इस्लाम में कदर की अवधारणा से जुड़े विभिन्न मत

रामपुर

 14-09-2020 05:10 AM
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

सदियों से धर्मशास्त्रियों और दार्शनिकों को ईश्वरीय भाग्य के विचार (जिसे ईश्वरीय हुक्मनामा या पूर्वनिर्धारण भी कहा जाता है, कि सृष्टिकर्ता द्वारा पहले से ही सब कुछ तय किया गया है) परेशान करते आ रहे हैं। इस्लाम धर्म में भी इन विषयों को लेकर कई तर्क दिए गए हैं। इस्लाम धर्म में भाग्य, दिव्य आज्ञा या पूर्वनिर्धारण आदि को ‘कदर’ के नाम से संबोधित किया जाता है। शाब्दिक रूप से इस शब्द का तात्पर्य ‘शक्ति’ से है। इस्लाम में ईश्वरीय भाग्य की धारणा एक बड़े पैमाने पर प्रचलित है तथा यह इस्लाम के 6 प्रमुख लेखों में से एक है। कुरान या इस्लाम में माना जाता है कि सम्पूर्ण सृष्टि के रचनाकार और उसकी सम्पूर्ण शक्ति को समेट कर रखने वाले अल्लाह हैं।
परन्तु साथ ही यह भी माना जाता है कि मनुष्य अपने कर्मों के लिए स्वयं ज़िम्मेदार है। यह एक विवाद का विषय बन गया क्योंकि यदि अल्लाह के पास हमारे ऊपर काबू नहीं है, तो उन्हें क्यों पूजा जाये और यदि हमारे पास अपने कर्मों पर कोई काबू नहीं है, तो कोई भी व्यक्ति कुछ अच्छा करने का ज़िम्मा क्यों ले? प्रारंभिक इस्लामी इतिहास की बात की जाए तो यह प्रश्न एक अत्यंत ही विवाद का विषय था तथा धार्मिक और धर्मनिर्पेक्ष्य दोनों कारणों से इतिहास का भी एक मुद्दा रहा था। प्राचीन काल में अरस्तु ने 2000 साल पहले इस विषय को गंभीरता से लिखा था क्यूंकि ब्रह्माण्ड और उसकी उत्पत्ति, ख़ुशी, मानव स्वतंत्रता आदि को समझने के लिए यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है।
विश्व भर में इस विषय को लेकर कई संदेह हैं और इस्लाम में भी इस विषय को लेकर संदेह हुआ। इस्लाम में अल कद्र को विद्वानों ने अलग-अलग तरह से परिभाषित किया है। हांलाकि ये एक-दूसरे के विरोधाभास लगते हैं परन्तु ये अलग-अलग कथन एक ही वास्तविकता के भिन्न पहलू हैं। कदर अकीदह के पहलुओं में से एक है, इसमें कहा जाता है कि अल्लाह ने सभी के अच्छे बुरे कर्मों को मापा है और इससे यह भी सत्य होता है कि अल्लाह किसी को अपनी इच्छा से हस्तक्षेप नहीं करता और मनुष्यों को वह किसी कार्य को करने के लिए मजबूर भी नहीं करता। वह सिर्फ यह मापता है कि एक व्यक्ति किस प्रकार के कार्य करता है? कुरान में इस विषय पर कई आयतें मौजूद हैं, जो कि इस विषय पर विस्तार से प्रकाश डालती हैं। कदर को एक और शब्द से मापा जाता है और वह है 'अल-कद्र'। अल-कद्र का शाब्दिक अर्थ है 'दिव्य-शक्ति'। यह मापन, लक्ष्य निर्धारण, गणना, तैयारी, समर्थतता और शक्ति से संबंधित अवधारणाओं को दर्शाता है। इस अवधारणा को लेकर कई मत हैं, जिनमें से कुछ इसके समर्थक हैं तो कुछ आलोचक। प्रायः ऐसे दो समूह हैं, जो तटस्थ दृष्टिकोण क़दर के बारे में अपने विचार या मत रखते हैं। इनमें से जबरिया का मत है कि मनुष्यों का अपने कार्य पर कोई नियंत्रण नहीं है और सब कुछ अल्लाह द्वारा निर्धारित होता है। वहीं दूसरा समूह जो कि कदरिया है, वे कहते हैं कि जो भी कार्य मनुष्य करता है वह उसका अपना निर्णय होता है और उसमें अल्लाह का कोई हस्तक्षेप नहीं होता। इस विषय पर सुन्नी और शिया दोनों समुदायों के अपने मत हैं। कदर को लेकर चार प्रमुख बाते हैं- अल-इल्म, किताबत, मशियत और अल-खलक। इन्हीं के आधार पर कदर की पूरी धारणा की पृष्ठभूमि तैयार की जाती है।
इस्लाम में ‘तकदीर’ का भी एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान है। तकदीर क़दर के उपसमुच्चय का रूप है, जिसका अर्थ है माप के अनुसार वस्तुओं का निर्माण। यह अवधारणा इस बात पर आधारित है कि ईश्वर की सारी रचना में पूर्ण निपुणता है। इस अवधारणा में, मानव को ईश्वर द्वारा साधन या माध्यम प्रदान किये जाते हैं, न कि वह उन्हें अपने माध्यम से प्राप्त होते हैं। यही कारण है कि कई मुस्लिम यह मानते हैं कि जो भी हो रहा है और जो भी होगा वह अल्लाह की मर्जी से होगा है। भिन्न-भिन्न मतों की जब एक-दूसरे से तुलना की गयी, तब प्रत्येक मत अधूरे धर्मशास्त्र का निर्माण करते मिले। लेकिन कुरान और सुन्नत सम्प्रदाय ने इन दो मतों के बीच के मध्य मार्ग का अनुसरण किया, जिसके अनुसार पूरे ब्रह्मांड पर अल्लाह का संप्रभु है और वह सभी चीजों को पहले से ही जानता है तथा उन्हें असीम शक्ति के साथ अस्तित्व में रखता है। लेकिन इसके साथ ही, अल्लाह ने मानव को उसके कर्मों का परीक्षण करने के लिए उसे स्वतंत्रता प्रदान की है। उन फरमानों या हुक्मों की पूर्ति हमारे द्वारा किए गए कार्यों के आधार पर बदली जा सकती है। अगर अल्लाह हमारे लिए एक बुरी किस्मत का फैसला करते हैं, तो हमारे द्वारा अच्छे कर्म करके उन्हें बदला जा सकता है।

संदर्भ :-
https://en.wikipedia.org/wiki/Predestination_in_Islam
https://yaqeeninstitute.org/justin-parrott/reconciling-the-divine-decree-and-free-will-in-islam/
https://en.wikipedia.org/wiki/Taqdir

चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र में इस्लाम में क़दर की भावना को प्रदर्शित करता हुआ एक डिज़ाइन दिखाया गया है। (Prarang)
दूसरे चित्र में मोटिफ़ डिज़ाइन (Motif Design) में इस्लामिक लेख दिखाया गया है। (Prarang)
तीसरे चित्र में रामपुर में ईद की नमाज को दिखाया गया है। (Prarang)
अंतिम चित्र में रामपुर की जामा मस्जिद के गुम्बदों को दिखाया गया है। (Prarang)



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