प्रकृति में विभिन्न प्रकार के विषाणु पाये जाते हैं। इन विषाणुओं को वृद्धि करने तथा अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए एक जीवित पोषिता या होस्ट (Host) की आवश्यकता होती है, जिसके शरीर में रह कर वह वृद्धि करता है तथा अपने जीवन चक्र को पूर्ण करता है। वर्तमान में प्रचलित कोरोना विषाणु कोविड-19 (COVID-19) भी इसी तरह का एक विषाणु है, जिसे अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए पोषिता की आवश्यकता होती है। यूं तो प्रकृति में अन्य जीव भी मौजूद हैं, किंतु इस विषाणु के लिए सबसे प्रभावशाली पोषिता चमगादड़ है। इसका प्रमुख कारण यह है कि इसकी प्रतिरक्षा प्रणाली अपेक्षाकृत अत्यधिक मज़बूत होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि चमगादड़ की प्रतिरक्षा प्रणाली में एक आणविक तंत्र, इंटरफेरॉन-अल्फा (Interferon-alpha) नामक एक सिग्नलिंग (Signalling) अणु का तेज़ी से उत्पादन करता है जोकि, विषाणु की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप ट्रिगर (Trigger) होता है। जब इंटरफेरॉन प्रोटीन (Protein) को विषाणु संक्रमित कोशिकाओं द्वारा स्रावित किया जाता है, तो आस-पास की कोशिकाएं एक रक्षात्मक, विषाणुरोधी अवस्था में चली जाती हैं। अन्य जीवों की प्रतिरक्षा प्रणाली में इस प्रकार की विशेषता नहीं होती है। हालांकि सिग्नलिंग (signalling) प्रणाली कोशिकाओं को मरने से रोकती है, किंतु फिर भी संक्रमण जारी रहता है, तथा विषाणु उनकी रक्षात्मक प्रणाली के अनुकूलित होने लगता है। इस प्रकार चमगादड़ विषाणु के दुष्प्रभाव से अप्रभावित रहता है।
वैज्ञानिकों का विश्वास है कि चीन के वुहान (Wuhan) शहर से शुरू हुआ वर्तमान प्रकोप, चमगादड़ में निहित वायरस (Virus) से ही उपजा है। जितने भी संक्रामक रोग आज के समय में उभर रहे हैं, वे ज्यादातर वन्यजीवों से ही आए हैं। मानव में ये विषाणु उन जानवरों द्वारा संचारित किये जाते हैं, जो मानव के समीप होते हैं। या यूं कह सकते हैं कि जानवरों को पालने वालों में ये विषाणु आसानी से संचारित हो जाते हैं। हालांकि 2002 में चीन में फैले SARS (Severe acute respiratory syndrome) का संक्रमण स्रोत चमगादड़ नहीं था किंतु इसका माध्यमिक स्रोत, एक वन्यजीव ही था जोकि सिवेट (Civet) बिल्ली थी। यूं तो यह माना जाता है कि संक्रमण का मुख्य कारण वन्यजीवों का उपभोग है, किंतु वास्तव में जब तक इसे पकाया और तैयार किया जाता, तब तक जीव के अंदर निहित विषाणु मर चुका होता। इससे यह स्पष्ट होता है कि विषाणुओं का संचरण तब होता है जब लोग इसके पोषिता (जानवर) के सम्पर्क में होते हैं या उनका वध करते हैं। इन पशुओं से निकले शारीरिक तरल पदार्थ, रक्त या अन्य स्राव के संपर्क में आने से विषाणु संचरण हो जाता है। कोविड-19 के अलावा पैरामाइक्सोवायरस (Paramyxoviruses) जैसे हेन्ड्रा विषाणु (Hendra viruses) और निपाह विषाणु (Nipah viruses), इबोला रक्तस्रावी बुखार फाइलोवायरसेज़ (Ebola hemorrhagic fever filoviruses), और सार्स, जैसे कोरोनावायरस (Coronavirus) आदि अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए चमगादड़ को अपना पोषिता बनाते हैं।
अब प्रश्न यह है कि आखिर मानव चमगादड़ जैसे जीवों के सम्पर्क में कैसे आ रहा है। इसके लिए हमें विषाणुओं से होने वाले खतरों की विविधता और पारिस्थितिकी को समझने की आवश्यकता है। आज से 40 साल पहले वनों या वन्यजीव आवासों में उतना हस्तक्षेप नहीं किया जाता था जितना कि आज किया जा रहा है। यह लगातार बढ़ रहा है जोकि मानव आबादी में भारी वृद्धि और वन्यजीव क्षेत्रों में हमारे विस्तार से प्रेरित हुआ है। मानव द्वारा चमगादड़ का शिकार तथा उपभोग भी इसका एक सम्भावित कारण है। चमगादड़ से पैदा होने वाली बीमारियों