दुनिया में ऐसे कई जंतु हैं, जिनका उपयोग मानव द्वारा प्राचीन समय से किया जा रहा है। हालांकि इनमें से कई ऐसे हैं जिनका अब व्यापक रूप से प्रयोग नहीं किया जाता। हाथी भी इन्हीं जंतुओं में से एक है, जिसका उपयोग क्षेत्रों, राजवंशों, और किसी विशिष्ट समय की परवाह किए बिना प्राचीन भारतीय सेना द्वारा किया जाता रहा। उनके महत्व को कभी नकारा नहीं गया और मध्यकाल में भी इनका उपयोग जारी रहा। इन्हें काबू में करके इनका उपयोग शांति और युद्ध दोनों के लिए किया गया। यह विभिन्न प्रकार के सैन्य कार्यों को पूरा करने में सक्षम थे और इसलिए इनका उपयोग सैन्य कार्यों के लिए अत्यधिक किया गया। हालांकि इस उपयोग ने वरदान और श्राप दोनों की भांति कार्य किया। दोषों के बावजूद, भी प्राचीन भारतीय इनकी प्रभावकारिता पर तब भी विश्वास करते रहे, जब इन्हें युद्ध में उपयोग करने के परिणाम विपरीत प्राप्त हुए। इसका एक मुख्य कारण सैन्य कौशल की अवधारणा थी, जो इन विशाल जानवरों को अपने अधिकार में लेने और रोजगार से जुडी हुई थी।
हाथी का मुख्य उपयोग प्रायः उसकी शक्तिशाली क्षमता के लिए किया जाता था। यह एक बार में ही कई दुश्मनों, रथों इत्यादि को अपने पैरों के नीचे रौंध सकता था तथा युद्ध में उपयोग किये जाने वाले घोड़ों को डरा सकता था। कई हाथियों को इसलिए कैद किया गया था क्योंकि वे शासक की प्रतिष्ठा को बढ़ाते थे। जिससे दुश्मन के दिमाग पर यह मनोवैज्ञानिक प्रभाव पैदा होता था कि उनका शत्रु बहुत शक्तिशाली है तथा वह उसे चुनौती न दें। इसके लिए हाथियों को नशा देने की प्रथा का सहारा भी लिया गया ताकि इस जानवर का क्रूर स्वभाव सामने आये और वह दुश्मन सैनिकों का विनाश करने के लिए भड़क जाए। इस तरह का हाथी बहुत अधिक आतंक पैदा कर सकता है और दुश्मन की संरचनाओं को बेरहमी से रौंदकर पूर्णतया खत्म कर सकता है। सभी प्रशिक्षण के बावजूद, भी कई बार परिणाम विपरीत दिखाई दिये, क्योंकि हाथी को उसके चिड़चिड़े व्यवहार के लिए प्रशिक्षित नहीं किया जा सकता। यह प्रकृति मुख्य रूप से तब दिखाई दी जब हाथी या तो बहुत घायल हो गया या उसे क्रोध आया। ऐसी परिस्थितियों में उसने अपने स्वयं के सैनिकों को रौंद दिया और मैदान से दूर भाग गया। इससे सैनिक घबरा जाते तथा लड़ाई छोड़कर भाग जाते। प्राचीन भारत में, शुरू में सेना चार गुना (चतुरंग) थी, जिसमें पैदल सेना, घुड़सवार सेना, हाथी और रथ शामिल थे। बाद में रथ का उपयोग कम किया जाने लगा किंतु अन्य तीनों को महत्व दिया जाता रहा जिसमें हाथी का प्रमुख स्थान था।
