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हर साल सैकड़ों की संख्या में दूर-दूर से लोग तीर्थ यात्रा पर जाते हैं। ईश्वर में आस्था रखने वाले विभिन्न धर्मों के लोग ऐसा मानते हैं कि अपने सम्पूर्ण जीवन में कम से कम एक बार तीर्थयात्रा पर अवश्य जाना चाहिए। इस यात्रा से मन को शांति व जीवन के उपरान्त मुक्ति का द्वार खुल जाता है। तीर्थ यात्रा एक ऐसे स्थान की यात्रा है जो किसी धर्म विशेष के लोगों के जीवन में आद्यात्मिक या सांस्कृतिक महत्व रखता हो। इस यात्रा पर जाने वाले व्यक्ति को तीर्थयात्री कहा जाता है। यह यात्रा तीर्थयात्री को व्यक्तिगत परिवर्तन के लिए प्रेरणा देती है और व्यक्ति का नैतिक व आध्यात्मिक विकास करती है। हालाँकि यह भी संभव है की एक तीर्थ यात्रा में शामिल होने वाला प्रत्येक व्यक्ति अलग-अलग मान्यताओं में विश्वास रखता हो। तीर्थ यात्रा एक ऐसे स्थान या तीर्थ स्थल की यात्रा है जो किसी समय पर महान ऋषि या संतों का जन्मस्थल रहा हो, किसी ने उस स्थान विशेष में ईश्वर की तपस्या की हो या जहाँ किसी प्रकार का चमत्कार होते हुए लोगों ने देखा हो। साथ ही यह ऐसे स्थल भी हो सकते हैं जहाँ विभिन्न पौराणिक और आध्यात्मिक ग्रंथों में वर्णित विशेष घटनाएं हुई हैं। ऐसे स्थलों में लोगों का अटूट विश्वास होता है और इन्हें मंदिरों के साथ स्मरण किया जा सकता है।
कई तीर्थ यात्रा ऐसे स्थानों की भी होती है जो साधू-संतुओं का निवास स्थान है, जहाँ वे साधारण जीवन व्यतीत कर रहे हों। ऐसे साधू-संत बहुत ज्ञानी होते हैं जो भौतिक जीवन के भव्य आडम्बरों से दूर एकांत में निवास करते हैं। लोग उनके दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं, और वह स्थल एक तीर्थ स्थान बन जाता है। ऐसे संत लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत होते हैं। कई तीर्थ स्थल प्राचीन नदियों, प्राचीन नगरी या बर्फ की चोटी पर स्थित किसी स्थान पर होती है। हर साल लोग ऐसे स्थानों की यात्रा कर अपने जीवन को सफल मानते हैं।
यात्रा को तीन भागों में बांटा जा सकता है: पहली यात्रा वह जिसमें यात्री किसी स्थान की भव्यता एवं प्राकृतिक सौंदर्य को निहारने के उद्देश्य से यात्रा करता है। किसी वस्तु विशेष के लिए प्रसिद्ध स्थल और उस वस्तु विशेष की खोज के उद्देश्य से की गयी यात्रा भी इसी श्रेणी में आती है। संक्षेप में, बाहरी या भौतिक वस्तु की प्राप्ति के लिए की गयी यात्रा। दूसरी यात्रा वह जिसमें व्यक्ति मन की शांति के लिए, आत्म ज्ञान या सत्य की खोज में निकलता है और जीवन के अर्थ को खोजने का प्रयास करता है। तीसरी और सबसे विशेष यात्रा जिसमें अग्रलिखित दोनों उद्देश्य की पूर्ती होती है। अर्थात आंतरिक और बाह्य यात्रा नहीं बल्कि किसी स्थान विशेष में पहुँचने पर सम्पूर्ण होती है और जहाँ जीवन की सारी खोज समाप्त हो जाती है।
इन यात्रा के बाद तीर्थयात्री अपने दैनिक जीवन में वापस लौट आते हैं और ईश्वर का ध्यान करते हैं। जो तीर्थ यात्रा के प्रति श्रद्धा नहीं रखते वे भ्रमण और तीर्थ यात्रा को एक समान मानते हैं किन्तु ऐसा नहीं है। भ्रमण और तीर्थ यात्रा में बहुत अंतर होता है। यह अंतर इस प्रकार है कि भ्रमण में मन में श्रद्धा और आस्था का होना आवश्यक नहीं है वहीं तीर्थ यात्रा में विशेषकर वही लोग जाते हैं जो उसमें अटूट आस्था रखते हैं। भ्रमण सामान्यतः मित्रों, परिवार के सदस्यों या किसी समूह विशेष के साथ किया जाता है, दूसरी ओर तीर्थ यात्रा मुख्य रूप से एकांत में की जाती है किन्तु सभी के लिए इसके द्वार हमेशा खुले होते हैं। भ्रमण से दैनिक जीवन में कुछ समय के लिए परिवर्तन आता है, थकावट दूर होती है और आनंद की अनुभूति होती है। तीर्थ यात्रा जीवन में संतुलन लाती है, आध्यात्मिक और धार्मिक ज्ञान में वृद्धि करती है और व्यक्ति के जीवन को देखने का दृष्टिकोण बदल जाता है। भ्रमण व्यक्ति के दैनिक कार्यों से मिले अवकाश पर निर्भर करता है बल्कि व्यक्ति तीर्थ यात्रा पर तब जा सकता है जब भी वह आत्मज्ञान और सत्य की खोज करना चाहता हो।
