रामपुर शहर अपनी शानो शौकत के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है और यहाँ पर बनी कितनी ही चीजें ऐसी हैं, जो दुनिया भर में अपनी एक अलग ही पहचान बनाए हुए है। रामपुर एक ऐतिहासिक शहर है तथा यहाँ के नवाबों ने इसे बड़े नाजों से सजाया था। एक समय ऐसा था जब पूरे देश की कुछ गिनी चुनी महत्वपूर्ण रियासतों में से एक रामपुर भी था। यहाँ के नवाब कल्ब अली खान ने इंग्लैंड (England) के राजा एडवर्ड सप्तम (Edward VII) को एक विशेष रूप से निर्मित चाक़ू (पेशकब्ज) भेंट स्वरुप दिया था।
रामपुर अपने चाकुओं के लिए आज भी पूरे विश्व में जाना जाता है। नवाब कल्ब अली खान ने यह चाक़ू राजा एडवर्ड को तब दिया था, जब वे भारत आये हुए थे। यह चाक़ू आज भी इंग्लैंड (England) की रानी के संग्रह में रखा हुआ है। पेशकब्ज एक अत्यंत ही शानदार प्रकार का खंजर होता है, जो कि एकल धार से जुड़ा हुआ होता है। पेशकब्ज चाक़ू मुख्य रूप से भारतीय-फारसी (Indo-Persian) तकनीकी का मिश्रण होता है। यह शब्द पिश-गजब या काबिज जो की फ़ारसी शब्द है से प्रेरित है। यह चाकू मूल रूप से साफविद फारस (Safavid Persia) के द्वारा बनाया गया था तथा भारत में यह मुग़ल काल के दौरान व्यापक तौर से फ़ैल गया था। ये चाक़ू एक धार के मजबूत ब्लेड (Blade) के बनाये जाते हैं, जिसमे मध्य में टी (T) आकृति या रीढ़ की तरह होता है, जो कि इस चाक़ू को और भी मजबूती देने का कार्य करता है। यह चाक़ू कवच आदि को भेदने के लिए बनाया गया था, इस चाक़ू के नीचे के भाग पर एक हुक नुमा आकृति बनायी जाती है। इस चाक़ू की नोक अत्यंत ही नुकीली होती है, जो कि किसी भी प्रकार के कवच में आराम से छेद करने में सफल हो जाती है। पेशकब्ज मुख्य रूप से 28 से 33 सेंटीमीटर (Centimeter) की लम्बाई का होता है तथा इसकी सम्पूर्ण लम्बाई करीब 40 से 46 सेंटी मीटर के मध्य की होती है। इस चाक़ू में विभिन्न प्रकार के हैंडल(Handle) लगाए जाते हैं, जो की अत्यंत ही दुर्लभ होते हैं जैसे कि, ‘हाथी के दांत, अगेट (Agate), जैस्पर (Jasper), क्रिस्टल (Crystal) आदि’। कई स्थानों पर इस चाक़ू के हैंडल पर लकड़ी और चमड़े का भी प्रयोग हमें देखने को मिलता है। भारत में अंग्रेजों के शासन के दौरान उन्होंने इसे अफ़ग़ान (Afghan) चाकू या खैबर चाक़ू के नाम से बुलाया है, भारत में इस चाक़ू का निर्माण भीरा में किया जाता था जो की अब पकिस्तान का हिस्सा है। जो चाक़ू राजा एडवर्ड सप्तम को भेंट की गयी थी उसपर सोने का कार्य स्टील (Steel) पर कोफ्तारी तकनीकी द्वारा किया गया था। इस चाकू पर सोना जड़ा हुआ था तथा इसपर खसखस के पुष्पों की आकृति दर्शाई गयी थी। इस चाक़ू का हैंडल, जो कि लकड़ी का बना हुआ था पर सोना चढ़ाया गया था तथा इसपर मोती मानिक और पन्ना आदि लगाया गया था। कोफ्तारी की तकनीक भारत में 16वीं शताब्दी में मुगलों द्वारा फारस से लायी गयी थी, जो कि बाद में राजस्थान में अत्यंत ही वृहत स्तर पर विकसित हुई। राजस्थान में यह तकनीक सिकलीगर, जो कि पारंपरिक हथियार बनाने वाले थे, राजस्थान राज्य के संरक्षण में आकर और भी वृहत स्तर पर फैलाव किये। कोफ्तारी का कार्य अत्यंत ही कठिन होता है, जिसमे आधार धातु को खूब गर्म किया जाता है तथा इसे क्रासहोल्ड तरीके से खुरचा जाता है, फिर सावधानी पूर्वक इसमें अन्य धातु के तारों को दबाया जाता है। उपरोक्त दी गयी तकनीकी के आधार पर यह कार्य किया जाता है। यह चाक़ू रामपुर के नवाब कल्ब अली खान द्वारा राजा एडवर्ड को 1875-76 में भेंट स्वरुप दिया गया था। यहाँ के नवाब कल्ब अली खान का भी पूर्ण चित्र इसी रॉयल कलेक्शन ट्रस्ट (Royal Collection trust) में प्रदर्शित किया गया है।© - , graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.