इतिहास में हमने ऐसे कई संत महापुरूषों के नाम सुने हैं, जो विशेष रूप से अपनी भक्ति के लिए जाने जाते हैं तथा जिन्होंने दुनिया में भक्ति का प्रसार किया। भक्ति एक संस्कृत शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘आसक्ति, सहभागिता, प्रियता, श्रद्धा, विश्वास, प्रेम, समर्पण पूजा, पवित्रता आदि है। इस शब्द का इस्तेमाल मूल रूप से हिंदू धर्म में किया गया, जिसमें एक भक्त के अपने भगवान या जिस पर वह विश्वास करता है, के प्रति उसके प्रेम और समर्पण को दर्शाया गया। श्वेताश्वतर (Shvetashvatara) उपनिषद जैसे प्राचीन ग्रंथों में, इस शब्द का अर्थ है किसी भी प्रयास के लिए भागीदारी, भक्ति और प्रेम। भगवद्गीता के अनुसार भक्ति मार्ग आध्यात्मिकता या मोक्ष के संभावित मार्गों में से एक है।
भारतीय धर्मों में भक्ति "भावनात्मक भक्तिवाद" है, जोकि विशेष रूप से भगवान या आध्यात्मिक विचारों के लिए है। यह शब्द एक आंदोलन को भी संदर्भित करता है, जो अल्वरों और नारायणों ने पहली सहस्राब्दी ई.पू. भगवान विष्णु (वैष्णववाद), ब्रह्मा (ब्राह्मणवाद), शिव (शैववाद) और देवी (शक्तिवाद) के प्रति अपने प्रेम और समर्पण के लिए शुरू किया। विभिन्न हिंदू परंपराओं में 12 वीं शताब्दी के बाद भारत में इसका तेजी से विकास हुआ, जोकि संभवतः भारत में इस्लाम के आगमन के परिणामस्वरूप था। भक्ति विचारों ने भारत में कई लोकप्रिय ग्रंथों भागवत पुराण, कृष्ण-संबंधित उद्धरणों और संत-कवियों को प्रेरित किया है, जो हिंदू धर्म में भक्ति आंदोलन से जुड़ा है। इस शब्द का महत्त्व हिन्दू धर्म के अलावा भारत में प्रचलित अन्य धर्मों में भी है जिसने आधुनिक युग में ईसाई धर्म और हिंदू धर्म के बीच संबंधों को प्रभावित किया है।
निर्गुणी भक्ति (बिना गुणों के परमात्मा की भक्ति या परमात्मा के अप्रत्यक्ष रूप की भक्ति) सिख धर्म में पाई जाती है, साथ ही हिंदू धर्म में भी। भारत के बाहर, कुछ दक्षिण पूर्व एशियाई और पूर्वी एशियाई बौद्ध परंपराओं में भावनात्मक भक्ति पाई जाती है। भक्ति आंदोलन भक्ति का तीव्र विकास था, जो पहली बार पहली सहस्राब्दी ई.पू. के बाद के हिस्से में, दक्षिणी भारत में तमिलनाडु से शैव नारायणों तथा वैष्णव अल्वरों के साथ शुरू हुआ। उनके विचारों और प्रथाओं ने 12 वीं 18 वीं शताब्दी ई.पू. पूरे भारत में भक्ति कविता और भक्ति को प्रेरित किया। अल्वर (भगवान में डूबे हुए) वैष्णव कवि-संत थे जो विष्णु की स्तुति गाते हुए मंदिर से मंदिर भटकते थे। उन्होंने मंदिर स्थल स्थापित किए और कई लोगों को वैष्णव धर्म में परिवर्तित किया। अल्वर की तरह शैव नारायण के कवि भी प्रभावशाली थे।
