क्या आधुनिक भारत में शहरवार, ज़िलेवार और राज्यवार स्थानीय मुद्रा का चलन शुरू हो सकता है? क्या इससे क्षेत्रीय आर्थिक विकास और स्थानीय तौर पर रोज़गार की सम्भावना बन सकती है? विदेशों में इस तरह के प्रयोग हुए हैं जो यह संकेत देते हैं कि स्थानीय मुद्रा अगर देश की किसी एक मुद्रा से जुड़ी हो तो यह प्रयोग लाभकारी हो सकता है।दूसरी तरफ़ हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि 1935 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने एक नियम लागू कर रुपए बनाने चाहे थे, अकेला वैध क़ानूनी टेंडर भारत के उन क्षेत्रों में व्यापार के लिए जहां कम्पनी का राज्य था , भारत के पास 650 से अधिक अलग-अलग मुद्राएं और नोट विभिन्न शासित राज्यों (रुहेलखंड, रामपुर स्टेट ) और दूसरे क्षेत्रों की थीं। अंग्रेज़ों को 70 साल से अधिक समय लगा इन 650 से अधिक मुद्राओं को निरस्त करने में और भारत में एक अकेली करैंसी लागू की गई। यह भारतीय इतिहास का वह दौर था जब भारत जो लगभग 2000 वर्ष तक विश्व का सबसे अमीर देश था (In GDP),आर्थिक रूप से ब्रिटेन और दूसरे पश्चिमी देशों से ग़रीब हो गया।
स्थानीय मुद्रा के प्रतिमान
शूमाकर सेंटर फ़ॉर अ न्यू इकोनॉमिक्स (Schumacher Centre For A New Economics) ने स्थानीय मुद्रा (Local Currencies) नाम का प्रयोग स्थान आधारित मौद्रिक उपकरणों द्वारा सतत स्थानीय मुद्रा के निर्माण के लिए किया। इस तरह के कुछ दूसरे नाम भी चलन में हैं जैसे ‘पूरक मुद्रा’, ‘सामुदायिक मुद्राएँ’ और कभी-कभार ‘वैकल्पिक मुद्राएँ’। स्थानीय मुद्रा कार्यक्रम तीन बहुत अलग तरह की रक़म दिखाता है। एक है ख़रीद रक़म जिससे लोग अपनी ज़रूरत की चीज़ों और सेवाओं के लिए लेन-देन कर सकते हैं।ख़रीद रक़म किसी भी अर्थव्यवस्था का जीवन होती है और एक-दूसरे के साथ वित्तीय लेन-देन का लेखा-जोखा होती है। दूसरी है उपहार रक़म जो हमारी दूसरों के प्रति उदारता का हिसाब रखती है। तीसरे प्रकार की रक़म आमतौर पर निवेश पूँजी के रूप में जानी जाती है। इस रक़म की ज़रूरत व्यापार शुरू करने, उसका विस्तार करने के लिए होती है। यह अतिरिक्त आमदनी की बचत से आ सकती है और उसके बाद नए उद्यमों में फिर से निवेश कर दी जाती है या उधार के रूप में नई रक़म की सृष्टि होती है। जब जेन जेकॉब्स, मशहूर क्षेत्रीय योजनाकार,ने क्षेत्रीय मुद्राओं को सामुदायिक निर्माण आयात व्यवसायों की जगह नए व्यवसाय स्थापित करने में शिष्ट औज़ार बताया, उस समय उनके दिमाग़ में इस नई रक़म को खड़ा करने की ताक़त थी। नई आर्थिकी के लिए शूमाकर सेंटर का स्थानीय मुद्रा कार्यक्रम के लिए लक्ष्य है यह प्रदर्शित करना कि कैसे क्षेत्रीय समुदाय अपनी स्वयं की रक़म जारी कर स्थानीय उत्पादन और टिकाऊ स्थानीय अर्थव्यवस्था के निर्माण में वित्तीय सहयोग दे सकते हैं।
क्षेत्रीय आर्थिक विकास में स्थानीय मुद्रा की भूमिका स्थानीय व्यवसाय और बाज़ार को प्रोत्साहन देना और क्षेत्रीय आर्थिक विकास के लिए प्राथमिक लक्ष्य है। स्थानीय लोगों के लिए रोज़गार की स्थाई, दीर्घकालिक व्यवस्था का विस्तार करना और इसके लिए स्थानीय तौर पर उत्पादित सामग्री और सेवाओं के लिए स्थानीय बाज़ार तैयार करना। ई. एफ़. शूमाकर के अनुसार स्थाई समाज व्यवस्था के लिए यह ज़रूरी है कि स्थानीय व्यापार और उद्योग को बढ़ावा, सहारा और प्रचार देना। इस तरह की पहल ज़्यादा मज़बूत है बजाय उनके सामने की बाधाओं से। एक बाधा उचित सूद पर छोटी पूँजी के अभाव की है