महाभारत में भी युद्ध में हाथियों के उपयोग का उल्लेख है। इसी प्रकार राजा बिम्बिसार जिसने मगध साम्राज्य का विस्तार शुरू किया, अपने युद्ध के हाथियों पर बहुत अधिक निर्भर था। मगध के नंदों (321 ईसा पूर्व) के पास भी युद्ध के लिए लगभग 3,000 हाथी थे। इसके अलावा मौर्य और गुप्त साम्राज्यों में भी हाथी का उपयोग अत्यधिक किया जाता था। चंद्रगुप्त मौर्य (321-297 ईसा पूर्व) के पास युद्ध के लिए लगभग 9,000 हाथी थे। पलास की सेना जिसे विशाल हाथी सैन्य-दल के लिए जाना जाता था, के पास 5,000 से 50,000 तक हाथी मौजूद थे। प्रत्येक राज्य के पास एक अधीक्षक के नेतृत्व में अपनी स्वयं की हाथी सेना थी। हाथियों को युद्ध में उपयोग करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण था, उनका प्रशिक्षण और रखरखाव। इन कार्यों के लिए महावत रखे जाते थे जोकि हाथियों को अधिकृत करने और संभालने के लिए उत्तरदायी थे। हाथियों को नियंत्रित करने के लिए वे धातु की जंजीरों और एक विशेष हुक (Hook) का उपयोग करते थे जिसे अंकुस (Aṅkuśa) कहा जाता था। उन्हें प्रशिक्षित करने के लिए सबसे पहले महावत को हाथी पकड़ना होता है ताकि वह उसका नेतृत्व कर सके। इसके बाद उन्हें पैर उठाना सिखाया जाता था, ताकि उसकी सवारी करने वाला व्यक्ति उस पर चढ़ सके। फिर हाथियों को दौड़ना और कुशलता पूर्वक बाधाओं को पार करना और आगे बढ़ना सिखाया जाता था।
व्यवस्थित रूप से दुश्मनों को रौंदने और आवेशित होने के तरीके सीखने के लिए हाथियों का स्वस्थ रहना आवश्यक है। जंगली हाथियों को पकड़ना सबसे मुश्किल काम होता है, किन्तु कैद में हाथी के प्रजनन से सम्बंधित कठिनाइयां तथा युद्ध में संलग्न होने के लिए पर्याप्त परिपक्वता तक पहुंचने में लगने वाला लंबा समय प्रशिक्षण के लिए मुख्य चुनौतियां होती हैं। उस समय युद्ध के लिए प्रायः साठ वर्षीय हाथी को सबसे बेशकीमती माना जाता था। आज के युग में 25 से 40 वर्ष की आयु के बीच वाले हाथी को उपयुक्त माना जाता है। फिर भी बाघों के शिकार के लिए 80 वर्ष की आयु वाले हाथी को उपयुक्त माना जाता है क्योंकि वे अधिक अनुशासित और अनुभवी होते हैं। प्राचीन काल में हाथियों को पकड़ने, प्रशिक्षण और उनके रखरखाव पर बहुत ध्यान दिया गया। इन विषयों पर कई ग्रंथ भी लिखे गए थे। कौटिल्य के अर्थशास्त्र सहित ऐसे कई महत्वपूर्ण कार्य हैं, जो विभिन्न प्रकार के हाथियों के प्रजनन, प्रशिक्षण और युद्ध में उनके आचरण पर बहुत सारी जानकारी देते हैं। बौद्ध निकाय ग्रंथों में भी उल्लेख है, कि शाही हाथी को सभी प्रकार के हथियारों का वार सहन करने, अपने शाही सवार की रक्षा करने, जहाँ भी आज्ञा हो वहां चलने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। साथ ही दुश्मन के हाथी, पैदल सेना, रथ और घोड़ों को नष्ट करने में भी सक्षम होने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। हाथी को अपनी सूंड, पैर, सिर, कान और यहां तक कि अपनी पूंछ के साथ पूर्ण रूप से युद्ध में शामिल होना चाहिए।