तिरुमुरई, तिरसठ (sixty-three) नयनार कवियों द्वारा भजनों का संकलन है जो अभी भी दक्षिण भारत में बहुत महत्व रखता है। कवियों की जीवन शैली ने मंदिर और तीर्थ स्थलों को बनाने और शिव भक्ति फैलाने में मदद की। नवरत्नमलिका (नौ रत्नों की माला), में भक्ति के नौ रूप सूचीबद्ध हैं, जिनमें श्रवण (प्राचीन ग्रंथों को सुनना), कीर्तन (प्रार्थना करना), स्मरण (प्राचीन ग्रंथों में उपदेशों को याद करना), पद-सेवा (पैरों की सेवा), अर्चना (पूजा करना), नमस्कार या वंदना (परमात्मा को प्रणाम करना), दास्य (परमात्मा की सेवा), साख्यत्व (दिव्य रूप से दोस्ती के साथ) और अत्म-निवेदना (परमात्मा के सामने आत्म-समर्पण) शामिल हैं। भागवत पुराण में भी भक्ति के नौ समान रूप बताए गए हैं। भक्ति के समान भक्तिवाद पूरे मानव इतिहास में विश्व में धार्मिक गतिविधि का एक सामान्य रूप रहा है, जो ईसाई धर्म, इस्लाम, बौद्ध धर्म और यहूदी धर्म इत्यादि में पाया जाता है।
इतिहास में ऐसे कई भक्तों ने जन्म लिया जिन्हें विशेष रूप से उनकी भक्ति के लिए पहचाना गया। जब भी भक्ति की बात आती है तो भक्त हनुमान का भी अक्सर जिक्र होता है जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन भगवान राम और सीता की भक्ति में व्यतीत किया। उनके जीवन से जुड़े ऐसे कई प्रसंग या किस्से मौजूद हैं जो आज भी सामान्य जनमानस को प्रेरित करते हैं तथा उनका रूझान भक्ति की ओर बढ़ाते हैं। मध्यकाल में हनुमान और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गए और उन्हें राम के आदर्श भक्त के रूप में चित्रित किया गया। हनुमान को राम और सीता का अनुकरणीय भक्त माना गया है। भागवत पुराण, भक्त माला, आनंद रामायण और रामचरितमानस आदि ऐसे हिंदू ग्रंथ हैं, जो उन्हें प्रतिभाशाली, मजबूत, बहादुर और आध्यात्मिक रूप से राम के प्रति समर्पित भक्त के रूप में प्रस्तुत करते हैं। राम की रामायण और रामचरितमानस जैसी राम कथाएँ आदर्श, गुणी और दयालु पुरुष (राम) तथा स्त्री (सीता) की हिंदू धार्मिक अवधारणा को प्रस्तुत करती हैं, जिसमें भगवान हनुमान की विशेषताओं के संदर्भ भी मिलते हैं। निश्चित रूप से, हम भगवान हनुमान के भक्ति कार्यों का अनुकरण नहीं कर सकते और इसलिए वे अत्यधिक विशिष्ट हैं। लेकिन ऐसे कई उदाहरण हैं जिनका अनुसरण करते हुए हम प्रभु की सेवा में उनकी प्रतिभा और क्षमता को समझ सकते हैं। जैसे कि अपनी क्षमता को पूर्ण रूप से प्रभु की सेवा में उपयोग करना। हनुमान जी प्रतिभा और शक्ति के धनी थे तथा इन गुणों का पूरा उपयोग उन्होंने प्रभु राम की सेवा में किया। वे सीता हरण के बाद रावण को चेतावनी देने हजारों मील की दूरी पर समुद्र के पार पहुंचे तथा रावण की अस्सी हज़ार सैनिकों से भी अधिक की सेना का सामना किया। लंका के पूरे दानव शहर में आग लगा दी। समुद्र के पार लंका तक पहुंचने के लिए भी उन्होंने पुल के निर्माण में पहल की, उसका निर्देशन किया और उसमें भाग लिया। युद्ध के दौरान भी वे भगवान राम और लक्ष्मण को अपनी व्यापक, मजबूत पीठ पर ले गए ताकि वे रावण और रावण के घातक पुत्र इंद्रजीत के साथ युद्ध कर सकें। इसलिए शास्त्रों में हनुमान को भगवान के महत्वपूर्ण वाहक के रूप में वर्णित किया गया है। जब इंद्रजीत ने लक्ष्मण को गंभीर रूप से घायल कर दिया तब भी वे हिमालय में गंधमादन पर्वत की ओर पहुंचे तथा जडी-बूटी न पहचानने पर पूरा पर्वत ही उठा लाये। ऐसा करने के लिए, हनुमान को रक्षात्मक सेनाओं की एक सेना को भी पराजित करना पड़ा।
