भारत के पक्षियों में अत्यधिक विविधता पायी जाती है, जिसका एक उदाहरण पीली आंखों वाला कबूतर भी है। इस कबूतर को वैज्ञानिकों द्वारा कोलंबा एवर्स्मानी (Columba eversmanni) नाम दिया गया है जोकि कोलंबिडी (Columbidae) परिवार (पेंडुकी और कबूतर) का ही एक सदस्य है। यह पक्षी मुख्य रूप से दक्षिणी कज़ाकिस्तान (Kazakhstan), उज़बेकिस्तान (Uzbekistan), तुर्कमेनिस्तान (Turkmenistan), ताजिकिस्तान (Tajikistan), किर्गिस्तान (Kyrgyzstan), अफगानिस्तान (Afghanistan), उत्तर-पूर्व ईरान (North-east Iran) और उत्तर-पश्चिम चीन में प्रजनन करता है। सर्दियों के मौसम में यह उत्तर-पूर्व पाकिस्तान, जम्मू-कश्मीर और राजस्थान के कुछ हिस्सों (ताल छापर अभयारण्य और जोर्बीर, बीकानेर सहित) में आसानी से पाया जा सकता है। इस पक्षी को रामपुर में भी आसानी से देखा जा सकता है।
पीली आंख वाले कबूतर का वर्णन पहली बार 1856 में फ्रांसीसी पक्षी विज्ञानी चार्ल्स लुसिएन बोनापार्ट (Charles Lucien Bonaparte) ने किया था, जिसके बाद इसे द्विपद नाम जर्मन (German) जीवविज्ञानी और खोजकर्ता एडुआर्ड फ्रेडरिक एवर्स्मान (Eduard Friedrich Eversmann) ने दिया। यह पक्षी मध्यम आकार का है जोकि लगभग 30 सेमी (12 इंच) की लंबाई तक बढ़ सकता है। इसका वज़न 183 से 234 ग्राम तक हो सकता है। सामान्य तौर पर यह ग्रे (Gray) रंग का होता है, जिसका ऊपरी हिस्सा थोड़ा भूरे रंग को होता है। इसके शीर्ष भाग, गले और स्तन पर गुलाबी-बैंगनी रंग की चमक भी दिखाई देती है। पंखों में काली पट्टियां दिखायी देती हैं जोकि हल्के नीले रंग की हो सकती हैं। पंखों का निचला हिस्सा, दुम तथा नीचे का भाग सफेद या हल्के भूरे रंग का होता है। आंख की पुतली तथा आंख के आस-पास के हिस्से का रंग पीला होता है। कबूतर की चोंच पीली जबकि पैर गुलाबी रंग के होते हैं।
पीली आंखों वाला कबूतर आमतौर पर एक मूक पक्षी होता है, लेकिन प्रजनन के मौसम के दौरान यह कभी-कभी एक विशिष्ट ध्वनि उत्पन्न कर सकता है। इस कबूतर की प्रजातियां आमतौर पर जंगलों में नहीं होती, वे विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों में निवास करते हैं। अपने प्रजनन क्षेत्र में यह अर्ध-शुष्क और शुष्क क्षेत्रों सहित मैदानी क्षेत्रों और समतल भूमि में रहते हैं। इस कबूतर की प्रजातियां ज्यादातर प्रवासी होती हैं। सर्दियों में वे उत्तरपश्चिम भारत, अफगानिस्तान, ईरान और पाकिस्तान की ओर प्रवास करते हैं। सर्दियों के मौसम में यह पेड़ों के साथ-साथ कृषि क्षेत्रों, बागों और खुले ग्रामीण इलाकों में भी पाया जाता है। यह विशेष रूप से उन क्षेत्रों की ओर आकर्षित होता है, जहां शहतूत के पेड़ होते हैं। अपने पोषण के लिए यह कबूतर विशेष रूप से बड़े पैमाने पर बीजों, अनाजों और जामुनों पर निर्भर रहता है। इन सामग्रियों को वह आमतौर पर ज़मीन पर ढूंढता है लेकिन कभी-कभी फलों को पेड़ से ही तोड़ लेता है। ये पक्षी सामान्य रूप से अक्टूबर और नवंबर के महिनों में दक्षिण की ओर पलायन करते हैं, जिससे सर्दियों के मौसम में इनका झुंड बन जाता है। एक समय में इस दौरान एक झुंड में हज़ारों कबूतरों को गिना जाता था किंतु, अब इनकी संख्या घट गई है और झुंडों में केवल कुछ दर्जनभर ही पक्षी दिखाई देते हैं।
यह अप्रैल माह में अपनी प्रजनन रेंज (Range) में लौटता है तथा घोंसला बनाने की प्रक्रिया वसंत के अंत और गर्मियों के दौरान शुरू करता है। यह प्रायः चट्टानों, खोखले पेड़ों या खंडहर इमारतों जैसे स्थानों पर अपना घोंसला बनाना पसंद करता है। एक समय में इनकी प्रचुर मात्रा धरती पर मौजूद थी किंतु विगत वर्षों में, पीली आंखों वाले कबूतरों की आबादी में काफी गिरावट आई है। इसका मुख्य कारण इसके शिकार को माना जाता है, जिससे इसकी संख्या निरंतर घट रही है। पीली आंखों वाले कबूतर की वैश्विक आबादी के आकार का अनुमान लगभग 15,000 से 30,000 एकल पक्षियों का लगाया गया है। निवास स्थान और भोजन के नुकसान तथा शिकार को इनकी आबादी में गिरावट का मुख्य कारण माना जाता है। गिरावट को देखते हुए इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (International Union for Conservation of Nature - IUCN) ने इस पक्षी को अपनी रेड लिस्ट (Red List) में असुरक्षित या संकटग्रस्त पक्षी के रूप में सूचीबद्ध किया है।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Yellow-eyed_pigeon
2. https://www.hbw.com/species/yellow-eyed-pigeon-columba-eversmanni
3. https://bit.ly/39S2hWI
4. https://bit.ly/2Wce6mC
चित्र सन्दर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Yellow-eyed_pigeon
2. http://www.wildart.in/pigeons-and-doves/pale-backed-pigeon/
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