कला और जीव ये दोनों ऐसे अभिन्न अंग हैं जिसके बिना पूर्णता का अभाव ही दिखाई देता है। ऐतिहासिक रूप से मनुष्य पंछियों के प्रति आकर्षित रहा है जिसके प्रमाण हमको भिन्न भिन्न स्थानों पर देखने को मिलते हैं। कलाकारों ने पंछियों से ख़ास प्रेरणा ली है और यह प्रेरणा हमें जगह जगह पर दिखाई देती है। भारतीय धर्म ग्रंथों की बात की जाए तो इसमें भी पंछियों को बेहतर तरीके से दिखाया गया है। भारतीय देवों की सवारी के रूप में भी पंछियों को दिखाया गया है जैसे सरस्वती को हंश, कार्तिकेय को मोर, विष्णु को गरुण आदि के साथ। आधे पंछी और आधे मनुष्य के रूप में भी पंछियों को कलाकारों ने दिखाने की कोशिश भी की है।
पंछियों के अंकन (चित्र) की बात की जाए तो इसका इतिहास करीब 10 से 15 हजार ईसा पूर्व के करीब का है, फ्रांस (France) के लास्काक्स (Lascaux) की गुफाओं की दीवारों में से एक दीवार पर पंछियों का चित्रण किया गया है। भारत में पहाड़गढ़ मुरैना के सर्वेक्षण में भी दो मोर की जोड़ियों का चित्र मिलता है जो कि करीब 5000 वर्ष पुराना प्रतीत होता है इस चित्र में दो मोर सांप का शिकार करते हुए दिखाए गए हैं। प्राचीन मिश्र के लोग पंछियों को पंखो वाली आत्मा के रूप में देखते थे, तथा वे उनका विवरण देवताओं के रूप में भी करते थे।
भारतीय धर्म ग्रन्थ में एक प्रमुख महाकाव्य रामायण जिसमें जटायु और सम्पाती नामक गिद्धों का विवरण प्रस्तुत किया गया है। जटायु को रामायण में दिव्य पंछी के रूप में दिखाया गया है। प्राचीन कला में पंछियों का एक बेहद महत्वपूर्ण योगदान रहा है और मूर्तियों और चित्रों में किये गए विभिन्न प्रभावी किरदार के कारण भी हमें इनसे जुडी हुयी विभिन्न जानकारियाँ प्राप्त होती हैं। मिश्र में एक देवता होरस का सर एक बाज पंछी का सर दिखाया गया है। गीजा के राजा चेफ्रेन की मूर्ती को जिसे की एक सिंहासन पर बैठे दिखाया जाता है के साथ भी बाज पंछी जो कि होरस देवता का प्रतीक है को बैठे हुए दिखाया जाता है।
अमेरिका की बात करें तो इसके साथ बाल्ड प्रजाति के बाज को दिखाया जाता है। जब भी शान्ति बात की जाती है तो सफ़ेद कबूतर को इसके रूप में प्रस्तुत किया जाता है। ऐसी कितनी ही पांडुलिपियाँ आदि हैं जिनमे पंछियों को एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्तर पर दिखाया गया है। मध्य काल के दौरान एक अत्यंत ही वृहत स्तर पर लघु चित्रों का निर्माण किया जाना शुरू हुआ था जिसमे हमें पंछियों का विवरण बड़े पैमाने पर देखने को मिलता है।
दुनिया भर के कितने ही संग्रहालय में पंछियों की कला के सम्बन्ध में अनेकों ही प्रदर्शनियां लगाई हैं इन्हीं में से एक प्रदर्शनी द वंडर ऑफ़ बर्ड्स भी है जिसे की नोर्विच कैसल म्यूजियम एंड आर्ट गैलरी (The Wonder of birds, Norwich Castle Museum and Art Gallery) में लगाई गयी थी। इस प्रदर्शनी में बेबीलोन (Babylon) के बतख से लेकर नोर्विच (Norwich) शहर के कैनरीज (Canaries) तक को दिखाया गया था। भारतीय कला में पंछियों के चित्रण को मुग़ल काल में बड़े स्तर पर लघु चित्रों में दिखाया गया था। इस समय की कला में पशुओं के चित्रों में मनुष्यों के चित्रण को भी प्रदर्शित किया गया है एक चित्र में बाघ के शरीर के अन्दर स्त्री और पुरुष को काम करते हुए भी प्रदर्शित किया गया है।
भारत के चन्दयामंगलम गाँव जो कि कोलम जिला केरल में स्थित है, में दुनिया की पंछी की सबसे बड़ी मूर्ती बनायी गयी है जो कि जटायु की है। यह मूर्ती वर्तमान समय में पंछियों और कला के संयोजन का एक महत्वपूर्ण भाग माना जाता है। प्राचीन भारतीय कला में इन पंछियों का एक अनुपम स्थान रहा है तथा प्रकृति से सम्बंधित होने के कारण ही ये पूरे विश्व भर की कलाओं में वृहत स्तर पर बनाए गए थे।
चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में विष्णु को उनके वाहन गरुण पर विराजमान दिखाया गया है। (Wallpaperflare)
2. दूसरे चित्र में कार्तिकेय, सरस्वती और विष्णु को उनके तथाकथित वाहन पर दिखाया गया है। (Wikimedia)
3. तीसरे चित्र में आत्मा के प्रतिरूप में पक्षी मिश्र की मान्यता अंकित की गयी है। (Wikipedia)
4. चौथे चित्र में ग़िज़ा के राजा चेफ़्रेन की बाज के साथ वाली प्रतिमा है। (Pexels)
5. पांचवे चित्र में लघुचित्रों में अंकित पक्षी दिखाए गए हैं। (Pinterest)
6. अंतिम चित्र में केरल के जटायु नेचर पार्क का चित्र है। (Youtube)
सन्दर्भ:
1. https://web.stanford.edu/group/stanfordbirds/text/essays/Bird_Art.html
2. https://bit.ly/3ec7YRJ
3. https://bit.ly/37sZyTl
4. https://www.exoticindiaart.com/article/nature/
5. https://www.youtube.com/watch?v=rd0Y275ZIRc
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