कई देशों में सदियों से युद्ध में हाथियों के उपयोग ने एक गहरी सांस्कृतिक विरासत छोड़ दी है। कई पारंपरिक युद्ध खेल, युद्ध के हाथियों को शामिल करते हैं। प्राचीन भारतीय बोर्ड (Board) खेल चतुरंगा जिससे आधुनिक शतरंज धीरे-धीरे विकसित हुआ है, में बिशप (Bishop) को गजा कहा जाता है (हाथी को संस्कृत में गजा कहा जाता है)। चीनी शतरंज में इसे अब भी हाथी कहा जाता है। अरबी में बिशप के टुकड़े को अल-फिल (Al-fil) कहा जाता है, जिसका मतलब हाथी होता है। इसी प्रकार से स्पेन और रूस में भी इसे वे ही नाम दिये गये हैं जिनका मतलब हाथी होता है। हाथी कवच, जो मूल रूप से युद्ध में उपयोग के लिए डिज़ाइन (Design) किया गया था, आज आमतौर पर केवल संग्रहालयों में देखा जाता है। भारतीय हाथी कवच का एक विशेष रूप से बढ़िया समूह लीड्स रॉयल आर्मरीज संग्रहालय (Leeds Royal Armouries Museum), संरक्षित है। भारत की वास्तुकला भी वर्षों से हाथी युद्ध के गहरे प्रभाव को दिखाती है। 19 वीं शताब्दी के प्रसिद्ध चित्रों में भी युद्ध के ये हाथी दिखायी दिये हैं। इसके अलावा सांची के स्तूप और अजंता की गुफाओं के भित्तिचित्रों में भी युद्ध के हाथी दिखायी देते हैं।
वर्तमान समय में हाथी का उपयोग भले ही मानव उद्देश्यों की पूर्ति के लिए व्यापक रूप से नहीं किया जाता, किन्तु इस 21 वीं सदी में भी धरती का एक कोना ऐसा है जहां हाथियों का उपयोग सैन्य-बल के तौर पर किया जा रहा है, और वो जगह है म्यांमार। यह केंद्रीय म्यांमार नहीं है बल्कि उत्तरी काचिन राज्य है, जहां मानव जाति की 4,000 साल पुरानी युद्ध में हाथी का उपयोग करने वाली परंपरा जीवित है। इस प्रथा को मानने वाला क्षेत्र सरकार को नहीं मानता। काचिन स्वतंत्र सेना (Kachin Independence Army-KIA) के रूप में जाने जाते हैं। यह सेना एशिया के सबसे बड़े गुरिल्ला गुटों में से एक है। उन्होंने अपनी भूमि का म्यांमार की सेना से बचाव किया है ताकि म्यांमार की सेना उनकी भूमि पर अपना वर्चस्व स्थापित न करे। वे मुख्य रूप से मोर्टार के गोले (Mortar shells), रस्टी एसॉल्ट राइफल (Rusty assault rifles), 10,000 लड़ाकू (महिलाओं सहित) और लगभग चार दर्जन हाथियों के सैन्य बल भरोसा करते हैं। ये ज्यादातर दूरदराज वाले इलाकों में पाए जाते हैं मुख्य रूप से ऐसी जगह जहां कार और ट्रक नहीं जा सकते। इस आधार पर यह कहा जा सकता है, कि हाथियों का महत्त्व जितना हाथी सदियों पूर्व था उतना आज भी है।
चित्र (सन्दर्भ):
1. रामायण के युद्ध में हाथी का चित्रण (Wallpaperflare)
2. अनजान युद्ध के लिए ले जाए जाते हाथी (Fineartamerica)
3. एक राजपुताना युद्ध में हाथी का प्रयोग (Wikimedia)
4. बुद्ध के अवशेष, दक्षिण द्वार पर युद्ध, स्तूप सं.1, सांची (Unslash)
5. 1857 की क्रांति के दौरान हाथी का प्रयोग (Fineartamerica)
सन्दर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/War_elephant
2. https://www.ancient.eu/article/1241/elephants-in-ancient-indian-warfare/
3. https://www.pri.org/stories/2017-02-27/war-elephants-still-exist-only-one-forbidding-place
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