जिस पर नए लघु व्यापार और उद्योग निर्भर करते हैं। क्योंकि पूँजी या तो अनुपलब्ध होती है या ऊँचे सूद पर उपलब्ध होती है? इसके मुख्य दो कारण हैं। पहला कारण बैंकों द्वारा बड़ा ऋण देना आसान और त्वरित है। इसलिए वे छोटे ऋण की अनदेखी करते हैं या उसके लिए ऊँचे ब्याज वसूलते हैं। दूसरा बड़ा कारण बिना उचित अनुभव के नए व्यापार में छोटे ऋण का ख़तरा। हालाँकि, अगर सही तरीक़े से प्रारूप तैयार किया जाए तो असफलता की संभावना काफ़ी कम है। इसके दो उदाहरण हैं। दुनिया के सबसे ग़रीब क्षेत्रों में शामिल बांग्लादेश में भूमिहार ग्रामीण लोगों को नया व्यापार शुरू करने या किसी बहुत छोटे व्यापार को सुधारने में मदद के लिए एक ऋण आबँटन कार्यक्रम शुरू किया गया।दस साल की अवधि में सिर्फ़ एक प्रतिशत की चूक हुई। स्पेन में जहां काजा लेबोरल (Caja Laboral) मोंड्रेगॉन (Mondregon) में छोटे, सहकारी रूप से संगठित उद्योगों को ऋण बाँटने का काम करती है जिसमें सफलता की दर 100 प्रतिशत है।
सफल ऋण आबँटन की संरचना
ऋण आबँटन की ये योजनाएँ इतनी सफल कैसे हुईं? कार्यक्रमों की संरचना से जुड़े कई कारण हैं-
1. स्थानीय समुदाय से सहयोग-
बांग्ला देश में ग्रामीण बैंक के मामले में पाँच लोगों के समूह को ऋण दिया जाता है, जिसमें से केवल दो व्यक्ति किसी भी समय एक ऋण ले सकते हैं। अगर उनके भुगतान में देरी होती है तो बाक़ी तीन तब तकइंतज़ार करते हैं जब तक भुगतान पूरा नहीं हो जाता।
2. तकनीकी सहयोग
स्थानीय लोग प्रदर्शन के आश्वासन के क्रम में तकनीकी सहयोग देते हैं।स्पेन के काजा लेबोरल (Kaja Laboral) में बैंक ख़ुद सहयोग करते हैं।
3. स्थानीय बाज़ार
संगठन में बड़ी भागीदारी के माध्यम से स्थानीय बाज़ार को बढ़ावा मिलता है। SHARE कार्यक्रम का एक उदाहरण है, एक उधार लेने वाला बकरी का चीज़ बनाता था, जिसको सदस्यों ने स्थानीय सब्ज़ी की दुकानों में प्रयोग के लिए प्रोत्साहन दिया।ग्रामीण क्षेत्र से पूँजी का पलायन सामान्य सी बात है कि गाँव में पैदा हुआ पैसा ग्रामीण क्षेत्र से बाहर केन्द्रीय बैंक में चला जाता है।इसके लिए बैंकों का केन्द्रीयकरण ज़िम्मेदार है।19वीं शताब्दी के आरम्भ में इस तथ्य ने US के त्वरित विकास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अपनी किताब Money- From Where It Comes and Where It Goes में बीसवीं शताब्दी के अर्थशास्त्री जॉन के. गैलब्रेथ (John K. Gailbraith) बताते हैं कि शायद यह US के तीव्र विकास का सबसे महत्वपूर्ण कारक था। जेन जैकब्स (Jane Jacobs) अपनी किताब ‘ Cities And The Wealth Of Nation’ में लिखती हैं कि देश में पूँजी के कमज़ोर या अपर्याप्त वितरण के पीछे जो भी कारण रहा हो लेकिन एक पूँजी निर्माण की केन्द्रीय प्रणाली ग्रामीण क्षेत्रों का सही हिस्सा नहीं बना सकती। इसलिए वह स्थानीय या क्षेत्रीय मुद्रा के प्रयोग की वकालत करती हैं ताकि हर क्षेत्र अपनी ज़रूरत के अनुसार अपनी पूँजी का नियमन कर सके।
चित्र (सन्दर्भ):
मुख्य चित्र के पार्श्व में रामपुर के कोलाज़ के साथूरामपुर की पुरानी मुद्रा को दिखाया गया है।
दूसरे चित्र में क्षेत्रीय मुद्राओं को दिखाया गया है।
सन्दर्भ:
https://centerforneweconomics.org/apply/local-currencies-program/local-currency-models/
https://centerforneweconomics.org/publications/the-role-of-local-currency-in-regional-economic-development/
© - , graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.