सड़क पर किसी भी प्रकार का मनोरंजक प्रदर्शन 1980 और 1990 के दशक के जीवन की एक स्थायी स्मृति है। उस दौर में देश और विदेश की सड़कों पर ऐसे कई कलाकार देखने को मिलते थे जो सड़कों पर अपनी कला का प्रदर्शन करते थे। वास्तव में इनके द्वारा दिखाये जाने वाले मनोरंजक प्रदर्शन इनकी जीविका का आधार भी थे। इन प्रदर्शनों में जादू, एक्रोबेटिक्स (Acrobatics), गुब्बारों से गुड्डे बनाना, चित्रकारी, हास्य कला, नृत्य, गायन, संगीत यंत्रों को बजाना, अग्नि कौशल, कठपुतली नचाना, मूक कला, सर्कस (Circus), करतब दिखाना, कहानी, कविता आदि कहना, तलवार निगलना, भाग्य बताना, सांप-सपेरे का खेल आदि प्रदर्शन शामिल हैं। कई देशों में इन प्रदर्शनों के द्वारा लोगों को पुरस्कार के तौर पर पैसे, भोजन, पेय या अन्य उपहार प्राप्त होते हैं। इस कला का अभ्यास पूरी दुनिया में सदियों से किया जाता रहा है तथा इस तरह के प्रदर्शन में संलग्न लोगों या कलाकारों को स्ट्रीट परफॉर्मर (Street performers) या बस्कर्स (Buskers) कहा जाता है।
भारत और पाकिस्तान के गुजराती क्षेत्र में भवाई सड़क कला का एक प्रमुख रूप है, जिसमें कलाकार गाँव-गांव जाकर नाटक दिखाते हैं। वर्तमान समय की बात की जाए तो यह कला गुमनामी की कगार पर खडी हुई है। जहां 1980 और 1990 के दशक में देश के कई महानगरों की गलियों में बंदर-मदारी का खेल, बाज़ीगरी, सपेरे का खेल, जादूगर आदि आम थे, वहीं आज वे मुश्किल से ही सड़कों या गलियों में दिखायी देते हैं। देश की अधिकतर कॉलोनियों (Colonies) को अब बड़े-बड़े फाटकों से सुसज्जित कर दिया गया है ताकि कोई भी प्रदर्शक अंदर प्रवेश न कर सके। सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस लोकप्रिय ऐतिहासिक स्मारकों जैसे स्थानों से सड़क पर प्रदर्शन करने वालों को हटा देती है क्योंकि उन्हें एक खतरे के रूप में देखा जाता है। इन प्रदर्शकों को प्रायः तुच्छ रूप से देखा जाता है किंतु वास्तव में वे विभिन्न पीढ़ियों के माध्यम से सौंपी गई कला का प्रदर्शन करते हैं तथा उसे जीवित रखते हैं।
वर्तमान समय में भुगतान की क्रेडिट (Credit) और डेबिट कार्ड (Debit Card) प्रणाली भी सड़कों पर होने वाले प्रदर्शन को प्रभावित कर सकती है। जहां पहले लोगों के बटुए पैसों से भरे होते थे, वहीं इनका स्थान क्रेडिट और डेबिट कार्ड ने ले लिया है। ऐसे में सड़क कला प्रदर्शन देखने के बाद कलाकारों को नगदी के रूप में भुगतान करना मुश्किल हो सकता है। इस प्रकार कैशलेश इकोनॉमी (Cashless Economy) कलाकारों की आय को बहुत गहराई से प्रभावित करती है। कई व्यवसाय इलेक्ट्रॉनिक (Electronic) लेनदेन की सुरक्षा या ग्राहक व्यवहार का हवाला देते हुए, प्रोत्साहन के बिना ही इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन को बढ़ावा दे रहे हैं। उपभोक्ता अक्सर पुरस्कार, सुविधा, या सुरक्षा सुविधाओं के लिए क्रेडिट कार्ड का पक्ष लेते हैं। 2000 के दशक में, कुछ कलाकारों ने ‘साइबर बस्किंग’ (Cyber Busking) शुरू की। कलाकार अपने कार्य या प्रदर्शन को इंटरनेट (Internet) पर पोस्ट (Post) करते ताकि लोग उसे डाउनलोड (Download) या स्ट्रीम (Stream) कर सकें। अगर लोग इसे पसंद करते हैं तो वे पेपैल (PayPal) का उपयोग करके इन्हें दान देते हैं। इसी प्रकार से 2015 में एक बस्किंग विशिष्ट भुगतान ऐप (Busking-specific payment app) भी विकसित की गयी, जिसने कलाकारों को एक ऐसा प्रोफ़ाइल (Profile) बनाने की अनुमति दी, जिसका उपयोग दर्शक क्रेडिट या डेबिट कार्ड के माध्यम से कर सकते हैं, लेकिन फिर भी कलाकारों को कैशलेस भुगतान की सुविधा पूर्ण रूप से दे पाना मुश्किल है।
भारत में इन कलाकारों तथा कला के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए इंडियन स्ट्रीट परफ़ॉर्मर्स एसोसिएशन ट्रस्ट (Indian Street Performers Association Trust - ISPAT) की स्थापना की गयी जो इन कलाओं का प्रदर्शन करने और जीविकोपार्जन करने की अनुमति देने का दबाव सरकार पर डालती है ताकि विभिन्न जनजातियों में फैली इस कला का अस्तित्व बचा रहे। इस कला का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है। इनके संरक्षण के लिए इन्हें कलाकारों के रूप में पहचाना जाना चाहिए और प्रदर्शन करने हेतु पहचान पत्र भी दिया जाना चाहिए। यदि इस कला का उत्थान नहीं किया गया तो प्रदर्शन करने वाले लोगों की जनजातियां आने वाले वर्षों में विलुप्त हो सकती है। भारत भले ही सड़कों पर प्रदर्शन करने वालों को भूल गया है, लेकिन इन्हें ज़िन्दा रखने का वैश्विक आंदोलन ज़ोर पकड़ रहा है।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Street_performance
2. https://bit.ly/2TUr331
3. https://nextcity.org/daily/entry/what-happens-to-street-performers-in-a-cashless-economy
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