ताड़ पत्र पर लिखी पांडुलिपि का इतिहास बहुत पुराना है और इन पर लिखी सामग्री से इन के समय समाज और सभ्यता का पता चलता है। रामपुर की विश्व प्रसिद्ध रजा लाइब्रेरी में अनेक ताड़ पत्र की पांडुलिपि सुरक्षित हैं। ये बहुत मूल्यवान हैं तथा तेलुगु, सिंघली और तमिल भाषाओं में हैं। इनमें से ज्यादातर धार्मिक प्रकार की है। एक तमिल आलेख में चित्र आकृति और पूजा विधि के नियमों का उल्लेख है। एक पांडुलिपि में कुछ वनस्पतियों के औषधीय गुणों की चर्चा है। संस्कृत भाषा में भी इस तरह की एक पांडुलिपि है। ग्रंथ लिपि में लिखा महत्वपूर्ण महाकाव्य रामायण रजा लाइब्रेरी के संग्रह में है। कन्नड पांडुलिपि में संगीत पर एक निबंध है, दूसरी पांडुलिपि में वैष्णव के पवित्र भजन लिखे हुए हैं। ताड़ पत्र पर लिखी पांडुलिपि का प्रचार प्रसार पूरे विश्व में है।
ताड़ पत्र पांडुलिपि: एक परिचय
सूखे ताड़ पत्र पर लिखने से तैयार होती है ताड़ पत्र पांडुलिपि। 5वीं शताब्दी BC से ताड़ पत्र का लेखन सामग्री के रूप में प्रयोग दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में शुरू हुआ था। सुखाई और धुए से उपचारित पत्तियों पर यह लेखन होता था। सबसे पुरानी ताड़ पत्र पांडुलिपि में से एक संपूर्ण आलेख शैवमत के बारे में संस्कृत में है, जो नेपाल में मिला था और कैंब्रिज विश्वविद्यालय लाइब्रेरी (Cambridge University Library) में संरक्षित है। स्पित्जर पाण्डुलिपि (Spitzer Manuscript) छोटे-छोटे ताड़ पत्रों का संग्रह है, जो चीन की किज़िल गुफाओं (Kizil Caves) से प्राप्त हुई थी। पाण्डुलिपि को आयताकार कटे हुए ताड़ पत्र पर चाकू से बनी कलम से खोदकर लिखा जाता था, इसके बाद उस पर रंग उड़ेला और हटाया जाता था। रंग उन छेदों में भर जाता था। हर पत्ते में एक छेद होता था, जिसमें डोरी डाल कर सारी पत्तियों को एक साथ बांधकर किताब की शक्ल दे दी जाती थी। यह ताड़ पत्र पांडुलिपि कुछ दशकों तक सुरक्षित रहती हैं। इन्हें नमी, कीड़ों, एक आकार में ढालने की कोशिश और टूटने से बचाना पड़ता है। अन्यथा उनकी नए तार पत्रों पर प्रतिलिपि तैयार की जाती है।
ताड़ पत्र पांडुलिपि: इतिहास
पुरानी भारतीय ताड़ पत्र पांडुलिपि ठंडी और सूखी जलवायु में पाई गई, जैसे नेपाल तिब्बत और मध्य एशिया। यह क्षेत्र पहली शताब्दी की पांडुलिपि के मुख्य स्रोत रहे। प्रसिद्ध पांचवी शताब्दी की पांडुलिपि जिसे बोवेर पांडुलिपि कहते हैं, जो चीन तथा तुर्किस्तान में मिली थी और भोजपत्र के ऊपर लिखी थी, जिनका आकार एकदम ताड़ पत्र की तरह था। हिंदू मंदिरों में अक्सर इन पांडुलिपि का पठन-पाठन में प्रयोग होता था और नष्ट होने से पहले इनकी प्रतिलिपि बना ली जाती थी। दक्षिण भारत के मंदिरों और मठों में हिंदू दर्शन, काव्य व्याकरण और दूसरे विषय पर तमाम पांडुलिपि को संरक्षित किया गया है। पुरातात्विक और उत्कीर्णन प्रमाण इशारा करते हैं कि उस दौर में ‘सरस्वती भंडार’ नाम से पुस्तकालय भी होते थे। यह 12वीं शताब्दी के आरंभ के संदर्भ हैं। ताड़ पत्र पांडुलिपि जैन मंदिर और बौद्ध मठ में भी संरक्षित की जाती थी।
रामपुर रजा लाइब्रेरी का संग्रह
रामपुर की रजा लाइब्रेरी में अनेक भाषा की दुर्लभ पांडुलिपियों का संग्रह है।
अरबी भाषा: अरबी हस्तलिपि की कुछ प्राचीनतम पांडुलिपि यहां उपलब्ध हैं, जिनमें सातवीं शताब्दी AD की कुरान शामिल है। यह चर्म पत्र पर लिखी है। इस लाइब्रेरी का अरबी में 'राज़ी का शरहल काफिया' भी एक विलक्षण संग्रह है।
फारसी भाषा:
'ज़खीराई ख़्वारिज़्म' शाही प्राचीन आलेख है, जो दवाओं से संबंधित है। मंगोल जनजाति के इतिहास पर प्राचीनतम चित्रात्मक फारसी शोध जमीउल तवारीख़, यहां की दुर्लभ पांडुलिपि है जिसे राशिद उद्दीन फजलुल्लाह ने लिखा था। इसमें बहुत सारे अद्भुत चित्र हैं, जो मंगोल के तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक पक्ष को दिखाते हैं। यहां पर प्राचीन चीनी और मध्य एशिया की ऐसी पेंटिंग हैं, जो पर्शिया (Persia) की हैं और रात्रि स्कूल से प्रभावित हैं।
रामपुर रजा लाइब्रेरी में हिंदी, संस्कृत, उर्दू, तुर्किश, ताड़ पत्र, पश्तो की दुर्लभ पांडुलिपि का दुर्लभ संग्रह है और सारी जानकारी बहुत व्यवस्थित रूप से शोध के लिए उपलब्ध है।
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