इन सभी अविश्वसनीय करतबों के बारे में पढ़कर, हम अपर्याप्त महसूस कर सकते हैं। हमारे अल्प प्रयास उनकी तुलना में कुछ भी नहीं हैं किन्तु भक्त हनुमान के जीवन की एक कहानी हमें फिर से प्रेरित और उत्साहित कर सकती है। जब हनुमान समुद्र में पुल बनाने के लिए विशाल पर्वत की चोटी काट रहे थे, तो उन्होंने एक छोटे मकड़ी को देखा जोकि भगवान राम की सहायता के लिए अपने पैरों के साथ चोटी के छोटे कणों को पानी में डालती है। वे मकड़ी को खुद के गंभीर काम से अलग कर रहे थे किन्तु तभी भगवान राम ने उन्हें बुलाया और कहा कि - अपना घमंड छोड़ दो! मकड़ी की यह भक्ति सेवा मेरे लिए उतनी ही संतोषजनक है जितनी की आपकी। आप अपनी क्षमता के अनुसार मेरी सेवा कर रहे हैं, और वह अपनी क्षमता के अनुसार मेरी सेवा कर रही है। यहाँ दो शिक्षाएं उभर कर आती हैं, पहली यह कि हम जो भी पूरे दिल और आत्मा के साथ अपनी पूरी क्षमता से प्रभु को अर्पित करते हैं तथा, प्रभु के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ करने का प्रयास करते हैं, तो वह प्रभु सहज में ही स्वीकार कर लेते हैं, दूसरा यह कि हमें कभी भी किसी अन्य की भक्ति सेवा में बाधा नहीं डालनी चाहिए या अवहेलना नहीं करनी चाहिए, चाहे वह हमें कितनी भी छोटी या महत्वहीन लगे। भक्त हनुमान के जीवन से हम अन्य कुछ सीख सकते हैं तो वह है दूसरों की देखभाल करना, उनकी सादगी, निस्वार्थ सेवा और भगवान के पवित्र नाम का जप। जब हम स्वयं को प्रभु से छिपाते हैं, तो वह स्वयं को हमसे छिपाता है। इसलिए हनुमान के समान भगवान राम के प्रति प्रेम और समर्पण से ही परमात्मा की भक्ति की जा सकती है।
चित्र (सन्दर्भ):
1. मुख्य चित्र में हनुमान की झांकी का मनोरम चित्र है। (Pexels)
2. दूसरे चित्र में हनुमान जी के चित्र में उनके शरीर पर उनके जीवन के विभिन्न दृश्यों को प्रदर्शित किया है। (Pixelsr)
3. तीसरे चित्र में हनुमान जी के मंदिर में स्थापित दुर्लभ मूर्ति के दिव्य दर्शन हैं। (Peakpx)
4. चौथे चित्र में कुषाण काल के दौरान बनायीं गयी भित्ति में हनुमान जी के संजीवनी प्रसंग को दिखाया गया है। (Wikimedia)
5. पांचवे चित्र में भगवान् हनुमान को अज्ञात स्वर्ण मुकुट के ऊपर दिखाया गया है। (Unsplash)
6. अंतिम चित्र में हनुमान के प्रति लोगों की आस्था का प्रतबिम्ब है। (Pexels)
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Bhakti
2. https://bit.ly/2WMtuF4
3. https://bit.ly/35PCu06
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