बरेच जनजाति के साथ रोहिल्ला का संबंध जगजाहिर है, भारत पाकिस्तान और अफगानिस्तान के ज्यादातर लोग यह भूल चुके हैं कि बरेच कौन थे? 1822 की एक दिलचस्प पुरानी तस्वीर (जब कैमरा इज़ाद नहीं हुआ था) कोपनहेगन, डेनमार्क (Copenhagen, Denmark) में कला के प्रसिद्ध डेविड संग्रह म्यूजियम (David Collection Museum) में शामिल है, जिस पर साफ संकेत हैं- ’बरेच परिवार के रोहिल्ला अफगान’। हम उस व्यक्ति का नाम तो नहीं जानते लेकिन उसके कपड़ों और रूप रंग से बरेच-रोहिल्ला संबंध की झलक जरूर मिलती है। फोटो के पीछे एक चिन्ह खुदा है, जो बताता है कि यह बरेच परिवार के सदस्य का चित्र है। इसी तरह की एक दूसरी पेंटिंग भी है, जो 1830 के रोहिल्ला सिपाहियों की है। यह पेंटिंग अब ब्रिटिश लाइब्रेरी लंदन (British Library London) में है।
डेविड संग्रह म्यूजियम (David Collection Museum)
सीएल डेविड (CL David) के व्यक्तिगत संग्रह पर आधारित कोपनहेगन, डेनमार्क का यह संग्रहालय अधिकांश तौर पर एक व्यवसाई और कलात्मक वस्तुओं का संग्रह करता है। इसकी सबसे बड़ी खूबी 8वीं से 19वीं शताब्दी तक की इस्लामी कला का संग्रह है। इसमें 18वीं सदी के ललित कला, अप्लाइड आर्ट( यूरोप) (Applied Art (Europe)) और दानिश स्वर्ण युग (Danish Golden Age) का भी थोड़ा संग्रह है।
रोहिल्ला वंश
रोहिल्ला वंश अरब मूल का एक भारतीय वंश है, जिसने रोहिलखंड पर शासन किया और बाद में रामपुर रियासत पर। भारतीय शासकों पर रोहिल्ला वंश का बड़ा दबदबा था। अली मोहम्मद खान को बचपन में बरेच जनजाति के मुखिया, सरदार दाऊद खान रोहिल्ला ने गोद लिया था। रोहिल्ला से मतलब है, वो पश्तून जो भारत आकर बस गए।
बरेच वंश
यह एक पश्तून जनजाती है, जो अफगानिस्तान के दक्षिणी कंधार राज्य और पाकिस्तान के क्वेटा में पाई जाती है। इसके बारे में थोड़ा बहुत ब्रिटिश शहरी और सेना से संबंध पदाधिकारियों ने 19वीं और 20वीं शताब्दी की शुरुआत में लिखा है। बरेच ने सबसे बड़ा जनजाति समूह उत्तर भारत के रोहिल्ला के आस-पास स्थापित किया। बरेच वंश में सबसे ज्यादा शोहरत, खान फतेह खान बरेच को मिली, जो असलम खान के बेटे थे, वे बरेच जनजाति के सबसे बड़े नायक और गौरव के प्रतीक थे। उनकी भारत और पाकिस्तान में दिलेर जीत उल्लेखनीय और पठानों के लिए गर्व की बात है। बरेच की जनजाति भारत पाकिस्तान में एक समान रूप से मिलती है। यह सब महान फतेह खान बरेच और उनकी 60 कंपनियों के कारण संभव हुआ। यह वह समय था जब महान अकबर की मौत हो चुकी थी और जहांगीर मुगल शासन के नए बादशाह बने।
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