के उभरने का मुख्य जोखिम मानवजनित पर्यावरण के विकास और प्राकृतिक वातावरण में कमी से सीधे जुड़ा हुआ है। यह अक्सर समझा जाता है कि वनों की कटाई और एंथ्रोपाइज़ेशन (anthropization) प्रजातियों को लुप्त होने की कगार पर ले जाएगा। किंतु यह हमेशा सच नहीं होता। मानवजनित वातावरण चमगादड़ प्रजातियों की एक बड़ी श्रृंखला के लिए एक स्वीकार्य निवास स्थान प्रदान कर सकता है। इस प्रकार चमगादड़ की एक उच्च विविधता पैदा होती है और मानव आवासों के बगल में चमगादड़-जनित विषाणु के फैलने की सम्भावना बढ़ जाती है।
भारत में चमगादड़ की आठ प्रजातियां पायी जाती हैं, जिन्हें मंदिरों, किलों, गुफाओं और सुरंगों में आसानी से देखा जा सकता है। इन प्रजातियों में इंडियन फ्लाइंग फॉक्स - फ्रूट बैट (Indian Flying Fox – Fruit Bat), इंडियन फॉल्स वैंपायर (Indian False Vampire), लेसर माउस टेल्ड बैट (Lesser Mouse Tailed Bat), इंडियन राउंडलीफ बैट (Indian Roundleaf Bat), ब्लैक बियर्डेड टॉम्ब बैट (Black Bearded Tomb Bat), ग्रेट इंडियन हॉर्सशू बैट (Great Indian Horseshoe Bat), इंडियन पिपिस्ट्रेल (Indian Pipistrelle), रोटंस फ्री टेल्ड बैट (Wroughton’s Free Tailed Bat) शामिल हैं।
विभिन्न संस्कृतियों में चमगादड़ को सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों तरीकों से देखा जाता है। इनके पीछे विभिन्न प्रकार की पौराणिक कथाएं निहित हैं। रात के इन जीवों को विभिन्न संस्कृतियों के अनेक पहलुओं में लगातार चित्रित किया गया है तथा मृत्यु या छल के प्रतीक के रूप में दिखाया गया है। इस जीव को अधोलोक, जहां लोग अंधेरे की छाया में रहते हैं, के संरक्षक के प्रतीक के रूप में भी दर्शाया गया है। प्रारंभिक सभ्यताओं में मानव आकार के चमगादडों की नक्काशियां भी मिली हैं। कई पौराणिक कहानियों में चमगादड़ और मनुष्यों को आपस में सम्बंधित भी किया गया है। मानव के चमगादड़ में बदल जाने की कहानी भी इन्हीं पौराणिक कथाओं का हिस्सा हैं। कुछ नक्काशियों में मानव चेहरे को चमगादड़ के पंख और पंजों के साथ दर्शाया गया है। इनमें से कई कहानियों में यह भी बताया गया है कि कैसे लोग लालची तथा शैतान के सेवक बन जाते हैं, और चमगादड़ का रूप धारण कर लेते हैं। कई कहानियां यह भी बताती हैं कि कैसे ईर्ष्या की भावना के कारण चमगादड़ों को उनके गहरे रंग और एक नीरस जीवन शैली से दंडित किया गया। एक अन्य कहानी के अनुसार चमगादड़ पहले बहुत सुंदर पक्षी था किंतु बाद में इसे दंडित किया गया तथा इसकी सुंदर विशेषताओं को छीन लिया गया। शर्मिंदगी के कारण इसने केवल रात में या छाया में घूमना शुरू कर दिया। कुछ पौराणिक कथाओं में इन्हें रोमांचक तथा महान प्राणी भी बताया गया है, क्योंकि ये परागकण क्रिया में सहायता करते हैं, इनका डिज़ाइन (Design) तथा इनकी चाल अद्भुत हैं। चीनी पौराणिक कथाएं चमगादड़ों पर एक सकारात्मक प्रकाश डालती हैं, यहां इन्हें सौभाग्य के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। अपाचे (Apache) और चेरोकी (Cherokee) दोनों पारंपरिक उत्तर अमेरिकी भारतीय जनजातियों ने भी चमगादड़ों की उपस्थिति को आनंद तथा सब कुछ अच्छा होने के प्रतीक के रूप में देखा। यह अनोखी आदतों और शारीरिक बनावट के कारण किसी भी अन्य प्राणी से अलग हैं।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/39ozlEB
2. http://nautil.us/issue/83/intelligence/the-man-who-saw-the-pandemic-coming
3. https://www.intechopen.com/books/bats/bats-bat-borne-viruses-and-environmental-changes
4. http://www.walkthroughindia.com/wildlife/8-species-bats-family-found-india/
5. https://www.batworlds.com/bats-in-mythology/
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