देवी मां, मां शक्ति, मातृका और समर देव आपस में सम्बंधित हैं। मातृका का अर्थ मां है और मातृस शब्द माताओं के समूह की ओर इशारा करता है। इसलिए सप्त- मातृकास का मतलब है 7 माताएं। वह मात्रि देवी का ही अंग होती हैं। एक समय यह अष्ट मातृका के रूप में पूजी जाती थी और एक अतिरिक्त देवी को जोड़ दिया जाता था। यह तब शक्ति मां के ही विविध अवतार थे। इनका चरित्र और विवरण क्षेत्रीय आधार पर बना है। किसी सिद्धांत पर आधारित नहीं है। सामान्य तौर पर उनके बारे में यह बताया जाता है कि इनमें पवित्र गुण होते हैं। आम राय के अनुसार सप्तमातृका का जन्म उन हजारों अंधाकाओं के विनाश के लिए हुआ था, जो राक्षस अंधिका के खून से बने थे।
सप्तमातृका ब्राह्मणी:
देवी के 4 चेहरे होते हैं और शरीर सोने की तरह चमकीला होता है। इनके पीछे के दाहिने हाथ में सुला होता है और पीछे के बाएं हाथ में अक्षमाला होती है। सामने का दाहिना हाथ अभय मुद्रा में होता है और सामने का बांया हाथ वरद मुद्रा में होता है। लाल कमल पर बैठी देवी ब्राह्मणी का वाहन हंस ही उनका प्रतीक चिन्ह भी है। देवी पीतांबर धारण करती हैं। सिर पर मुकुट होता है। पलाश के पेड़ नीचे उनका स्थान होता है।
सप्तमातृका वैष्णवी:
यह देवी अपने दाहिने और बाएं हाथ में चक्र और शंख धारण करती हैं। अन्य हाथ अभय और भारत की मुद्रा में होते हैं। उनका चेहरा बहुत सुंदर होता है। पुष्ट वक्षस्थल, सुंदर आंखें और रंग काला होता है व पीले वस्त्र पहनती हैं। इनके सिर पर कीर्ति मुकुट होता है। शरीर पर लगभग सभी आभूषण धारण करती हैं, जो भगवान विष्णु पहनते हैं और वही उनके प्रतीक चिन्ह है। देवी का वाहन गरुड़ है। एक राज्य वृक्ष के नीचे उनका निवास होता है। देवी पूर्णा में इन्हें चार भुजा धारी दिखाया गया है। जिनमें वह शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण करती हैं। विष्णु की माला वनमाली पहनती हैं।
सप्तमातृका- इंद्राणी:
देवी की 3 आंखें और चार भुजाएं होती हैं। इनके दो हाथों में शक्ति होती है, दो अन्य हाथ वर्ग और अभय की मुद्रा में होते हैं। देवी का रंग लाल होता है और सिर पर कीर्ति मुकुट धारण करती हैं। बहुत आभूषणों से सुसज्जित होती हैं। उनका वाहन और प्रतीक चिन्ह हाथी होता है। कल्प वृक्ष के नीचे इनका निवास होता है। शास्त्रों में इनकी आंखों के बारे में दो तरह के विवरण मिलते हैं- एक के अनुसार इनकी दो आंखें होती हैं और जबकि दूसरे के अनुसार 1000 आंखें होती हैं। एक हाथ में इनके कमल होता है।
सप्तमातृका चामुंडा:
चामुंडा देवी की तीन आंखें और रंग लाल होता है। उनके घने मोटे बाल ऊपर की तरफ मुड़े होते हैं। उनके एक हाथ में कपाल और दूसरे में सुला होता है। अन्य दो हाथ अभय और वरद की मुद्रा में होते हैं। कपालों की एक माला गले में यज्ञोपवीत की तरह धारण करती हैं। पद्मासन में बैठी देवी शेर की खाल पहनती हैं और अंजीर के पेड़ के नीचे निवास करती हैं। चेहरा विकराल और दांत विशाल होते हैं। पतली काया, धंसी हुई आंखें और 10 भुजाएं होती हैं। उनके हाथों में मुसल, कवच,बाण, अंकुश, खड़ग, खेटका, धनुष डंडा और परासु होते हैं।
