वर्तमान समय में हम अपने चारों ओर छोटी - बड़ी अनेकों मशीनें व उपकरण देखते हैं, जिनका आविष्कार मनुष्य के काम आसान करने व समय की बचत करने के लिए किया गया है। इन मशीनों तथा उपकरणों को चलने के लिए ऊर्जा के स्त्रोत की आवश्यकता होती है, जो निरंतर गति से इन्हें चलने के लिए शक्ति प्रदान करे। वैज्ञानिकों ने इसी समस्या के समाधान स्वरूप बैटरी का अविष्कार किया। आज हम बैटरी के बिना एक दिन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। इनवर्टर (Inverter) से लेकर मोबाइल फ़ोन तक सभी बैटरी से चलने वाले उपकरण हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुके हैं। इसकी शुरुआत हुई थी सन 1800 में, जब इटली के एक महान वैज्ञानिक एलेसेंड्रो वोल्टा (Alessandro Volta) ने 20 मार्च के दिन बैटरी के विकास से जुड़ी इस खोज को विश्व के सम्मुख प्रस्तावित किया था। वोल्टा ने तांबे और जिंक की छड़ों को कांच के दो बर्तनों में रख कर उन्हें नमक के पानी से भीगे एक तार से जोड़ कर साबित किया कि इस भौतिक तरीके से बिजली का उत्पादन किया जा सकता है।
डेनियल सेल (Daniell Cell)
रसायन विज्ञान के एक अंग्रेजी प्रोफेसर जॉन फ्रेडरिक डेनियल (John Frederic Daniell) ने सबसे पहले उत्पादित हाइड्रोजन (Hydrogen) का उपभोग करने के लिए एक दूसरे इलेक्ट्रोलाइट (Electrolyte) का उपयोग करके वोल्टायिक ढेर (Voltaic Pile) में हाइड्रोजन के बुलबुले की समस्या को हल करने के एक तरीके की खोज की। 1836 में, उन्होंने डेनियल सेल का आविष्कार किया, जिसमें सल्फेट (Sulfate) के घोल से भरा एक तांबे का बर्तन होता है, जिसमें सल्फ्यूरिक एसिड (Sulfuric Acid) और एक जस्ता इलेक्ट्रोड से भरा एक अनजला मिट्टी के बर्तन या कंटेनर को डुबोया जाता है। मिट्टी के बर्तन का अवरोध छिद्रयुक्त होता है, जो आयनों (Ions) को गुजरने की अनुमति प्रदान करता है, लेकिन मिश्रण को घुलने से रोकता है।
वोल्टाइक सेल की तुलना में अधिक लम्बे समय तक चलने वाली तथा अधिक विश्वसनीय धारा प्रदान करने वाली डेनियल सेल बैटरी सुरक्षित और कम संक्षारक होती है। यह आज के समय में प्रयोग की जाने वाली बैटरियों के विकास के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण खोज साबित हुई। उस समय यह धारा प्रवाह का पहला व्यावहारिक स्रोत माना जाता था। शीघ्र ही, यह बैटरी नए टेलीग्राफ नेटवर्क में प्रयोग होने के बाद एक उपयोगी मानक के रूप में प्रचलित हो गई।
बुन्सेन सेल (Bunsen Cell)
