रामपुर की आबादी का एक बड़ा हिस्सा जर्दोजी, रेशम की कारीगरी के रूप में कपड़ा उद्योग में कार्यरत है और जैसा कि ऐतिहासिक रज़ा कपड़ा मिल से स्पष्ट है कि शहर के बहुत से लोग कपड़े निर्माण में अंतर्निहित हैं। भारत में अलग-अलग धुरी क्षमता वाली 2,000 से अधिक कताई मिलें हैं। निगमों द्वारा नियंत्रित बड़ी इकाइयों में श्रमिक कारखाने परिसर से सटे श्रम बस्ती में रहते हैं। अधिकांश श्रमिक बिहार, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा और अन्य राज्यों से आए प्रवासी हैं। कपड़ा उद्योग भारत में 4.5 करोड़ से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करता है, लेकिन देशव्यापी तालाबंदी के कारण कारखाने अस्थायी रूप से बंद हो गए हैं और जिसके चलते कम मजदूरी वाले श्रमिकों के कार्य भी अस्थायी रूप से बंद हो चुके हैं। भारतीय कपड़ा उद्योग, वैश्विक कपड़ा बाजार में लगभग 4% हिस्सा देता है। यह उत्पादन, विदेशी मुद्रा आय और रोजगार के मामले में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़े और सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है और सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 2% योगदान देता है। वहीं दूसरी ओर आपूर्ति पक्ष पर, कारखानों के बंद होने और चीन से माल की आपूर्ति में देरी के कारण (जो चीन से उनकी मध्यवर्ती और अंतिम उत्पाद आवश्यकताओं को स्रोत बनाते हैं) कई भारतीय विनिर्माण क्षेत्र प्रभावित हुए हैं।
भारत उन शीर्ष 15 देशों में शामिल है जो विश्व व्यापार को बाधित कर रहे चीन में विनिर्माण मंदी के परिणामस्वरूप सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। कोरोनावायरस (Coronavirus) जैसी महामारी के फैलने के बाद ही चीनी कपड़ा कारखानों ने चीनी नव वर्ष के बाद से संचालन बंद कर दिया था। वहीं यदि महामारी का प्रकोप नहीं रुका तो भारतीय परिधान निर्माताओं को स्थानीय स्रोत सहित अन्य विकल्पों को देखने की आवश्यकता होगी, जो बदले में तैयार माल की लागत को 3-5% तक बढ़ा सकते हैं। इसके अतिरिक्त, इस परिवर्तन के कारण गुणवत्ता और लागत दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। भारत चीन को एक महीने में 200-250 लाख किलोग्राम सूती धागे का निर्यात करता है। वहीं इस महामारी के चलते चीन के सूती धागे के आयात में भी गिरावट आई है और इस से भारत के सूती धागे के निर्यात कारोबार पर भी काफी असर पड़ा है।
साथ ही भारत प्रतिवर्ष 460 मिलियन डॉलर के कृत्रिम धागे और 360 मिलियन डॉलर मूल्य के कृत्रिम कपड़े का आयात करता है। यहाँ बटन, ज़िपर, खूँटी और सुई जैसे समान का लगभग 140 मिलियन डॉलर से अधिक का आयात किया जाता है। इसके अलावा, यूरोप, ब्रिटेन और अमेरिका में कोरोनावायरस के प्रसार के कारण कपड़ा निर्यात भी प्रभावित हुआ है, जो भारतीय परिधानों के मुख्य बाजार हैं। वहीं कई विदेशी खरीदारों द्वारा अपनी खरीद में रोक लगाने की वजह से सामानों का ढेर लग रहा है। केवल इतना ही नहीं कई ग्राहक जिनके समान पहले से भेजे जा चुके हैं वे अपने भुगतान को रोक रहे हैं। अगर हालत ऐसे ही बने रहे तो निर्यातकों को उत्पादन में कटौती करनी पड़ सकती है जो नौकरियों पर भी असर डालेगा।
सुझाव:
• सूती धागे और कपड़े के निर्यात के लिए करों और शुल्क की प्रतिपूर्ति के लिए योजना का विस्तार करें।
• 31 मार्च, 2020 के बाद से आरओएससीटीएल (राज्य और केंद्रीय कर और उगाही की प्रतिपूर्ति) के लिए रजाई और सूती शॉपिंग बैग (Shopping bag) जैसे उत्पादों सहित में 3% ब्याज उपदान प्रदान किया जाएं।
• माल और सेवा कर की वापसी में शीघ्रता करें।
• बैंकों को मूलधन और ब्याज की अदायगी के लिए मोहलत प्रदान करनी चाहिए और कच्चे माल को उतरवाने के शुल्क और सीमा शुल्क से मुक्त करना चाहिए।
चित्र (सन्दर्भ):
1. मुख्य चित्र में एक सूती मिल में उत्पादन के दौरान का दृश्य है।
2. दूसरे चित्र में जरदोज़ी और चिकन की डिज़ाइन वाले वस्त्र हैं।
3. तीसरे चित्र में भारतीय साड़ियां हैं।
4. तीसरे चित्र में दुपटटो का एक समूह है।
संदर्भ :-
1. https://bit.ly/2LhqtXY
2. https://bit.ly/2WlJ4s0
3. https://bit.ly/2LdqBHU
4. https://bit.ly/3fBXZpJ
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