पलाश के वृक्षों और फूलों को देखते ही मन मंत्रमुग्ध हो जाता है। इसके कई नाम हैं - पलाश, ढाक या टेसू। कविताओं में इसकी सुंदरता का खूब बखान किया गया है। गीत गोविंदम में जयदेव ने इन फूलों की तुलना कामदेव के नाखूनों से की है, जिनसे वे प्रेमियों के दिलों को घायल करते हैं। रवींद्रनाथ टैगोर पलाश के फूलों के रंग पर इतने मोहित थे कि उन्हें 'जीवन के उत्सव' का नाम दिया। उनकी बंगला में कविता है- ‘रंग हाषी राशि राशि शोके पलाशे’। रुडयार्ड किपलिंग (Rudyard Kipling) की ‘प्लेन टेल्स फ्रॉम हिल्स' (Plain Tales From Hills) में भी इसका वर्णन है कि गर्मियां शुरू होते ही कैसे जंगल में प्रकृति का हंगामा मच जाता है। उनकी मशहूर कृति ‘ जंगल बुक’ में उनका प्रमुख चरित्र बार-बार यह वाक्य दोहराता है- ‘ लाल फूल जब खिलेगा, तब हमें शिकार मिलेगा’। जीवन साहित्य में अत्यंत लोकप्रिय इन पलाश के वृक्षों को झारखंड और उत्तर प्रदेश में राज्य स्तर का दर्जा मिला है। पलाश के फूल को उत्तर प्रदेश में राज्य स्तर का फूल माना गया है और रामपुर में यह बहुतायत से होता है।
महत्व
पलाश एक अपरिहार्य वृक्ष है। आदिवासी इसके फूलों और फलों का प्रयोग करते थे। इस पौधे का उपयोग आयुर्वेद, प्रसिद्ध यूनानी दवाइयों और अनेक बीमारियों के उपचार के लिए होता है। पौधे के लगभग सभी हिस्से- जड़ें, पत्तियां, फल, तने की छाल, फूल, गोंद, छोटी टहनियाँ आदि दवाइयों, भोजन, रेशों के अलावा कई और कामों में इस्तेमाल होते हैं। पलाश को रंगाई, चमड़ा पकाने, चारा आदि में भी प्रयोग किया जाता है। इस पौधे के तकरीबन 45 औषधीय गुणों में से आधे गुण वैज्ञानिक तौर पर सही पाए गए हैं। बाकी पर शोध चल रहा है।
प्रजाति
पलाश भारतीय उपमहाद्वीप के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय इलाकों में पाया जाता है। इसके प्रचलित नाम है- फ्लेम ऑफ़ दी फारेस्ट (Flame of The Forest) और बास्टर्ड टीक (Bastard Teak)। यह एक छोटे आकार का, सुखी जलवायु में पलने और झड़ने वाला पेड़ होता है। इसकी बढ़वार बहुत जल्द होती है। अपने फूलों की सुंदरता और आतिशी रंग-रूप के कारण यह देखने में तो बहुत आकर्षक होते ही हैं, अनेक कवियों ने विभिन्न भाषाओं में इन पर रचनाएं भी लिखी हैं।
इतिहास
ऐतिहासिक रूप से ढाक के जंगल जो गंगा और यमुना नदियों के दोआब क्षेत्र में फैले होते थे, 19वीं शताब्दी की शुरुआत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) ने किसानों पर कर बढ़ा दिए और खेती के लिए जंगल कटवा दिए।
पत्रावली प्लेट
भारत के बहुत से ग्रामीण क्षेत्रों में पलाश की पत्तियों से प्लेटें बनाकर उनपर भोजन परोसा जाता है। एक शताब्दी पहले तक एक प्रथा थी कि होने वाले दामाद की परीक्षा पत्रावली प्लेट और कटोरी बनाने में दक्षता देख कर जाँची जाती थी। जिसमें दामाद के होने वाले ससुर परीक्षक होते थे।
साहित्य और संस्कृति
हिंदी और पंजाबी साहित्य में पलाश के फूलों की प्रशंसा में कई रचनाएं लिखी गई। बंगला में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने बहुत सुंदर गीत लिखा। यजुर्वेद के पहले श्लोक में पलाश वृक्ष का उल्लेख है। पलाश वसंतोत्सव का प्रमुख पुष्प है। इसके नाम पर ही पलासी शहर का नामकरण हुआ, जहां ऐतिहासिक युद्ध लड़ा गया। झारखंड में पलाश लोक परंपरा से जुड़ा है। बहुत से लोग साहित्य में पलाश की 'जंगल की आग' के रूप में व्याख्या की गई है। बौद्ध मत में ऐसा माना जाता है कि पलाश के पेड़ का प्रयोग भगवान बुद्ध ने प्रबोधन (Enlightenment) प्राप्त करने के लिए किया। इस पेड़ को 'सिंहला' भी कहते हैं। शिवरात्रि पर पलाश के फूल भगवान शिव को अर्पित किए जाते हैं।
90 के दशक में दूरदर्शन के प्रसिद्ध हिंदी धारावाहिक- ‘पचपन खंभे लाल दीवारें’ का एक संवाद बहुत लोकप्रिय हुआ था-’ जब जब मेरे घर आना तुम, फूल पलाश के ले आना तुम!’
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