भारतीय चंदन का पेड़ (वैज्ञानिक नाम सेंटालम अल्बम) अपने सौन्दर्य-प्रसाधन और चिकित्सीय मूल्य के कारण विश्वभर में प्रसिद्ध है। जिस वजह से इसकी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारी मांग है और इसकी बहुमूल्य लकड़ी की कीमत 10,000 रुपये किलो से अधिक है। लेकिन 2002 तक निजी रूप से चंदन उगाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। वहीं आज निजी रूप से चंदन के पेड़ों को उगाया जा सकता है, लेकिन इसकी लकड़ी को काटना और काटकर इस्तेमाल करना या इसे खुले बाजार में बेचना अवैध है। साथ ही निजी रूप से उगाए गए चंदन के पेड़ को काटने से पहले राज्य के वन विभाग से अनुमति लेनी होती है। इस तरह के प्रतिबंध ज्यादातर लोगों को चंदन के पेड़ उगाने से रोकते हैं। केवल इतना नहीं चंदन के पेड़ दुर्लभ होने के कारण, अवांछित ध्यान को आकर्षित करते हैं, जिस कारण इनकी लकड़ियों के चोरी होने और कई अन्य प्रकार के सुरक्षा खतरा बना रहता है। इन प्रतिबंधों के कारण, चंदन के 90 प्रतिशत पेड़ लुप्त हो गए हैं और जल्द ही, ये पेड़ लुप्तप्राय हो सकते हैं, जबकि अन्य देशों में इनको काफी अधिक मात्रा में उगाया जा रहा है और इनका स्वतंत्र रूप से निर्यात किया जा रहा है। भारत में यदि चंदन के पेड़ों की अप्रतिबंधित कटाई और व्यापक खेती को बढ़ावा दिया जाएं, तो चंदन की तीव्र मांग को पूरा किया जा सकता है और इसके आसपास के सुरक्षा खतरे को भी नकार दिया जा सकता है।
हालांकि, कुछ राज्यों द्वारा इन पेड़ों को उगाने पर प्रतिबंध हटा दिया गया है। ज्वालामुखी के रेंज फॉरेस्ट ऑफिसर के अनुसार, "राज्य में चंदन के पेड़ों के रोपण पर कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं है, लेकिन सरकार से अनुमति मांगने के बाद ही इन पेड़ों को काटा जा सकता है।" सरकार द्वारा राज्य में चंदन के पेड़ों को तस्करों से बचाने और एक तंत्र विकसित करने के लिए विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं, ताकि इसके व्यापार से न केवल राज्य की अर्थव्यवस्था को लाभ हो, बल्कि चंदन उत्पादकों को भी फायदा मिले। वहीं आधिकारिक अभिलेख के मुताबिक 2011 के अंत तक ज्वालामुखी मंदिर के पास एक वनभूमि पर 3,000 पूरी तरह से विकसित चंदन के पेड़ थे और दिसंबर 2018 तक इनकी संख्या 3,998 हो गई थी, जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इनकी संख्या में वृद्धि हुई है। भारत में सदियों से इस्तेमाल किए जाने वाला चंदन का पेड़ एक सदाबहार पेड़ है। यह 13 से 16 मीटर की ऊँचाई तक पहुंचते हैं और 100 से 200 सेंटीमीटर तक का घेरा होता है। एक प्राकृतिक रूप से उगाया गया चंदन का पेड़ कटाई के लिए तैयार होने में 30 साल लेता है। हालांकि, जैविक तरीके से सघन खेती 10 से 15 वर्षों में त्वरित परिणाम देती है। यह पेड़ दक्षिण भारतीय मिट्टी में बहुत अच्छी तरह से बढ़ता है, खासकर कर्नाटक और तमिलनाडु में और इसके लिए बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है। इस पेड़ में फलन पूरे वर्ष होता है और इसके छोटे फल तोते और कोयल जैसे पक्षियों को आकर्षित करते हैं। जब अंततः लकड़ी काटने के लिए पेड़ों को काटा जाता हैं, तो अपने जीवनकाल के दौरान, वे किसी भी अन्य पेड़ की तरह, कार्बन को लेता है और ऑक्सीजन को उत्पन्न करता है।
चंदन और इसके आवश्यक तेल का व्यावसायिक मूल्य बहुत अधिक है, क्योंकि इसका उपयोग सौन्दर्य-प्रसाधन उद्योग, दवा उद्योग, सुगंध चिकित्सा, साबुन उद्योग और इत्र में किया जाता है। विश्व में चंदन की कई किस्में उपलब्ध हैं, लेकिन भारतीय और ऑस्ट्रेलियाई चंदन बहुत प्रसिद्ध हैं और बाजार में उत्कृष्ट वाणिज्यिक मूल्य रखते हैं। चंदन की खेती पर लाभ बहुत अधिक होता है।
चंदन सिर्फ आर्थिक मूल्य में उत्कृष्ट नहीं है, बल्कि विभिन्न धर्मों में चंदन का सांस्कृतिक महत्व भी देखने को मिलता है।
