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रात में आसमान का अध्ययन करना पुराने समय से जारी है, मनुष्य जीवन में हजारों वर्षों से पुराने मिथकों और कहानियों में सितारों का एक प्रमुख स्थान रहा है। लंबे समय तक यह माना जाता था कि तारों और ग्रहों की गति इंसानों की किस्मत पर असर डालती है, कहते हैं इन तारों और नक्षत्रों में हमारे जीवन की पूरी कहानी छुपी होती है। शायद इसलिये मनुष्य की दिलचस्पी तारों में हमेशा से रही है। पुराने समय में तो लोग तारों के माध्यम से ही अपनी रहा ढूंढ लेते थे। खगोलशास्त्रियों ने सैकड़ों तारे ढूंढे हैं, जिनमें से कुछ आज भी पहचाने जाते हैं, आज भी लोग तारों में बहुत दिलचस्पी रखते हैं, उन पर अध्ययन करते हैं, उनके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना चाहते हैं। खगोल वैज्ञानिकों के अनुसार जो लोग खगोल शास्त्र और ब्रह्मांड विज्ञान में रूचि रखते हैं उनके लिये यह समय बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे अभी आसानी से तारों को देख सकते हैं। विश्वभर में कई लोग ऐसे भी हैं जिनका वैज्ञानिक अनुसंधान से कोई संबंध नहीं होता परंतु वे शौकिया तौर पर तारों को देखने और नई खोज करने में रूचि रखते हैं और खगोल विज्ञान में अपना योगदान देते हैं। इसमें प्रतिभागी दूरबीन या अन्य उपकरण का उपयोग करके आकाशीय पिण्डों को देखने का आनंद ले सकते हैं।
वैज्ञानिकों ने वैश्विक लॉक डाउन के दौरान मानव गतिविधियों और प्रदूषण के कम होते स्तर के बीच देखा कि कोविड के दौरान आसमान भी साफ हुआ है और पहले की तुलना में चमकते सितारों को देखना बहुत आसान हो गया है। इस समय में आप सिर्फ अपनी आंखों से बहुत से तारों को आसानी से देख सकते हैं। आप चाहे तो दूरबीन या छोटे टेलिस्कोप के माध्यम से भी तारों को आसानी से देख सकते हैं, इनके माध्यन से आप चंद्रमा, शनि के छल्ले और बृहस्पति तक देख सकते हैं। आपको एक प्लानिस्फेयर (planisphere (गोल तल का मानचित्र)), या आकाश चक्र देखने को भी मिलेगा जो किसी भी तारीख और समय में रात के आकाश में तारों और नक्षत्रों को दर्शायेगा। जैसे-जैसे पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है, आपको आसानी से विभिन्न तारे और नक्षत्र देखने को मिल जायेंगे, परंतु यदि आप इन तारों से अपरिचित हैं तो आपको एक आकाशीय नक्शे या आकाशीय मानचित्रों की आवश्यकता पडेगी।
क्या आप जानते हैं कि नक्शे या मानचित्रों के अलावा आकाशीय ग्लोब (Celestial globe) भी है जो आसमान में तारों की वैसी स्थिति दिखाते हैं, जैसे वे धरती से दिखाते हैं। आमतौर पर, ग्लोब तीन प्रकार के होते हैं, जिनमें से स्थलीय ग्लोब पृथ्वी की भौगोलिक विशेषताओं को व्यक्त करते हैं। ऐसे भी ग्लोब मौजूद हैं जो आकाशीय पिंडों की भौतिक विशेषताओं को दर्शाते हैं। ये खगोलीय ग्लोब आकाश के गोलाकार नक्शे हैं जोकि आकाश में स्थित तारों और नक्षत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन इनमें सूर्य, चंद्रमा और अन्य ग्रहों को नहीं दर्शया जाता है क्योंकि इन पिंडों की स्थिति सितारों के सापेक्ष भिन्न होती है। इसका उपयोग कुछ खगोलीय या ज्योतिषीय गणनाओं के लिए एक उपकरण के रूप में किया जाता है। जैसे-जैसे वैज्ञानिक और खगोलविद आकाश और ग्रहों के जानकार होते गये, वैसे-वैसे खगोलीय ग्लोब भी और अधिक विस्तृत और सटीक होते गये। इसके पीछे यह अवधारणा है कि ग्लोब एक ऐसा क्षेत्र है जो पृथ्वी को उसके काल्पनिक केंद्र के रूप में दर्शाता है, जिस पर तारे और नक्षत्र बनाए गये हैं। इसे पट्टियों की व्यवस्था से युक्त संरचना में रखा गया है, जो इसे अलग-अलग अक्षांशों पर घुमने और झुकने की अनुमति देता है।
कहते हैं सबसे पहले प्राचीन ग्रीस में कुछ ग्लोब बनाए गए थे, ग्रीक लेखक सिसेरो (Cicero) ने सूचना दी थी दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के रोमन खगोलशास्त्री गयूस सल्पिसियस गैलस (Gaius Sulpicius Gallus) के बयानों में बताया गया है कि सबसे पहले ग्लोब का निर्माण थेल्स ऑफ़ मिल्टस (Thales of Miletus) द्वारा किया गया था। परंतु यह यह भी कहा जाता है शायद सबसे पुराना ग्लोब “फार्नेस ग्लोब (Farnese Globe)” है जोकि 3 शताब्दी ईसा पूर्व में निर्मित हुआ था जो आज नेपल्स में राष्ट्रीय पुरातत्व संग्रहालय में है, यह नक्षत्रों के आंकड़ों को दर्शाता है। इसे एक ग्रीक ग्लोब की रोमन प्रति माना जाता है। पूराने समय में अल-सूफ़ी 10वीं शताब्दी के एक महत्वपूर्ण खगोलशास्त्री थे, इनके कार्य से ही अकाशीय ग्लोब के इस्लामी विकास में सहयता मिली। उनकी पुस्तकें, द बुक ऑफ़ कॉन्स्टेलेशन (The Book of the Constellations), में नक्षत्रों का सटीक वर्णन था जो ग्रीक परंपराओं को अरबी परंपराओं के साथ जोड़ता है। उस समय में नक्षत्रों की यह पुस्तक इस्लामिक दुनिया में ग्लोब के निर्माताओं के लिए तारों के समन्वय के एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में कार्य करती थी।
