वायलिन (Violin) दुनिया का एकमात्र ऐसा उपकरण है, जो प्रेम की भावना को पूरी तरह से व्यक्त करता है। उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में व्यस्त राष्ट्रीय राजमार्ग 87 पर स्थित एक छोटा सा कस्बा, ननकार मुख्य रूप से अपनी दो चीजों के लिए प्रसिद्ध है। पहला सूफ़ी संत ऐज़ाज़ मियाँ की कब्र के लिए और दूसरा अपनी 'गिटार वाली फ़ैक्टरी (Factory)' के लिए। एक समय में इसे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ वायलिन निर्माताओं के रूप में जाना जाता था, किन्तु विमुद्रीकरण, जीएसटी (GST) और सस्ते चाईना उपकरणों के कारण उद्योग की लोकप्रियता में गिरावट आ गयी। रामपुर में निर्मित वायलिन को कभी दुनिया का सबसे अच्छा वाद्ययंत्र माना जाता था किंतु अफसोस की बात है कि आज यह उद्योग अपनी अंतिम सांस ले रहा है। ब्रिटिश काल के दौरान मोहम्मद हसीनुद्दीन ने रामपुर में वायलिन का निर्माण शुरू किया था। प्रारंभ में, इनके परिवार ने केवल स्थानीय बाजार में ही इसकी आपूर्ति की, किन्तु बढ़ती मांग के कारण उन्होंने अपने इस व्यवसाय का विस्तार अन्य राज्यों और देशों में भी किया। गोवा, केरल, कर्नाटक और अन्य राज्यों के बाद दुबई और यूरोपीय देशों में भी रामपुर में निर्मित वायलिन का निर्यात शुरू कर दिया गया। शास्त्रीय भारतीय वायलिन वादक जौहर अली खान, जो अंतर्राष्ट्रीय वायलिन संगठन के सदस्य और रामपुर के 700 वर्षीय पटियाला घराने से हैं, का दावा है कि वायलिन की उत्पत्ति भारत में हुई है। क्योंकि तारों वाले वाद्ययंत्रों की अवधारणा भारत के अलावा और कहीं प्रचलित नहीं थी। इस तरह के वाद्ययंत्रों का उपयोग पौराणिक कथाओं में भी उल्लेखित है, और इन्हें 'वीणा' की श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है।
वर्तमान समय में वायलिन के समान दिखने वाले वाद्ययंत्र को पिनाची वीणा (Pinachi Veena) कहते हैं। बंगाली में, इसे 'बेला' और 'गज वाद्य' भी कहा जाता है। ब्रिटिश और फ्रांसीसी इन उपकरणों से प्रेरित थे और उन्होंने वायलिन बनाने के लिए उन्हें संशोधित किया। रामपुर वायलिन इतने प्रसिद्ध थे कि बर्कले (Berkley) संगीत अकादमी के संगीतकारों ने भी इन्हें बजाया था। इनका उपयोग हिंदी फिल्मों में भी किया गया।
वायलिन का निर्माण पूरी तरह से गणित का खेल है, क्योंकि इसकी माप निर्माण में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यहां बनने वाले वायलिन के प्रत्येक भाग को बहुत सावधानी से मापा जाता है। सुंदर ध्वनि उत्पन्न करने वाले चार तारों के आधार को ब्राजील से निर्यात की गयी मेपल (Maple) की लकड़ी से बनाया जाता है, इसके शीर्ष क्षेत्र पर हिमांचल प्रदेश की स्प्रूस (Spruce) तथा अन्य भागों में आबनूस की लकड़ी का उपयोग किया जाता है। इसके हर एक हिस्से को सुखदायक ध्वनि उत्पन्न करने के लिए सटीक रूप से मापा और डिज़ाइन (Design) किया जाता है। किसी भी चीज में कुछेक सेंटीमीटर की छोटी सी गलती पूरे वायलिन को बर्बाद कर सकती है तथा बहुत सारा पैसा खर्च कर सकती है। इनकी कीमत 1,500 रुपये से शुरू होकर 15,000 रुपये से भी अधिक जा सकती है।
आयातित उत्पादों की कम लागत के कारण अब सस्ते उत्पादों की मांग अधिक हो गयी है। मुंबई, कोलकाता और अन्य स्थानों पर खरीदार 1,200 रुपये में कम लागत वाली वायलिन वितरित करने की मांग करते हैं और रामपुर में निर्मित टैग (Tag) दिखाकर 3,000 रुपये तक के दाम में बेचते हैं। पिछले दो-तीन वर्षों में, चीनी उत्पादों ने संगीत वाद्ययंत्र के बाजार पर कब्जा कर लिया है। चीन और अन्य देशों के बाजार में उपलब्ध सस्ते उत्पादों के कारण अब रामपुर में निर्मित वायलिनों की लोकप्रियता अत्यधिक कम हो गयी है तथा स्वदेशी रूप से निर्मित वायलिन चीनी लोगों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहे हैं हालांकि भारतीय वायलिनों की गुणवत्ता उन्हें उनके चीनी समकक्षों से एक कदम आगे रखती है।