हिंदू धर्म :- हिंदू आयुर्वेद में भारतीय चंदन बहुत पवित्र माना जाता है। इसकी लकड़ी का उपयोग भगवान शिव की पूजा के लिए किया जाता है, और यह माना जाता है कि देवी लक्ष्मी चंदन के पेड़ में रहती थी। वृक्ष की लकड़ी को एक पेस्ट (चंदन की लकड़ी को पीसकर पेस्ट तैयार किया जाता है) के रूप में उपयोग किया जाता है, और यह पेस्ट (paste) अनुष्ठानों और समारोहों का एक अभिन्न अंग है। इस पेस्ट को धार्मिक बर्तन बनाने के लिए, देवताओं के प्रतीक को सजाने के लिए और ध्यान और प्रार्थना के दौरान मन को शांत करने के लिए उपयोग किया जाता है। हिंदू धर्म और आयुर्वेद में, चंदन को परमात्मा के करीब ले जाने का एक स्रोत माना जाता है। इस प्रकार, यह हिंदू और वैदिक समाजों में सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाले पवित्र तत्वों में से एक है।
जैन धर्म :- चंदन का उपयोग जैन धर्म की दैनिक प्रथाओं का अभिन्न अंग है। केसर मिला हुआ चंदन का पेस्ट तीर्थंकर जैन देवताओं की पूजा करने के लिए उपयोग किया जाता है। चंदन चूर्ण को जैन साधुओं और साध्वियों द्वारा उनके शिष्यों और अनुयायियों पर आशीर्वाद के रूप में बरसाया जाता है। जैन दाह संस्कार समारोहों के दौरान शव को चंदन की माला पहनाई जाती है।
बौद्ध धर्म :- चंदन का उल्लेख पाली कैनन (Pāli Canon) के विभिन्न सूक्तों में मिलता है। कुछ बौद्ध परंपराओं में, चंदन को पद्म समूह का माना जाता है और इसका श्रेय अमिताभ बुद्ध को जाता है। ऐसा माना जाता है कि चंदन की खुशबू कुछ लोगों को उनकी इच्छाओं को बदलने और ध्यान लगाते समय सतर्कता बनाए रखने में मदद करती है। यह बुद्ध और गुरु को धूप अर्पित करते समय उपयोग की जाने वाली सबसे लोकप्रिय सुगंधों में से एक है।
सूफीवाद :- सूफी परंपरा में, शिष्यों द्वारा भक्ति के निशान के रूप में चंदन के पेस्ट को सूफी की कब्र पर लगाया जाता है। यह भारतीय उपमहाद्वीप शिष्यों में विशेष रूप से प्रचलित है। तमिल संस्कृति में धार्मिक पहचान के बावजूद, चंदन के पेस्ट या पाउडर को भक्ति और सम्मान के निशान के रूप में सूफियों की कब्र पर लगाया जाता है।
पूर्वी एशियाई धर्म :- पूर्वी एशिया में, चंदन के साथ अगरवुड (agarwood) पूजा और विभिन्न समारोहों में चीनी, कोरियाई और जापानी द्वारा सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली धूप सामग्री है। कोरियाई शमनवाद में, चंदन को जीवन का पेड़ माना जाता है।
पारसी धर्म :- पारसी लोग धार्मिक समारोहों के दौरान अग्नि मंदिर में आग को जलाए रखने के लिए चंदन की टहनी चढ़ाते हैं।
जैसा की हम जान चुके हैं कि चंदन की लकड़ी का आर्थिक और धार्मिक दोनों में ही उच्च महत्व बना हुआ है, वहीं सदियों से अत्यधिक मूल्यवान इसकी लकड़ी और तेल दोनों एक विशिष्ट सुगंध का उत्पादन करते हैं। नतीजतन, इन धीमी गति से बढ़ने वाले पेड़ों की प्रजातियों को पिछली शताब्दियों में अतिवृष्टि का सामना करना पड़ा है। इसलिए इनके महत्त्वपूर्ण गुणों का लाभ उठाने के लिये यह आवश्यक है कि हम इनकी संख्या को बहुत अधिक बढ़ाएं तथा इनका अत्यधिक शोषण करने से बचें।
चित्र (सन्दर्भ):
1. मुख्य चित्र में पार्श्व में चन्दन का पेड़ और मुख्यतः चन्दन की लकड़ी और पाऊडर दिखाया गया है। (Prarang)
2. दूसरे चित्र में लाल चन्दन की लकड़ी दिख रही हैं। (Pickpx)
3. तीसरे चित्र में चन्दन की लकड़ी पर सांप दिख रहा है। (Youtube)
4. चौथे चित्र में चन्दन का एसेंस आयल है। (Pexels)
5. अंतिम चित्र में चन्दन की धुप और पाउडर दिखाया गया यही। (Prarang)
संदर्भ :-
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Sandalwood
2. https://bit.ly/2AO4CW9
3. https://bit.ly/36jPprx
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