वास्तुकला किसी भी सभ्यता संस्कृति को जानने समझने में एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण कारक है। वास्तुकला के सहारे ही किसी भी एक सभ्यता या राजवंश की पराकाष्ठा का महत्व हमें पता चलता है। वास्तुकला के सहारे ही वर्तमान काल में कई देशों और शहरों की अर्थव्यवथा पर एक बहुत ही सही प्रभाव पड़ा हुआ है। रामपुर शहर अपने वास्तुकला को लेकर पूरे विश्व भर में जाना जाता है। यहाँ पर इंडो-सारसैनिक (Indo-Sarascenic), मुग़ल और अन्य प्रकार की शैलियों के अद्भुत नमूने हमें देखने को मिलते हैं। रामपुर को द्वारों के शहर के रूप में भी हम देख सकते हैं यहाँ के गुम्बद, घोड़े के नाल की तरह के मेहराब, मीनार आदि वास्तुकला कला के अनुपम उदाहरण को प्रस्तुत करने का कार्य करते हैं।
इस्लामी वास्तुकला में सुलेख, गुम्बद, बेलनाकार मीनारें, नुकीले मेहराब आदि शामिल होते हैं। इन पर एक अत्यंत ही गूढ़ शिल्पकारी देखने को मिलती है। इस्लामी शिल्प में मस्जिदें, मकबरें, महल और किले आदि का निर्माण किया गया है। इस्लामी कला में सार्वजनिक स्नान, फव्वारे आदि का प्रयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है। जैसे कि हमें रज़ा पुस्तकालय के सामने उपरोक्त वर्णित प्रकारों में से कई प्रकार देखने को मिलता है। रजा पुस्तकालय का मुख्य द्वार, जामा मस्जिद का मुख्य द्वार आदि नुकीले मेहराब को प्रदर्शित करते हैं जो कि इस्लामी वास्तुकलाकला में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। रामपुर की वास्तुकला में इंडो-सारसैनिक (Indo-Sarascenic) कला का प्रयोग बहुत ही बड़े पैमाने पर किया गया है परन्तु फिर भी यहाँ पर इस्लामी कला के अनेकों अंगों को देखा जा सकता है। विभिन्न स्थानों पर इस्लामी कला को उस स्थान के मूल कला के साथ जोड़ के बनाया गया है जैसे कि भारत में राजपूत कला और इस्लामी कला के संयोजन से अनेकों महलों आदि का निर्माण किया गया है। इस्लामिक कला ने विभिन्न स्थानों पर भिन्न भिन्न कलाओं के संयोग से कई नए प्रकारों को जन्म देने का कार्य किया है जिसमे पारसी (Persian), ओटमन (Ottoman), सोमाली (Somali) आदि हैं।
भारत के विषय में यदि हम बात करें तो इस्लामी कला का प्रभाव सबसे ज्यादा मुग़ल (Mughal) वास्तुकला में हमें दिखाई देता है। इसके उदाहरणों में देखा जाए तो हुमायूं का मकबरा, ताजमहल आदि हैं। दिल्ली का क़ुतुबमीनार सल्तनत (Sultanate) काल का एक बेहतर नमूना है जो कि इस्लामी कला के प्रभावों और उनमे उपयुक्त सुलेखों को प्रदर्शित करता है। जैसा कि इस्लामी कला में बागानों का अत्यंत ही महत्वपूर्ण योगदान होता है तो भारत में भी मुग़ल काल की इमारतों में बागानों का उदाहरण हम प्राप्त कर सकते हैं। दिल्ली और आगरा का लाल किला भारतीय और इस्लामी कला का अनुपम उदाहरण है जो हमें इस्लामी कला और भारतीय कला के संयोजन को दिखाने का कार्य करता है। जौनपुर और मांडू की भी वास्तुकला में भारतीय और इस्लामी कला का संयोजन बड़े ही वृहत स्तर पर देखने को मिलता है। रामपुर की बात करें तो यहाँ की इमारतों पर भी इस्लामी, भारतीय और सारसैनिक कला का अनुपम उदाहरण देखने को मिल जाता है। बंगाल सल्तनत के द्वारा बनवाये गए वास्तुकला में इस्लामी और बंगाल के कला का समायोजन हमें देखने मिलता है जिसमे घुमावदार छत, मिटटी से बनी अलंकृत ईंटो का प्रयोग आदि। इस प्रकार की वास्तुकला में मीनारों का लोप हमें दिखाई देता है।
भारत में इस्लामिक कला के प्रभावों और सम्मिश्रणों को हम गुम्बदों में भी देख सकते हैं जिसमें प्याज के आकार के, गोल और धारीदार गुम्बद हमें देखने को मिलते हैं। रामपुर में उपस्थित गुम्बद प्याज के आकार में बनाए हुए हैं। इस्लामी काल के शुरुआत से ही यह बड़े पैमाने पर फैलना शुरू हुयी थी और इसमें धार्मिक वास्तुकलाओं का एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण भाग हमें दिखाई देता है और यही कारण रहा है कि स्थान दर स्थान इसमें कई परिवर्तन हमें देखने को मिलते हैं।
चित्र (सन्दर्भ):
1. उपरोक्त सभी चित्र रामपुर की वास्तुकला को इंगित कर रहे हैं।, Prarang
सन्दर्भ :
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Islamic_architecture#Influences
2. https://www.hisour.com/influences-of-islamic-architecture-31795/
3. https://bit.ly/3eIty0N
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