भारत जैसे बड़े देश के लिए, देश के विभिन्न हिस्सों में आबादी के बदलाव के अध्ययन से समाज की गतिशीलता को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलती है। देश में आर्थिक विकास में इस स्थिति पर खासकर जब कई राज्य तेजी से आर्थिक विकास से गुजर रहे हैं, विशेष रूप से विनिर्माण, सूचना प्रौद्योगिकी या सेवा क्षेत्र जैसे क्षेत्रों में जनसंख्या का डेटा माइग्रेशन प्रोफाइल (Data Migration Profile) पहले से कई अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। जनसंख्या का अध्ययन कई महत्वपूर्ण पहलू, जैसे विभिन्न सामाजिक, आर्थिक या राजनीतिक कारणों से उत्पन्न होने वाले प्रवासन का अध्ययन है।
2011 की जनगणना, एनएसएसओ (National Sample Survey Office Survey (NSSO)) सर्वेक्षण और आर्थिक सर्वेक्षण बताते हैं कि कुल 650 लाख अंतर-राज्य प्रवासी हैं, और इनमें से 33% प्रवासी श्रमिक हैं। अनुमानों के अनुसार उनमें से 30% अस्थिर कार्यकर्ता हैं और अन्य 30% नियमित रूप से लेकिन अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं। अगर आप सड़क विक्रेताओं, एक और कमजोर समुदाय जिसका अनुमान कार्यकर्ता आंकड़ों द्वारा नहीं लगाया गया है, को जोड़ते हैं तो इसका मतलब यह होगा कि 120 से 180 लाख ऐसे हैं, जो अपने मूल स्थान के अलावा अन्य राज्यों में रहते हैं और अपनी आय खोने के जोखिम में हैं। जनसंख्या में हो रहे ऐसे बदलावों को जानने के लिए जनगणना अंतिम रूप से प्रवासन की जानकारी एकत्रित करती है, जो वर्तमान प्रवासन परिदृश्य को बेहतर ढंग से समझने में मदद करती है। भारत में, 2001 की जनगणना के अनुसार, लगभग 3070 लाख व्यक्ति जन्म स्थान के अनुसार प्रवासन के रूप में सूचित किए गए। उनमें से लगभग 2590 लाख (84.2%), एक गाँव या शहर से दूसरे गाँव या शहर में चले गए जबकि 420 लाख देश से बाहर चले गए। जनगणना 2001 के अनुसार भारत में अंतिम निवास और जन्म स्थान द्वारा प्रवासन के आंकड़ों को निम्नलिखित सारणी के माध्यम से समझा जा सकता है:
ऊपर दर्शाये गये आंकड़ों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि रोजगार, शिक्षा, आदि के लिए शहरी क्षेत्रों में अधिक अवसर ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में और छोटे कस्बों एवं शहरों से बड़े शहरी क्षेत्रों में प्रवासियों को आकर्षित करने वाला एक महत्वपूर्ण कारक रहा है। इसके अलावा विभिन्न कारकों की वजह से विपरीत दिशा में अर्थात शहरी से ग्रामीण क्षेत्रों में भी प्रवास होता है। पिछले दशक के दौरान देश में लगभग 980 लाख, कुल राज्यान्तरिक और अंतर्राज्यीय प्रवासियों में से 610 लाख ग्रामीण क्षेत्रों में और 360 लाख शहरी क्षेत्रों में गए हैं। वहीं लगभग 60 लाख प्रवासी शहरी क्षेत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों में गए।
वहीं हाल ही में हुए देशव्यापी लॉकडाउन (Lockdown) ने हमें यह बताया है कि हमारे देश में ही कितने अधिक संख्या में प्रवासी श्रमिक पलायन करते हैं। 2019 में किये गये एक अध्ययन के अनुसार भारत के बड़े शहरों में 29% आबादी दैनिक वेतन भोगियों की है। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि कुल अंतर्राज्यीय प्रवासियों के 25% और 14% की उत्पत्ति के लिए उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य उत्तरदायी हैं। इसके बाद 6% और 5% पर क्रमशः राजस्थान और मध्य प्रदेश का स्थान है। 2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण में जिले-वार प्रवासन आँकड़े बताते हैं कि देश के भीतर प्रवासियों का सबसे अधिक प्रवाह शहरी-जिलों में देखा जाता है, जिनमें गुरुग्राम, दिल्ली और मुंबई के साथ-साथ गौतम बौद्ध नगर (उत्तर प्रदेश), इंदौर, भोपाल (मध्य प्रदेश), बैंगलोर (कर्नाटक), तिरुवल्लुर, चेन्नई, कांचीपुरम, इरोड, कोयम्बटूर (तमिलनाडु) जैसे शहरी-जिलों में देखा जाता है।
प्रवासी श्रमिकों के सबसे अधिक बाहरी प्रवासन को दिखाने वाले जिले उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मुरादाबाद, रामपुर, कौशाम्बी, फैजाबाद और 33 अन्य जिले तथा उत्तराखंड में उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी गढ़वाल, पौड़ी गढ़वाल, पिथौरागढ़, बागेश्वर, अल्मोड़ा, चंपावत, राजस्थान में चूरू, झुंझुनू, पाली, बिहार में दरभंगा, गोपालगंज, सीवान, सारण, शेखपुरा, भोजपुर, बक्सर, जहानाबाद; झारखंड में धनबाद, लोहरदगा, गुमला; और रत्नागिरी, महाराष्ट्र में सिंधुदुर्ग शामिल हैं। आवास और शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय के तहत प्रवासन, 2017 के कार्यकारी समूह के विवरण के अनुसार, 17 जिले भारत के कुल पुरुष बाह्य-प्रवास के शीर्ष 25% के लिए जिम्मेदार हैं। इनमें से 10 जिले उत्तर प्रदेश में, 6 बिहार में और एक ओडिशा में है। बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे अपेक्षाकृत कम विकसित राज्यों में उच्च शुद्ध बाह्य-प्रवासन है।
प्रवासियों का सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता दिल्ली क्षेत्र था, जहां 2015-16 में आधे से अधिक प्रवास हुए। आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि शुद्ध आंतरिक प्रवासन महाराष्ट्र, गोवा और तमिलनाडु में प्रमुख रूप से देखा गया जबकि शुद्ध बाह्य प्रवासन प्रमुख रूप से झारखंड और मध्य प्रदेश में देखा गया। प्रवासन पर कार्यकर्ता समूह के विवरण से पता चलता है कि प्रवासी श्रमिकों की हिस्सेदारी महिलाओं के लिए निर्माण क्षेत्र में सबसे अधिक है (शहरी क्षेत्रों में 67%, ग्रामीण क्षेत्रों में 73%), जबकि सार्वजनिक सेवाओं (परिवहन, डाक, सार्वजनिक प्रशासन सेवाओं) और आधुनिक सेवाओं (वित्तीय मध्यस्थता, अचल संपत्ति, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि) में सबसे अधिक पुरुष प्रवासी श्रमिक कार्यरत हैं।
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