सप्तमातृका महेश्वरी:
देवी श्वेत वर्ण की होती हैं। इनकी 6 भुजाएं होती हैं, जिनमें से दो अभय और वरद मुद्रा में होते हैं, दो में सुला और अक्षमाला होती है। इनका वाहन बैल होता है। विष्णुधर्मोत्तरा के अनुसार देवी के पांच चेहरे, प्रत्येक पर तीन आंखें होती हैं और सिर पर अर्धचंद्राकार मुकुट होता है। 6 भुजाएं होती हैं और 4 में वे सूत्र, डमरु, सुला और घंटा धारण करती हैं। सिर पर जाट मुकुट धारण करने वाली का प्रतीक चिन्ह भी बैल होता है।
सप्तमातृका कुमारी-
इनका रंग पीला होता है यह देव सुब्रमण्यम जिन्हें कुमार कहते हैं कि नारी प्रतिरूप होती हैं। इनकी चार भुजाएं होती है जिनमें से 2 में यह शक्ति और कुक्कुट को धारण करती हैं, अन्य दो अभय और वर्ग की मुद्रा में होती हैं। कुमार की तरह ही इनका वाहन भीम होता है और यही इनका प्रतीक चिन्ह भी है। सिर्फ जाट मुकुट धारण करती हैं, जो कि वासिका से सीमा बंद होता है। यह अंजीर के वृक्ष के नीचे रहती हैं। इनके दो हाथ अभय और वर्ग की मुद्रा में होते हैं और यह शक्ति, ध्वजा, डंडा, धनुष, बाण, घंटा, पदम, पात्र और परासु को अन्य भुजाओं में धारण करती हैं। देवी पूर्णा के अनुसार इनके गले में लाल फूलों की माला होती है। यह शूरता और साहस की प्रतीक है।
सप्तमातृका वाराही:
इनका चेहरा सूअर जैसा और रंग काले बादल जैसा होता है। इनका वर्ण गहरे रंग का होता है। यह सिर पर मुकुट पहनती हैं और मूंगे से बने आभूषण भी धारण करती हैं। वह हाला और शक्ति को धारण करती हैं और कल्पक वृक्ष के नीचे बैठती हैं। इनका वाहन और प्रतीक हाथी है। इन का पेट बड़ा होता है 6 भुजाएं होती हैं, जिनमें से 4 में यह डंडा, खडग, खेटका और पासा धारण करती हैं, दो अभय और वरद की मुद्रा में होती हैं। यह हाला और मुसाला को अपने अस्त्रों की तरह प्रयोग करती हैं। पैरों में घुंघरू धारण करती हैं।
सप्त मातृका पूजन
देवी पुराण में देवियों के पूजन के लिए फूलों के नामों का उल्लेख है। सप्तमातृका देवियों की महिलाओं द्वारा पूजा अमावस्या के दिन चावल के आटे या सुपारी पर बनी 64 योनियों की आकृतियों से होती है। फल, फूल और मंत्रों से देवियों का पूजन होता है। इससे अज्ञानता का अंधकार दूर हो जाता है, असुरों का नाश होता है। नेपाल में देवियों को 8 कंपास दिशा में रखते हैं। उत्तर पश्चिम दिशा दुर्गा महालक्ष्मी के लिए निर्धारित होती है, जिनसे मातृकाओं का जन्म होता है।
सन्दर्भ:
https://www.templepurohit.com/sapta-matrika-7-incarnation-goddess-shakti/
https://en.wikipedia.org/wiki/Matrikas
https://www.britannica.com/topic/Saptamatrika
चित्र सन्दर्भ:
पहली छवि सप्त मातृका की है।(temple purohit)
दूसरी छवि में दिखाया गया है कि देवी अंबिका 18वीं सदी की शुरुआत में एक देवीमहात्म्य (महिमा की महिमा) से दानव रक्ताबिजा के खिलाफ युद्ध में आठ मातृ देवताओं का नेतृत्व कर रही हैं।(wikipedia)
तीसरी छवि देवी महात्म्य को दिखाती है।(wikipedia).