कोविड-19 के कारण जिस नाटकीय ढंग से अर्थव्यवस्था की गति धीमी पड़ी, उसका व्यापक असर न सिर्फ नौकरियों, आर्थिकी, सरकारों पर पड़ा है, बल्कि जमीनी और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र भी इससे प्रभावित है। जहां तक प्रश्न महासागर का है, उस पर कोविड-19 का सकारात्मक प्रभाव इस रूप में पड़ा है कि बहुत सारे क्षेत्रों का कामकाज बंद हो गया है, जो प्रदूषण, रिहाइशी व्यवस्था, आक्रमणकारी पक्षियों की घुसपैठ के कारक हुआ करते थे। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव भी घटा है। इन छोटे-मोटे प्रभाव से समुद्रों को भले ही राहत हो लेकिन सैकड़ों मिलियन लोगों की रोजी-रोटी कोविड-19 से बुरी तरह प्रभावित हुई है।
भूमंडलीय तापमान वृद्धि और महासागर:
महासागर पर भूमंडलीय तापमान वृद्धि के कई प्रभाव होते हैं। इससे जलस्तर, समुद्र तट, महासागर अम्लीकरण, प्रवाह, समुद्री तल, समुद्र की सतह का तापमान, ज्वार, मौसम तो प्रभावित होते ही हैं साथ ही इससे महासागर की बायोजियोकेमेस्ट्री (Biogeochemistry) में कई बदलाव हो जाते हैं। इन सब प्रभावों से पूरा समाज प्रभावित होता है। समुद्र के तटीय इलाकों में जलस्तर बढ़ने का असर वहां स्थित रिहायशी जगहों और रहने वालों पर पड़ता है।
जलवायु परिवर्तन और महासागर:
महासागरों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पड़ते हैं।
कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ने और ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन से महासागर पर प्रभाव पड़ता है।
इससे पानी के तापमान में बदलाव होता है, महासागर अम्लीकरण और डीऑक्सीडेशन (Deoxidation) होता है। इससे महासागर के बहाव में बदलाव, रासायनिक परिवर्तन, समुद्र तल का बढ़ना, तूफान की तीव्रता बढ़ना जैसे परिवर्तन होते हैं। समुद्री प्रजातियों की संख्या और विविधता भी प्रभावित होती है।
तटीय और समुद्री पारिस्थितिकीय तंत्र में गिरावट से स्थानीय समुदायों की शारीरिक, आर्थिक और खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है। वैश्विक व्यापार भी संकटग्रस्त हो जाता है।
जलवायु परिवर्तन से महासागरों और तटों की नाजुक पारिस्थितिकीय सेवाओं जैसे भोजन, कार्बन संग्रह, ऑक्सीजन उत्सर्जन, जलवायु परिवर्तन का सामना करने के प्रकृति आधारित समाधानों को सहयोग करने की महासागरों की क्षमता कमजोर होती है।
टिकाऊ प्रबंधन, संरक्षण, तटीय और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के पुनर्निर्माण महत्वपूर्ण चरण है, जिनसे पारिस्थितिक तंत्र को सुरक्षित रखकर लोगों को अनिवार्य सेवाएं निरंतर उपलब्ध कराई जाती रहें। महासागर के स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने के लिए, निम्न कार्बन उत्सर्जन प्रक्षेप अपरिहार्य है।
समुद्र स्तर बढ़ने के प्रभाव
शोधों के अनुसार समुद्र तटीय इलाकों में रहने वाले लोग समुद्र के स्तर में खतरनाक बढ़ाव के कारण 3 गुना ज्यादा खतरों से घिर गए हैं।300 मिलियन लोग जिस जमीन पर रहते हैं, 2050 तक साल में एक बार इस त्रासदी का सामना करेंगे। स्थिति पर नियंत्रण के लिए कार्बन उत्सर्जन पर रोक लगाना और तटीय सुरक्षा को बेहतर बनाना बहुत जरूरी है। पुराने आंकड़े सेटेलाइट डाटा (Satellite Data) पर आधारित होते थे। नए अध्ययन कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर आधारित और ज्यादा त्रुटिहीन होते हैं। जैसे ही पानी का स्तर ऊंचा होता है, लोग घरों में फोन करने लगते हैं। देश को बार-बार इन सवालों का सामना करना पड़ता है कि कब तक और कितनी सुरक्षा तटीय क्षेत्रों के निवासियों को वह दे सकेगा? सबसे बड़ा शिकार इस समस्या का एशिया है, जहां दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी रहती है। 2050 तक बाढ़ के खतरे में जीने वालों की संख्या 8 गुना बांग्लादेश में, 7 गुना भारत में, 12 गुना थाईलैंड और 3 गुना चीन में होगी। इंडोनेशिया ने खतरे को भांपकर राजधानी जकार्ता से हटा दी। 23 मिलियन लोग इंडोनेशिया में खतरे में है। पहले यह संख्या 5 मिलियन थी।
2020 की तमाम चुनौतियों में से एक जलवायु आपातकाल भी है। इस मुद्दे की तात्कालिकता को समझने में विज्ञान की सहायता के साथ-साथ समय से आवश्यक कार्रवाई की पहल करना सबसे जरूरी है ।
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