विभिन्न धर्मों के कुछ तीर्थ स्थान जहाँ सैकड़ों लोग प्रति वर्ष तीर्थ यात्रा के लिए जाते हैं, निम्नवत हैं:
बुद्ध धर्म (Buddhism)
बौद्ध तीर्थ यात्रा करने के लिए चार स्थान प्रमुख हैं: लुम्बिनी जो भगवान बुद्ध की जन्मभूमि है और नेपाल में स्थित है, बोधगया: ज्ञानोदय का स्थान (वर्तमान महाबोधि मंदिर, बिहार, भारत में), सारनाथ: (औपचारिक रूप से इसिपतन, उत्तर प्रदेश, भारत) जहाँ बुद्ध ने अपना पहला धर्मोपदेश (धम्मचक्कप्पवत्तन सुत्त) दिया था , और उन्होंने मध्य मार्ग, चार महान सत्य और महान आठ पथ के बारे में पढ़ाया था और कुशीनारा: (अब कुशीनगर, भारत) जहाँ उन्होंने महापरिनिर्वाण प्राप्त किया (निधन)। गौतम बुद्ध के जीवन से जुड़े भारत और नेपाल के अन्य तीर्थ स्थान हैं: सवार्थी, पाटलिपुत्र, नालंदा, गया, वेसली, संकसिया, कपिलवस्तु, कोसंबी, राजभा। कुशीनगर के महापरिनिर्वाण मंदिर में प्राचीन उत्कीर्ण बुद्ध-प्रतिमा भी एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। कई अन्य देशों में भी बौद्ध धर्म के अनेकों तीर्थ स्थल मौजूद हैं।
ईसाई धर्म (Christianity)
सर्वप्रथम ईसाई तीर्थयात्रा पहली बार यीशु के जन्म, जीवन, क्रूस और पुनरुत्थान के स्थलों में की जाती थी। रोम और अन्य स्थानों पर भी तीर्थयात्राएँ की जाती थीं जो संतों और ईसाई शहीदों के साथ-साथ उन स्थानों के लिए भी थीं जहाँ पवित्र मैरी की आत्मा निवास करती थी। सेंट जेम्स के रास्ते से सेंटियागो डे कॉम्पोस्टेला कैथेड्रल, गैलीसिया, स्पेन जहाँ जेम्स का मंदिर है, में भी एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। मारियन तीर्थयात्रा लैटिन अमेरिका में बहुत लोकप्रिय हैं, साथ ही मास्ट्रिच, आचेन और कोर्नेलिमुन्स्टर के तीन नज़दीकी शहरों में हर सात साल में एक संयुक्त तीर्थयात्रा का आयोजन किया जाता था, जहाँ कई महत्वपूर्ण अवशेष देखे गए थे। चौसर की कैंटरबरी टेल्स कैंटरबरी कैथेड्रल और थॉमस बेकेट के मंदिर में भी लोकप्रिय तीर्थ यात्राओं का आयोजन किया जाता है।
इस्लाम (Islam)
इस्लाम धर्म की सबसे प्रमुख तीर्थ यात्रा है हज़ यात्रा। मक्का इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है और मुसलमानों के लिए अपने जीवन काल में कम से कम एक बार हज यात्रा पर जाना आवश्यक धार्मिक कर्तव्य माना जाता है। विभिन्न देशों से करोड़ों की संख्या में लोग इस यात्रा में शामिल होते हैं, और इसकी सभा को दुनिया में लोगों की सबसे बड़ी वार्षिक सभा का दर्जा प्राप्त है।
हिन्दू धर्म (Hinduism)
कुम्भ मेला, अर्ध कुम्भ, चार धाम यात्रा (बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमनोत्री) और शक्ति पीठ तीर्थ यात्रा हिन्दू धर्म की प्रचलित व प्रमुख तीर्थ यात्राओं में से हैं। इसके अतिरिक्त अनेकों तीर्थ यात्राएं भी समय-समय पर आयोजित की जाती हैं, जिनका या तो क्षेत्र विशेष या जाति विशेष से धार्मिक महत्व रहा हो। परंपरागत तरीके से लाखों की संख्या में लोग इन यात्राओं में शामिल होते व स्वयं को पाप-मुक्त अनुभव करते हैं।
ऐसे ही अन्य धर्मों में भी समय-समय पर तीर्थ यात्राएं संपन्न की जाती हैं, इससे यह मालूम पड़ता है की भले ही धर्मों में भिन्नता है परन्तु ईश्वर के प्रति लोगों की भावनाएं सामान हैं विश्व भर में होने वाली विभिन्न तीर्थ यात्राएं जिसका जीवंत उदाहरण हैं।
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