निकटता से देखने के अवसर प्रदान करती है। जिसके लिए यहां विशेष प्रकार की दूरबीनें लगायी गयी हैं, जिससे आंखों को बिना कोई हानि पहुंचाए इन घटनाओं को देखा जा सकता है। यह नक्षत्रशाला भारत की पहली लेजर (Laser) नक्षत्रशाला है, जो कि डिजिटल लेजर तकनीक (Digital Laser Technology) पर आधारित है। इस नक्षत्रशाला का नाम पहले भीमराव अंबेडकर नक्षत्रशाला रखा गया था, जिसे बाद में बदलकर आर्यभट्ट नक्षत्रशाला कर दिया गया। नक्षत्रशाला के कंप्यूटर डेटाबेस (Computer Database) में घटनाओं के अनुक्रम के साथ दिनांक और समय जैसी अन्य सूचनाओं या जानकारियों को नासा (NASA) द्वारा ऑनलाइन (Online) अद्यतन किया जाता है। उन सूचनाओं से कंप्यूटर द्वारा भावी आकाशीय गतिविधियों के चित्र तैयार किए जाते हैं। जिसके बाद उन्‍हें लेजर प्रक्षेपक (Laser Projector) का उपयोग करने वाले गुंबद में प्रदर्शित किया जाता है। नक्षत्रशाला खगोल विज्ञान और रात के आकाश के बारे में शैक्षिक और मनोरंजक जानकारियों के कार्यक्रम या आकाशीय नेविगेशन (Navigation) में प्रशिक्षण के लिए उपयोगी है। यह नक्षत्रशाला 3-डी (3-D) अनुभव भी प्रदान करती है, जिसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा बनाया गया है। रामपुर की यह नक्षत्रशाला विज्ञान और तकनीक को लोकप्रिय बनाने में मदद करती है। इस नक्षत्रशाला में प्रत्‍येक दिन 3 कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। प्रत्‍येक कार्यक्रम की अवधि 50 मिनट होती है। इनके आयोजन का समय दोपहर 1.00 बजे, अपराह्न 3.00 बजे और शाम 5.00 बजे होता है। अतिरिक्त कार्यक्रम (10.30 बजे से 12.15 बजे के बीच) 10 / - रुपये प्रति व्यक्ति की दर से 100 या उससे अधिक के समूह के लिए आयोजित किया जा सकता है। गर्मियों की छुट्टियों में शाम 6 बजे एक अतिरिक्‍त कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। तीन वर्ष से अधिक उम्र के प्रतिव्यक्ति का 25 रूपय प्रवेश शुल्‍क लगता है। दिव्‍यांग व्‍यक्तियों के लिए कोई शुल्‍क नहीं है। 30 या अधिक व्यक्तियों के समूह के लिए रियायती टिकट प्रति व्यक्ति 10 रुपये है। प्रत्येक सोमवार को नक्षत्रशाला बंद रहती है।

संदर्भ:
https://bit.ly/2VKU2GB
https://bit.ly/3mSj7v7
https://en.wikipedia.org/wiki/Rampur,_Uttar_Pradesh
चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र में आर्य भट्ट तारामंडल दिखाया गया है। (फेसबुक)
दूसरी तस्वीर में आर्य भट्ट तारामंडल का निर्माण दिखाया गया है। (विकिमीडिया)


RECENT POST

  • मेहरगढ़: दक्षिण एशियाई सभ्यता और कृषि नवाचार का उद्गम स्थल
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:26 AM


  • बरोट घाटी: प्रकृति का एक ऐसा उपहार, जो आज भी अनछुआ है
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:27 AM


  • आइए जानें, रोडिन द्वारा बनाई गई संगमरमर की मूर्ति में छिपी ऑर्फ़ियस की दुखभरी प्रेम कहानी
    म्रिदभाण्ड से काँच व आभूषण

     19-11-2024 09:20 AM


  • ऐतिहासिक तौर पर, व्यापार का केंद्र रहा है, बलिया ज़िला
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:28 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर चलें, ऑक्सफ़र्ड और स्टैनफ़र्ड विश्वविद्यालयों के दौरे पर
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:27 AM


  • आइए जानें, विभिन्न पालतू और जंगली जानवर, कैसे शोक मनाते हैं
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:15 AM


  • जन्मसाखियाँ: गुरुनानक की जीवनी, शिक्षाओं और मूल्यवान संदेशों का निचोड़
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:22 AM


  • जानें क्यों, सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में संतुलन है महत्वपूर्ण
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, जूट के कचरे के उपयोग और फ़ायदों के बारे में
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:20 AM


  • कोर अभिवृद्धि सिद्धांत के अनुसार, मंगल ग्रह का निर्माण रहा है, काफ़ी विशिष्ट
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:27 AM






  • © - , graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id