रामपुर रज़ा लाइब्रेरी में भी मोहम्मद इब्न जफ़र द्वारा 1430-31 ईसवीं में किरमन में बनाया गया खगोलीय ग्लोब है, जोकि इस संग्रह में सबसे पुरानी संपत्ति में से एक है। यह ग्लोब पीतल से बना है और इस पर चांदी की परत चड़ी हुई है, जिस पर तारों और नक्षत्रों को उकेरा गया है। यह आकाशीय ग्लोब “अल-बत्तानी” की शैली में निर्मित प्रारंभिक आकाशीय ग्लोब का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसका उपयोग अवलोकन उपकरणों के रूप में नहीं किया गया था, बल्कि सेक्सटैन्ट (sextant) या क्वाड्रेंट (quadrant) के उपयोग के माध्यम से एकत्र किए गए आकाशीय सूचनाओं को सही ढंग से रिकॉर्ड करने के लिए उपयोग किया गया था। वहीं “अल-बत्तानी” सबसे महत्वाकांक्षी खगोलीय ग्लोब में से एक है, जिसमें 1,022 सितारों के निर्देशांक दर्ज किए गये है, जिन्हें मुस्लिम खगोलविदों ने अपनी खोजों में नामित किया था। इस विशिष्ट ग्लोब में लगभग साठ सितारें हैं, जिनमें क्रान्तिवृत्त (Ecliptic line) रेखा के साथ राशि चक्र के नाम उत्कीर्ण हैं, जो एक वर्ष में सूर्य के मार्ग को रिकॉर्ड करता है। इस तरह के ग्लोब का उपयोग न केवल खगोलीय सूचनाओं को एकत्रित (Record) करने के लिए किया जाता था, बल्कि वेधशालाओं में काम कर रहे छात्रों के लिए गणना और स्थिति को प्रदर्शित करने वाले निर्देशों के उपकरणों के रूप में भी किया गया। तैमूर राजवंश के दौरान निर्मित, इस तरह के आकर्षक कार्य में ज्योतिष और खगोल विज्ञान का संयोजन देखने को मिलता है, जोकि तैमूरिद शासकों द्वारा कला और विज्ञान को दिये जाने वाले सहयोग की व्याख्या करता है।
जर्मनी में जेना विश्वविद्यालय में खगोल विज्ञान के प्रोफेसर एरहार्ट वीगेल (Erhardt Weigel) नामक एक व्यक्ति ने 18 वीं शताब्दी के दौरान इस आकाशीय ग्लोब का निर्माण किया। उन्होंने एक खोखले केंद्र में एक लैम्प रखा, जोकि उभरे हुए तांबा क्षेत्र में छोटे से छेद के माध्यम से प्रकाश को आगे भेज रहा था। इन छोटे छिद्रों से सितारों का प्रतिनिधित्व किया जाता था और चार बड़े छेदों में से एक के माध्यम से ग्लोब को देखने पर तारों को उनके सही विन्यास में देखा जा सकता था। इस प्रकार, ग्लोब प्रकाशीय तारामंडल के अस्तित्व में सबसे पहले ज्ञात हुआ। वीगेल का मॉडल (Weigel's model) दिनांक 1699 का है यह फ्रेंकलिन संस्थान द्वारा जून 1932 में जर्मनी के म्यूनिच (Munich) के एमिल हिर्श (Emil Hirsch) से प्राप्त किया गया था। परंतु वीगेल द्वारा उपयोग किये गये नक्षत्र मानक नहीं हैं, उन्होने इसे यूरोपीय शाही परिवारों को दर्शाने के लिए बनाया था।
प्रशांत द्वीप समूह में समुद्री यात्रा करने वाले लोगों ने इन ग्लोबों का उपयोग खगोलीय नेविगेशन (Navigation) को सीखाने के लिए भी इस्तेमाल किया। परंतु इन ग्लोबों में एक समस्या है, इनमें नक्षत्रों वास्तवित छवि ना दर्शा कर इनकी दर्पण छवियों को दिखाया जाता है। इसलिये ये तारे ग्लोब की सतह पर उलट दिखाई देते है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इन्हे पृथ्वी के अंदर के क्षेत्र से बनाया जाता है, परंतु ग्लोब को हम बाहर से देखते हैं। खगोलीय ग्लोब एक ऑर्थोग्राफिक प्रोजेक्शन (Orthographic projection) है। इस कारण से, आकाशीय ग्लोब का उत्पादन अक्सर दर्पण छवि में किया जाता है, ताकि पृथ्वी से नक्षत्र देखे जा सकें।
खगोल विज्ञान इतिहास में सबसे लंबे समय तक अध्ययन किए जाने वाले विज्ञानों में से एक है। कई बार वैज्ञानिकों ने उन सवालों के जवाब देने का प्रयास किया है जो सदियों से हमारी समझ से परे हैं। जब तक हमें ये अकाशीय पिंड आश्चर्य में डलते रहेंगे तब तक ग्लोब जैसे उपकरण हमारी सहयता करते रहेंगे, तारों के समान ही हमें रास्ता दिखायेंगे।
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