हाथ से बने भारतीय वायलिन, अच्छी गुणवत्ता के साथ अत्यधिक टिकाऊ और अच्छे फिनिश (Finish) वाले होते हैं। इसके विपरीत चीनी वायलिन मशीन से बने होते हैं और उनमें स्थायित्व की कमी होती है। थोड़ी सी नमी वायलिन को खराब कर सकती है और इस मामले में रामपुर के वायलिन चीनी वायलिन से आगे हैं। एक समय में शहर में वायलिन बनाने वाले एक हजार से अधिक लोग थे। लेकिन अब मुश्किल से 200 वायलिन निर्माता (श्रम सहित) बचे हैं। अब यहां केवल पाँच बड़े वायलिन बनाने वाले उद्योग हैं जिनमें 40 से अधिक लोग काम कर रहे हैं। कई कुशल श्रमिक इस उद्योग से दूर हो गए, क्योंकि नोटबंदी के बाद मांग न होने के कारण कई महीनों तक उन्हें भुगतान नहीं किया गया था। नोटबंदी से उद्योग बुरी तरह से प्रभावित हुआ, क्योंकि आपूर्तिकर्ताओं ने मेपल की लकड़ी, तार और अन्य उत्पादों की आपूर्ति करने से भी इनकार कर दिया था। हालात इतने खराब हो गए थे कि कई कार्यशालाएं कई दिनों तक बंद रहीं और कारोबारियों को भारी नुकसान हुआ।
दुनिया के सर्वश्रेष्ठ वायलिनों में से एक का उत्पादन करने के बावजूद, यह उद्योग उत्तर प्रदेश सरकार की एक जिला एक उत्पाद की प्रमुख योजना में शामिल नहीं हो सका है। उद्योग के लिए न तो ऋण ही मिलता है और न सरकार से किसी प्रकार की मदद मिलती है। सरकार द्वारा माल और सेवा कर लागू किये जाने से हालात और भी खराब हुए। रामपुर वायलिन कम लागत और टिकाऊपन के लिए प्रसिद्ध है। शहर में अब केवल कुछ ही उद्योग बचे हैं, लेकिन उन्होंने रामपुर को दुनिया भर में प्रसिद्ध बना दिया है। सरकार को इन्हें बचाने के लिए तुरंत कदम उठाना चाहिए।
रामपुर के वायलिन की तरह ही एंटोनियो स्ट्राडिवरी (Antonio Stradivari) को दुनिया में अब तक के सबसे अच्छे वायलिन के निर्माण के लिए जाना जाता है। सदियों से ये निर्माता अपने उपकरणों का उपयोग संगीत कार्यक्रम, संग्रहालय, निजी संग्रह और रिकॉर्डिंग स्टूडियो (recording studios) में कर रहे हैं। इस वायलिन की ध्वनि की स्पष्टता, समृद्धि और अपनी विशिष्ट विशेषता के लिए ये अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। इसकी विशिष्टता के लिए कई कारण माने जाते हैं। पहला कारण इसके ’F’ छिद्र का आकार है। माना जाता है कि इन वायलिनों के ’F’ छिद्र का आकार जितना अधिक लम्बा किया जाएगा, उतना ही उपकरण अधिक ध्वनि उत्पन्न कर सकता है। इन वायलिनों ने पिछले उपकरणों की तुलना में ’F’ छिद्र को लंबा और संकरा बना दिया है। दूसरा इसका आकार है, जिसे बनाने के लिए अलग-अलग आकृतियों को वायलिनों के साथ प्रयोग किया गया। इसके अतिरिक्त इसकी वार्निश (varnish) को भी वायलिन के विशिष्ट होने के लिए उत्तरदायी माना जाता है। विश्लेषकों का मत है कि तेल, तेल-राल (oil-resin) के मिश्रण और लाल वर्णक की वार्निश इसे अलग बनाती है। एक अन्य कारक इसका सुंदर डिजाइन भी है। हालांकि यह ध्वनि में योगदान नहीं दे सकता, लेकिन इसकी दिखावट या स्वरूप को आश्चर्यजनक बनाता है। कई लोगों का सुझाव है कि इसकी लकड़ी में एक रहस्यमय संघटक को जोड़ा गया है। यहां तक कि निर्माणकर्ताओं ने इसमें प्राचीन चर्चों में इस्तेमाल की जाने वाली लकड़ी का भी इस्तेमाल किया है, जिससे उनके वाद्ययंत्रों को एक सुरीली आवाज मिल सके।
चित्र (सन्दर्भ):
1. ऊपर दिए गए सभी चित्रों में वायलिन बनाते हुए और वायलिन का निरिक्षण करते हुए कारीगर दिखाए गए हैं। (Prarang)
सन्दर्भ:
1. https://www.newsclick.in/why-classy-violins-made-up-rampur-falling-silent
2. https://bit.ly/3bTKGi0
3. https://bit.ly/3c7Bk2F
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