बुन्सेन सेल (Bunsen cell) एक जस्ता-कार्बन प्रारंभिक सेल अथवा बैटरी है, जो नाइट्रिक सल्फ्यूरिक एसिड (Nitric Sulfuric Acid) में जिंक एनोड से बना होता है, जो नाइट्रिक या क्रोमिक एसिड (Chromic Acid) में कार्बन कैथोड से एक छिद्रित बर्तन द्वारा पृथक होता है। यह बैटरी ग्रोव बैटरी से मिलती-जुलती होती है, किन्तु इसका ऋण पत्र (Negative Plate) प्लैटिनम (Platinum) की जगह कार्बन (Carbon) का होता है। यह बैटरी लगातार बिजली की तेज धारा उत्पन्न करने के कारण प्रारंभिक बैटरियों से बेहतर है। यह बहुत कम लागत में तैयार हो जाती है और बड़ी सुगमता के साथ बनाई जा सकती है। इस बैटरी की कमी के बारे में बात करें तो पहली यह कि जब यह काम करती है, उस वक्त इससे जहरीला और जलन पैदा करने वाला धुआँ बहुत बड़ी मात्रा में उत्पन्न होता है। दूसरा यह कि दो प्रकार के तेज़ तेज़ाब इसमें काम में लाए जाते हैं। उनमें से शोरे का तेज़ाब (Nitric Acid) बगैर हल्का किये हुए अपने मूल रूप में (In Undiluted State) में होता है। इनमें से पहले अवगुण से तो प्रायः बैटरी को कमरे के बाहर रख कर बचा जा सकता है, जिससे इससे उत्सर्जित लाल रंग का भारी धुआँ हवा के साथ बहकर दूर चला जाए और किसी भी तरह सांस के साथ मुँह में न जा सके। दूसरे अवगुण से इस तरह बचा जा सकता है कि तेज़ाब और बैटरी को इधर-उधर रखने व छुने-छुआने में बहुत सावधानी रखी जाए।
जिंक-कार्बन सेल (Zinc-carbon Cell)
जिंक-कार्बन सेल, जिसे सबसे पहले सूखे सेल के रूप में भी जाना जाता है, का विकास तब से आरम्भ हुआ जब 1812 में बना ज़ाम्बोनी ढेर (Zamboni Pile) एक उच्च-वोल्टेज वाली सूखी बैटरी के रूप में विकसित हुआ, लेकिन इसके साथ समस्या यह थी कि यह केवल कुछ मिनट तक धाराओं को वितरित करने में सक्षम था। कई प्रयोगकर्ताओं ने सेल्युलोज (Cellulose), चूरा, काता कांच, अभ्रक फाइबर, और जिलेटिन (Gelatin) के साथ विभिन्न प्रयोग किए, उसके पश्चात इलेक्ट्रोकेमिकल सेल (Electrochemical Cell) के इलेक्ट्रोलाइट को विसर्जित किया गया ताकि यह उपयोग करने के लिए अधिक सुविधाजनक हो सके।
1886 में, कार्ल गैस्नर (Carl Gassner) ने लेक्लांची सेल (Leclanché cell) के एक संस्करण पर एक जर्मन पेटेंट प्राप्त किया और नवंबर 1887 में, उन्होंने उसी डिवाइस के लिए अमेरिकी पेटेंट 373,064 प्राप्त कर लिया। जिसे ड्राई सेल (Dry Cell) के रूप में जाना जाता है क्योंकि इसमें एक मुक्त तरल इलेक्ट्रोलाइट नहीं है बल्कि, अमोनियम क्लोराइड को पेस्ट बनाने के लिए प्लास्टर ऑफ़ पेरिस (Plaster of Paris) के साथ मिलाया जाता है, जिसमें थोड़ी मात्रा में ज़िंक क्लोराइड भी होता है। मैंगनीज डाइऑक्साइड कैथोड को इस पेस्ट में डुबोया जाता है, और दोनों को एक जस्ता के खोल (आवरण) में सील कर दिया जाता है, जो एनोड के रूप में भी काम करता है।
हर उस क्षेत्र में जहां विज्ञान से जुड़े आविष्कार प्रयोग में लाये जाते हैं, में बैटरी के विभिन्न प्रकार देखे जा सकते हैं। यदि इनका इस्तेमाल सावधानी से किया जाए तो बैटरियां सबसे सुलभ, सुरक्षित और लम्बे समय तक चलने वाला ऊर्जा का एक प्रमुख स्रोत हैं।
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